आज मेरे हाथों में दो पोटलियाँ हैं - कुछ कल के एहसास , कुछ आज के . मैं कल भी था मैं आज भी हूँ , यही तो हर पल कहता आ रहा हूँ . बस चेहरे बदल गए , लोग बदल गए , मकान बदल गए ... पर एहसास आज भी यही कहते हैं -

'वियोगी होगा पहला कवि,आह से उपजा होगा गान,
उमड़कर आखों से चुपचाप,बही होगी कविता अनजान...' कवि पन्त ने कहा .... और मेरी पगडंडियों पर कुछ आगे से पन्त की मानस पुत्री सरस्वती प्रसाद ने कहा -
हाँ कहने का ढंग तो बदला पर कुछ इस तरह - ;
' दर्द मेरे गान बन जा
सुन जिसे धरती की छाती हिल पड़े
वज्र सा निर्मम जगत ये खिल पड़े
लाज रखकर ह्रदय की ऊँची इमारत का
मेरा सम्मान बन जा
दर्द मेरे गान बन जा ....'

तो आज मैंने इस मंच पर कुछ लोगों के हवाले कुछ अंश दिए , लिखो इस भाव में अपने भाव ............... और अब एक धरोहर की तरह आपको सौंप रहा हूँ -

संगीता स्वरुप जी को (http://geet7553.blogspot.com/) मैंने निम्न पंक्तियाँ दीं -

सांप.
तुम सभ्य तो हुए नहीं,
नगर में बसना भी तुम्हे न आया.
एक बात पूछूं - उत्तर दोगे?
तब कैसे सीखा डसना, विष कहाँ पाया?

-अज्ञेय.)

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और संगीता जी ने कहा -


शहरी हवा
कुछ इस तरह चली है
कि इन्सां सारे
सांप हो गए हैं ,
साँपों की भी होती हैं
अलग अलग किस्में
पर इंसान तो सब
एक किस्म के हो गए हैं .
साँप देख लोंग
संभल तो जाते हैं
पर इंसानी साँप
कभी दिखता भी नहीं है ..
जब चढ़ता है ज़हर
और होता है असर
तब चलता है पता कि
डस लिया है किसी
मानवी विषधर ने
जितना विष है
इंसान के मन में
उसका शतांश भी नहीं
किसी भुजंग में
स्वार्थ के वशीभूत हो
ये सभ्य कहाने वाले
पल रहे हैं विषधर
शहर शहर में .


अनुपमा सुकृति को (http://anupamassukrity.blogspot.com/) दिया यह सुप्रसिद्ध अंश -

'जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई. '

और अनुपमा जी ने जो भाव उद्धृत किये , वे इस प्रकार हैं -

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कैसे कह दूं मन से अपने-
बीत गयी सो बात गई -
पड़ी अटल छब मनः पटल पर -
मैं न जानू बात नई -

रह -रह कर बीते दिन की जो -
यादें मन पर छाई थीं-
खटकाती थीं दरवाजा -
यादों का दीपक लायी थीं -
आती थीं रह जाती थीं -
न जाने की जिद लायी थीं -

घने -घने हो जाते थे -
छाये जो मेघा यादों के -
छिटक , ढलक ,फिर बरस पड़े -
जल -नीर नयन की राह लिए -

शीतल पवन भी मर्म पर मेरे -
ठंडक ही दे जाती थी -
मनः पटल पर स्मृती की छाया -
और सघन हो जाती थी -

जीवन है तो चलना है -
जग चार दिनों का मेला है -
इक रोज़ यहाँ ,इक रोज़ वहां -
हाँ ----ये ही रैन -बसेरा है .....!!

मिलना और बिछड़ जाना -
ये जीवन की सच्चाई है -
अब कोई मिलता --फिर कोई बिछड़ा --
यादों की परछाईं है ...!!

सुख देकर मन दुःख क्यों पाता -
बात नहीं मैं समझ सकी -
कैसे कह दूं मन से अपने -
बीत गई सो बात गई ..........!!!!
===================================================================
कुछ उनकी कुछ इनकी बातों के साथ आईये चलते हैं बाइसवें दिन के प्रथम चरण में प्रसारित कार्यक्रमों की ओर :


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मैं हूं आम आदमी… सरकार का मारा…मेरी आवाज़ सुनो… दर्द का राज सुनो… फ़रियाद सुनो। मनमोहन...
कहीं जाईयेगा मत, हम मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद ........

19 comments:

  1. बहुत सुन्दर , बीत गयी सो बात गयी . और नये विषधरों से मुलाकात . समय का अंतराल बदला और नये सन्दर्भों और नयी दृष्टी के साथ पुराने जुमले नये सन्दर्भों से जुड गए लगते हैं .

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  2. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति आपका प्रयास और संयोजन दोनो सार्थक हो रहे हैं परिकल्‍पना के इस उत्‍सव में ..आप सभी का बहुत-बहुत आभार ।

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  3. अनुपमा जी के भाव बहुत सुन्दर लगे ...आभार

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  4. अनुपमा जी और संगीता जी दोनो ने अति उत्तम भाव संजोए हैं………आभार्।

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  5. सटीक लेखन,शानदार कवितायें......बधाईयाँ !

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  6. सचमुच ऐसा उत्सव अंतरजाल पर पहली बार देखा है, गज़ब का संयोजन और संचालन देखकर हतप्रभ हूँ !

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  7. अनुपम और अद्वितीय है ये रचनाएँ , आभार !

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  8. सुन्दर और शानदार प्रस्तुति !

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  9. संगीता दी की कविता ने मन मोह लिया ..सांप तो आखिर सांप ही हैं ???
    अनुपमा जी की कविता में बहुत ठहराव हैं

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  10. वाह परिकल्पना का यह अनुपम प्रयोग सुन्दर बन पडा है... दोनों ही रचनाएं पढ़ कर आनंद आ गया....
    सादर....

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  11. सचमुच आपका प्रयास बहुत ही सुन्दर और सार्थक है। बधाई।

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  12. परिकल्पना में आज पहली बार आई हूँ रचनाएं पढ़ कर अच्छा लगा.. अनुपमा जी और संगीता जी दोनो की अभिव्यक्ति सुन्दर है.. ..

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  13. संगीता जी व अनुपमा जी दोनों की रचनाएं एक से बढ़ कर एक हैं ! आदरणीय अज्ञेय जी व आदरणीय बच्चन जी की प्रसिद्ध रचनाओं का वर्त्तमान सन्दर्भों में इन दोनों विदुषी कवियत्रियों द्वारा अपनी अनुपम शैली दिया गया प्रत्युत्तर बहुत अच्छा लगा ! दोनों को बहुत बहुत बधाइयाँ !

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  14. आज मैं धन्य हुई .....!!
    इस मंच पर ...इतने गणमान्य लोगों के बीच ...मेरे भाव .....
    रश्मि दी .....शत शत ..आभार .....
    संगीता जी की कविता भी बहुत बढ़िया है ...
    आभार परिकल्पना का ...रविन्द्र जी का भी .....

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