मैं समय -
प्रकृति के गांव से ले आया हूँ इस उत्सव में श्री प्रकाश डिमरी जी को , जो वर्तमान में राजकीय इंटर कॉलेज जोशीमठ चमोली उतराखंड में शिक्षक प्रवक्ता रसायन विज्ञानं के रूप में कार्यरत हैं ....
मूल निवासी ग्राम : रविग्राम जोशीमठ चमोली उत्तराखंड भारत ... इनका कहना है ,
मेरा कोई विशेष परिचय नहीं इतना कि उत्तराखंड कि पवित्र भूमि ..जहाँ नैसर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य विराजमान है जहाँ प्रकृति के महान चितेरे कवियों परम श्रद्धेय श्री सुमित्रानंदन पन्त एवं श्री चन्द्र कुंवर बर्त्वाल कि भाव स्थली रही है ..उस जन्मस्थली का असर हो शायद जो मैं कुछ लिख सका ... नहीं तो मैं ठहरा विज्ञान का निरा ठूंठ ....हिंदी व्याकरण से कोसों दूर .
तुम्हारी याद ......
सदियों पहले ...
एक बसंत में...
मुस्कुराती ... प्रेम का पंख बनकर
आच्छादित हो गयी थी तुम
मुझपर...
अब सदियों के बाद ...
मेरे दिल की खिड़की से...
निकल कर ...
तुम ...
धुएं - धुएं सी मुस्कुराती हो
और आकाश के सूनेपन में कहीं ....
बहुत दूर दूर तक खो जाती हो...
मेरे दिल के मौसम के सूनेपन में
तुम्हारे याद ....
पतझड़ के पत्तों सी थरथराती है
और आहिस्ता आहिस्ता
सर्द मौसम की देहरी पर....
मेरी आँखों में ....
बरसात की झड़ी सी लग जाती है
मेरा संसार ...
अब वो नहीं.....
जहाँ सतरंगी सूरज की किरण थी
तुम्हारीं याद में हो गया
यहाँ का मौसम धुआं धुआं ...
मुझे अब भी याद है ....
कैसे तुम ......
बुरांस* का ...........
चटक लाल फूल बन
मुस्कुराती लजाती थी ....
और में खो जाता था ....
तुम्हारी सुरमई आँखों में ...
पर अब.....
वो नेह शेष नहीं रहा ......
भरा है मेरा आकाश
अनंत सूनेपन से ...,,,
न वो चाँद न तारे ,
और न मैं ही ....
कुछ शेष रहा ...
........
महा प्रयाण !!!
प्रिये !!!!
मैं
ओस की एक नन्ही बूंद
घने अँधेरे हिम शीतित वन में
एक पत्ती पर अर्ध चंद्राकर
ठिठुरता सहमता
उष्णता की प्रत्याशा में
युगों युगों तक करता रहा
तुम्हारा इंतजार...
और तुम धीरे धीरे
मुझे सहलाती
एक सूर्य रश्मि !!!!
बनकर उष्णता .....
छा गयी मुझपर
मैं सहज हो उठा
और हो गया एकाकार
तुमसे........
प्रिये !!!!
तुम एक बसंत
और मैं एक
रुखी सूखी काया
छा गयी तुम मुझपर
बनकर हरित सौंदर्य
खिल उठा मैं तुम्हे पाकर ...
निहारता रहा
तुम्हारा अप्रतिम सौंदर्य
अपलक .......
पर
ये कौन है ???
जो चीर रहा है
मेरे सीने को
रौंद रहा है
हरित सौंदर्य को
बो रहा
कंक्रीट के उपवन
घोट रहा
कोयल की कूक
उढ़ रहा
आकाश में
रोक रहा
सूर्य चन्द्र रश्मि को
खेल रहा
विनाशक गोलों से
रच रहाषडयंत्र
तुम्हारे मेरे
अंतहीन विछोह का .....
प्रिये !!!!
आज भयग्रस्त कातर हो रहा हूँ मैं ..
क्योंकि तुम्हारी निकटता ने
बना दिया है मुझे कोमल
बहुत कोमल है ह्रदय मेरा
और पीत पात से मेरे हाथ
इसलिए
महा विनाश के उस आर्तनाद में
नारंगी सूरज के
घटाटोप अंधकार में डूबकर मेरे
तुमसे ....
सदा बिछुढ़ जाने से पहले
मेरी प्रियतम !!!
उबार लेना मुझे
नहीं तो मैं नन्हा तिनका बनके उड़ जाऊंगा
और फिर ...
कभी लौट कर
तुम तक नहीं आ पाउँगा .....
यति...!!!
इस सूने निर्जन में
जहां अँधेरे घने देवदार
उंघते हैं ...अलसाई नींद में...
तुम सम्मोहित हो मुस्कुराती हो
पर वहीँ सदियों पहले
गुजरे थे काफिले ...
आदिम भूख के ...
यतियों के ...
पंजों के निशाँ ,
पत्थर का खंजर ...
और मेरी ...
मृत्यु की चीख
पसरी है ..
इस वीराने में..
यहाँ वहाँ फैले हैं
कतरे मेरे खून के ..
.. तुम्हारा ..
विजय उद्घोष ..
दंभ का
ध्वज अवशेष...
भय की मरीचिका है शेष ...
सदियों बाद...
आज भी
सभ्यता का आवरण ओढ़े
यतियों के झुण्ड
मानवता का लहू पी जाते हैं
और ...
हम चुपचाप बर्फ की मानिंद
भयग्रस्त शीतित हो जम जाते हैं ..
हमारी आस्थाओं के देवदार
फिर से..
निस्तब्ध अंधेरों में डूब जाते हैं....
...श्रीप्रकाश डिमरी
अपने आस पास मानवीय संवेदनाओं ..आस्थाओं के सरल और सहज रूप को ..अविश्वास और दंभ से परास्त होते देखना कितना पीड़ा दायक होता है ... हमारी संवेदनाये और स्नेह इस भौतिक युग में सभ्यता के तथाकथित विकास में .. कितना बिखर चुके हैं ....मन भर आता है..और अनुभूतियाँ कुलबुलाने लगती हैं.. .. अवाक रह जाता हूँ मैं....फिर भी विश्वास है .. संसार में मानवीय संवेदनाएं एवं पारस्परिक प्रेम की भावना के जीवंत होने का....
तो इन्हीं पवित्र अभिव्यक्तियों के साथ आगाज़ हो रहे परिकल्पना ब्लॉगोत्सव के नौवें दिन के प्रथम चरण के कार्यक्रमों का आईये मिलकर आनंद उठाते हैं , कुछ सुनते हैं,कुछ गुनते हैं और कुछ अपने अंतर्मन में उतारते हैं :
आईये सबसे पहले चलते हैं रवीन्द्र जी के पास , उनका कहना है कि-
तो इन्हीं पवित्र अभिव्यक्तियों के साथ आगाज़ हो रहे परिकल्पना ब्लॉगोत्सव के नौवें दिन के प्रथम चरण के कार्यक्रमों का आईये मिलकर आनंद उठाते हैं , कुछ सुनते हैं,कुछ गुनते हैं और कुछ अपने अंतर्मन में उतारते हैं :
आईये सबसे पहले चलते हैं रवीन्द्र जी के पास , उनका कहना है कि-
सृजन का सुख अकथनीय होता है
आज रवीन्द्र जी सीधी बात के अंतर्गत मुखातिव हैं उर्दू के मशहूर शायर गौहर राजा साहब से सीधी बात के अंतर्गत, यह एक ऐतिहासिक पल है जब ब्लॉगोत्सव में इन दोनों शख्शियतों की गुफ्तगू का वीडियो प्रसारित किया जा रहा है :
ब्लॉग लेखन से नए साहित्य का उदय हो रहा है, यह अद्भुत घटना है
इसके अलावा पढ़िए :
हुकूमत हवा पर बंदिश नहीं लगा सकती फ़िर ब्लॉगिंग तो तूफ़ान है….एक ब्लॉगर का संदेश
और जी. के. अवधिया का विमर्श :
ब्लॉगोत्सव में ब्लॉगिंग की बात
कहीं जाइएगा नहीं हम फिर उपस्थित होंगे एक अल्प विराम के बाद ......
हमारी आस्थाओं के देवदार
जवाब देंहटाएंफिर से..
निस्तब्ध अंधेरों में डूब जाते हैं....
वाह ... बहुत ही अच्छा लिखा है ..परिकल्पना की इस प्रस्तुति के लिये आभार ।
परिचय के साथ ही बहुत अच्छी रचनाएँ पढने को मिलीं ... आभार
जवाब देंहटाएंsabhi rachna ek se badh kar ek...!
जवाब देंहटाएंशब्द कट कर आ रहे है पढ नही पा रही थोडा साइड करके लगाइये।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंपरिकल्पना की इस प्रस्तुति के लिये आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....!
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाएँ ...आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढि़या !
जवाब देंहटाएंअभी डिमरी जी के आस पास कर्ण प्रयाग, चमोली, जोशीमठ, बदरीनाथ की पावन भूमि में कुछ समय बिताने का योग बना था...
जवाब देंहटाएंउन्हें पढ़ते हुए वापस उन्हीं वादियों की सैर कर आया मन...
बहुत सुन्दर रचनाएं हैं...उन्हें बधाई...
सादर...