हाज़िर है आपका सहयात्री समय -
एक नई पहचान करवाता हूँ अंजलि माहिल से जो दिल्ली से हैं |
"पहचान"(http://mahil18.blogspot.com/) नाम से ब्लॉग पर लिखती हैं |
दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और I.G.N.O.U से स्नातकोत्तर( लोक -प्रशासन) की पढाई कर चुकी हैं , उत्सवी रंग देख यहाँ आई हैं एहसासों की पोटली लिए |
स्पंदन :अहसास
"वो जो कहते हैं मुझे ,
अहसास नही होता ,
शायद वो सच ही कहते होंगे !
मुझे अब सूरज की किरण से ,
तपिश नही मिलती ,
चाँद की चांदनी से ये दिल ,
अब ठंडा नही होता !
वो जो कहते हैं मुझे ..........
मुझे अब अपनों के सायों में ,
अपनापन नही मिलता ,
जगमगाती शहरों की रातों में ,
खुशबू खवाबों की नही मिलती !
वो जो कहते हैं मुझे .........
दर्द बदन के हर हिस्से में ,
बिखरा है , मुझे और ,
लकीर ख़ुशी की ,
मेरे हाथों में नही मिलती !
वो जो कहते हैं मुझे ..........
भीड़ में सन्नाटा सा पसरा है ,
धुल (झूट) का है गुबार भी इस पर ,
नजर दूर तक तो जाती है मेरी ,
मगर तस्वीर "पहचान" की ,
एक भी नही मिलती !
वो जो कहते हैं मुझे ..........
छु जो जाती हूँ दरिया ,
तो हाथ मेरा ही जलता है ,
तभी आग से खुद को ,
जलने की जरुरत नही मिलती !
वो जो कहते हैं मुझे ..........
मुझे अब कागज - से फूलों में ,
खुशबु नही मिलती ,
शायद वो सच ही कहते होंगे !!! "
जाने कब जाने कैसे ?
जाने कब जाने कैसे ?
हाथों की लकीरों में ,
दर्द दिल का उतर आया ,
जो किसी चेहरे पर ,
बीते वक़्त पढ़ा था !
जाने कब जाने कैसे ?
हसरत , बिखरी अधूरी ,
खवाहिशें समेटने की उभर आयी ,
जो किसी जुबान से ,
बीते वक़्त सुना थी !
जाने कब जाने कैसे ?
दरारे अध्-खुले दरवाजों से
आधी दीवारों पर चढ़ने लगी ,
जो किसी खंडर पर ,
बीते वक़्त देखी थी !
वेदना
उसकी चोट मेरी ही
खता सी लगती है मुझे |
वो दर्द अपने जब सुनाता है
थामकर हाथ मेरा |
झुक जाती है नज़र मेरी ,
कांप जाता है बदन मेरा |
दिल तो करता है बढ़ कर ,
थम लूँ उसको ,
मगर मजबूर हूँ |
अपने जमीर पर कुछ बोझ लिए बेठी हूँ|
उसे तुमको दिखाऊँ कैसे ?
बताउं कैसे ?
मेरे ही लफ्ज मेरा साथ ,
छोड़ गये मेरा हमसाया बनकर ,
उसे तुमको दिखाऊँ कैसे ?
बताउं कैसे ?
टूटकर बिखर जाती है हस्ती मेरी ,
जब आसूं उसकी आँख का देखती हूँ ,
ये बात जाताऊँ कैसे?
बताउं कैसे ?
यूँ तो सामना दुनिया का ,
करूँ , होंसला है मुझमे ,
जाने क्यूँ एक उसका ही सामना नही होता |
उसकी आँखों में मैं अपना इंतजार देखती हूँ,
बात उसको बताउं कैसे ?
मज़बूरी अपनी सुनाऊँ कैसे ?
खुद को जलने से रोक पाऊं कैसे ?
उसकी हर चोट मेरी ही ,
खता सी लगती है मुझे |
युवा बदलाव की आंधी
उसे जिन्दगी से कुछ और भी चाहिए था ,
वो देर तक शाख पर फड-फड़ाता रहा ,
छटपटाता रहा ,
वो जो वृक्ष उसे थपेड़ों से बचा रहा था ,
कभी इधर - कभी उधर हिला रहा था ,
दुनिया की धूर्त हवाओं ने ,
अब उसे जोर से झटका ,
अब वो आज़ाद था ,
बह रहा था उन्मुक्त ,
उठाये थी हवाएं उसे जमीन से ,
ऊँचे .ऊँचे और ऊँचे , वो उड़ रहा था ,
खुले आसमान में , बिना बंधन के ,
और अचानक ही हवाओं ने अपना रंग ही बदला
वो शांत हो गयी एकाएक , ठन्डे जल की तरह ,
वो गिरने लगा था , और सोचता रहा था सवाल क्या
"कि मैं उड़ना चाहता था |"
मेरा क्या कसूर था ?
"कि मैं अलग पहचान चाहता था |"
मेरा क्या कसूर था ?
"कि यकीं हवाओं पर मैंने किया |
मजबूर हूँ , जो जुदा अपनी ही शाख से , मर्जी से हुआ |
अब फिर जुड़ नही सकता ,
अब फिर बंध नही सकता | "
चलता हूँ , मिलूँगा किसी एहसास का दामन पकड़ - इंतज़ार करो ना करो, आऊंगा फिर परसों यानी सोमवार को सुबह ११ बजे परिकल्पना पर ...अरे रे आप कहाँ जा रहे हैं ,पहले-
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अंजलि जी के ब्लॉग का नियमित पाठक हूँ.अच्छा लगा उनकी रचनाएं यहाँ देख कर.
जवाब देंहटाएंसादर
बेहतरीन चर्चा,अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंअच्छी लगीं,बहुत खूब !
जवाब देंहटाएं"वो जो कहते हैं मुझे ,
जवाब देंहटाएंअहसास नही होता ,
शायद वो सच ही कहते होंगे !
विचार हमें उत्प्रेरित करते हैं
ढेर सारी शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंयह उत्सव इतना व्यापक होगा मैंने सोचा भी न था , बहुत-बहुत बधाईयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएं"वो जो कहते हैं मुझे ,
जवाब देंहटाएंअहसास नही होता ,
शायद वो सच ही कहते होंगे !
सहयात्री समय की ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
अंजलि जी से मिलकर अच्छा लगा और उनकी कविताये भी बहुत सुन्दर हैं……………बहुत पसन्द आईं।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट कल(3-7-11) यहाँ भी होगी
जवाब देंहटाएंनयी-पुरानी हलचल
अंजलि माहिल जी की सभी कविताएँ अच्छी लगीं ...
जवाब देंहटाएंanjaliji ki saari kavityen bahut hi bhavmai,aur sunder hain.badhaai unko.
जवाब देंहटाएंek se badh kar ek....:)
जवाब देंहटाएंsach me rashmi di aap ko heere ki pahchaan hai:D
स्पंदित होते हुए एहसास....
जवाब देंहटाएंअंजली जी को बधाई...
बहुत खूब ये महोत्सव यूं ही बढता रहे । हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं और हां आज की सभी प्रस्तुतियां अच्छी लगीं ।
जवाब देंहटाएंवो जो कहते हैं मुझे ,
जवाब देंहटाएंअहसास नही होता ,
शायद वो सच ही कहते होंगे !
saralta se dil tak pahunch gaya.