मौत दे दे मगर जग हंसाई न दे ।
(ग़ज़ल )
कद ये छोटा लगे कुछ दिखाई न दे
रब किसी को भी ऐसी ऊँचाई न दे ।
मुफलिसों को न दे बेटियाँ एक भी -
मौत दे दे मगर जग हंसाई न दे ।
रात कर दे अँधेरी सुबह खुशनुमा-
दोपहर को मगर बेहयाई न दे ।
यूँ रहो बेखबर अब न इस दौर में-
कि पडोसी की आहें सुनाई न दे ।
जिससे तुम हो न राजी इलाही कभी-
बदनुमा-बदचलन रहनुमाई न दे ।
जो तुझको न अच्छा लगे ये प्रभात -
दूसरों को भी ऐसी हयाई न दे ।
() रवीन्द्र प्रभात
यूँ रहो बेखबर अब न इस दौर में-
जवाब देंहटाएंकि पडोसी कि आहें सुनाई न दे ।
बहुत ही चिंतन परक शब्द रचना ।
बहुत सुन्दर और सराहनीय प्रस्तुती..........बड़ी दुखद स्थिति है देश और समाज की.......लोगों को दो वक्त की रोटी और अपने बच्चों को पढ़ाने तथा उसके पालन पोषण के इंतजाम को ही इस भ्रष्ट मनमोहन सिंह सरकार ने इतना दर्दनाक बना दिया है की लोगों को देश और समाज के दर्द को महसूस करने का वक्त या यों कहें ही हिम्मत ही नहीं है अब ......नेहरु खानदान तथा उसके भ्रष्ट वंसजों ने इस देश को बर्बाद कर दिया है .....लेकिन वक्त इस खानदान के नाम पर जमकर थूकेगा एकदिन ......
जवाब देंहटाएंये पंक्तियाँ बेहतरीन लगीं:
जवाब देंहटाएं"यूँ रहो बेखबर अब न इस दौर में-
कि पडोसी कि आहें सुनाई न दे"
बहुत अच्छा लगा..
आभार
nice
जवाब देंहटाएंकद ये छोटा लगे कुछ दिखाई न दे
जवाब देंहटाएंरब किसी को भी ऐसी ऊँचाई न दे ।
मुफलिसों को न दे बेटियाँ एक भी -
मौत दे दे मगर जग हंसाई न दे ।
जिससे तुम हो न राजी इलाही कभी-
बदनुमा-बदचलन रहनुमाई न दे ।
प्तभात जी गहरा चिन्तन और भावनायें लिये हैं ये उमदा शेर। गज़ल बहुत अच्छी लगी। धन्यवाद।