क्षितिज की बाहें थामे , सूर्योदय की लालिमा संग जागरण का सूत्र लिए बच्चों के लिए आई हैं वंदना .... हाँ भाई , बच्चे उदास हो चले थे , उत्सव में सारी कवितायेँ बड़े लोगों के लिए हैं . मुझे लगा कोई जादुई छड़ी घुमानी होगी बच्चों की मुस्कुराहट के लिए . तो हींग टिंग झट बोल चिंग चिंग फाक खुल जारे ताले झट से फटाक ...... ये लो बच्चों अपनी वंदना दीदी को और सुनो .
माँ परी
माँ ! मैंने देखी एक परी
वो बिलकुल तेरे जैसी थी
तुम जैसी ही प्यारी प्यारी
उजली उजली गोरी गोरी
हाथों में फूलों की डाली
प्यार बहुत सा करने वाली ।
कभी ना लड़ना हिलमिल रहना
सही राह पर निर्भय बढ़ना
प्रेम देश से अपने करना
परियों की रानी का कहना ।
हंसी फूल से भी कोमल
पंख जैसे तेरा आँचल
बाल घनेरे जैसे काजल
तपती धूप में छाये बादल ।
मेरी खातिर लोरी गाई
चोकलेट भी दिलवाई थी
माँ!सच कहना क्या तुम ही ,
मेरे सपने में आई थी !
गुब्बारे वाला
माँ !देखो गुब्बारे वाला
रंगों के फव्वारे वाला
चुनमुन ,ननमुन सभी को भाया
सबके लिए ही खुशियाँ लाया
गुब्बारे में ककड़ी खीरे
कोई तोता मोर बनाया
किसी में हलकी गैस भरे
किसी में केवल हवा भरे
लाया है रंगों की गठरी
फरफर फुर फुर सभी उड़े
वो समझे मेहनत की भाषा
दिन भर घूमे भूखा-प्यासा
तन पर चिथड़े पैर है नंगे
रखता होगा हमसे आशा
एक गुब्बारा मुझे दिलवा दो
एक दिलवा दो छुटकू को
जैसे खुश होंगे दोनों हम
वैसे ही खुश होगा वो !
जुगनू
देखो तो धरती पर तारे
कितने सारे प्यारे प्यारे
तुम मेरे घर रहने आये
साथ नहीं क्यों चाँद को लाये
आज कहीं तुम रस्ता भूले
पास इतने कि हम भी छूलें
आसमां से उतर के आये
चम चम करते मन को भाए
दौडूँ इनको हाथ में ले लूं
या माँ के आँचल में भर लूं
वापस ना ये जाने पाए
माचिस की इक डिबिया लायें
नाना बोले हंसकर चुन्नू !
क्या पहले नहीं देखे जुगनू !
धरती पर जो दिखते तारे
ये जुगनू कहलाते प्यारे ।
ऊँट और पहाड़
आया ऊँट पहाड़ के नीचे
घूम के देखा आगे-पीछे
देखी पर्वत की ऊँचाई
ऊँट रह गया बस दम खींचे
उफ़ ! तौबा यह बहुत बड़ा है
कैसे सीधा अकड़ खड़ा है
कोई इसको झुका न पाए
इसी वजह से तना पड़ा है
तभी दिखा पौधा नन्हा सा
गिरि-शिखर पर इतराता था
ऊंचा होकर पर्वत से वो
मस्त झूमता लहराता था
फिर तो उसने जुगत भिड़ाई
चढ़ पहाड़ फोटो खिंचवाई
हिम्मत से क़द बढ़ जाता है
बात पते की उसने पाई
वंदना सिंह
http://vandana-nanhepakhi.blogspot.com/
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हैं न मजेदार व्यक्तित्व के मालिक हमारे मुद्रा जी ?
तो आईये उनकी कहानी के साथ-साथ पढ़ते हैं कुछ और महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों को :
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आज केवल वन्दना ही नहीं लेकर आई है बच्चों की कवितायें, एक कहानी "नाश्ते से पहले" लेकर आये हैं दादा जी यानी मुद्राराक्षस जी, बच्चों जानते हो इनका नाम मुद्रा राक्षस कैसे पडा ? मैं बताता हूँ ये जब स्नातक के छात्र थे तब इन्होने उस समय के साहित्यिक विमर्श को लेकर एक बढ़िया आलेख लिखा और छपने के लिए लखनऊ से निकालने वाली एक पत्रिका के संपादक को भेज दिया . संपादक को जब इस बात की जानकारी हुयी कि गंभीर साहित्यिक विमर्श को मुद्दे के रूप में उठाने वाला यह उत्कृष्ट आलेख एक छात्र का है जिसका नाम सुभाष वर्मा है तो वह अवाक्क रह गया और मुद्रा जी के पास यह प्रस्ताव भेजा कि यदि यह आलेख तुम्हारे नाम से प्रकाशित होगा तो यह गंभीर वहास का मुद्दा नहीं बन पायेगा, इसे हम उपनाम से प्रकाशित करेंगे...मुद्रा जी की कभी कोई रचना किसी भी पत्रिका में प्रकाशित नहीं हुयी थी इसलिए उन्होंने अपनी सहमति दे दी....आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस आलेख के प्रकाशन से अज्ञेय सहित कई प्रतिष्ठित साहित्यकारों की नींद उड़नछू हो गयी....लोगों को लगा कि मुद्राराक्षस के नाम से कोई बड़े साहित्यकार ने यह लेख लिखा होगा. यह आलेख उससमय सुर्ख़ियों में लगातार बना रहा...भोपाल से प्रकाशित एक पत्रिका के संपादक ने मुद्रा नाम के इस लेखक को ढूढ़ निकाला और अपने यहाँ सहायक संपादक की नौकरी दे दी !
तो आईये उनकी कहानी के साथ-साथ पढ़ते हैं कुछ और महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों को :
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बहुत ही सुन्दर बाल कवितायें हैं।
जवाब देंहटाएंइन बाल रचनाओं के साथ ..आप बच्चों की मुस्कराहट ले ही आये परिकल्पना पर ....बहुत ही बढि़या ...।
जवाब देंहटाएंवन्दना जी की कवितायें सभी अच्छी है यानी
जवाब देंहटाएंअच्छी और सच्ची अभिव्यक्ति है, आभार !
वन्दना जी की कवितायें सभी अच्छी है यानी
जवाब देंहटाएंअच्छी और सच्ची अभिव्यक्ति है, आभार !
सचमुच सारी कवितायें जादू की छडी है, बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढि़या ...।
जवाब देंहटाएंसुन्दर बाल कवितायें हैं।
जवाब देंहटाएंवंदना जी की कवितायेँ बहुत मनभावन हैं.
जवाब देंहटाएंसादर
नूतन जी की हर बाल कविता अपने आप में पूर्ण है .....बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबच्चों के लिए ही नहीं हमारे लिए भी तीनों कविताएँ जादुई छड़ियाँ हैं...
जवाब देंहटाएंवंदना जी की बाल कवितायें बड़ी मनभावन हैं....
जवाब देंहटाएंसादर...
परिकल्पना टीम की तहे दिल से आभारी हूँ कि मेरा दायरा बढ़ाया
जवाब देंहटाएंवन्नू,-वन्नू, तुम इतनी अत्थी कवता कैथे लिख लेती हो...मुधे भी थिकाओ न!!!!
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