खामोशियों के आलिंगन में आबद्ध वह गुब्बारा
सुबह से तैरता हुआ
अचानक फूट पड़ता है, तब -
जब हमारे आँगन में उतरता है रात का अन्धेरा
चुपके से ।

मेरे पक्के घर की बाजू में रहता है एक कच्चा घर
जागने के वक़्त सोता हुआ नज़र आता है
और सोने के वक़्त जाग जाता है अनायाश ही ।
मैं समझ नहीं पाता हूँ , कि -
क्यों है आज भी वह प्रकृति की दिनचर्या से परे ?

घूरती है एकबार अवश्य -
संध्या की आँखों की उदासी
जब उस घर का प्रभात
ऑफिस के लिए निकलता है सुबह-सुबह
असंख्यक विचारों और उत्पातों का द्वंद्व
तब तक टकराती रहती है , जब तक कि
वह ओझल नहीं हो जाता ......

मगर शाम ढले जब लौटता है प्रभात
अपने उस कच्चे घर की तरफ
पाता है बेदना से कांपते संध्या के शरीर की जलन
आँखों से फूटते अंतर्ज्वालामुखी के अश्क ...
और फिर सुबह की खामोशियाँ
परिवर्तित हो जाती चीखों में !

उस कच्चे घर में यह क्रम न जाने कबतक चलेगा
क्योंकि उस घर का प्रभात
नहीं जानता कि कब उसके जेब में दिखेंगे पूर्णमासी के चाँद ?
आप सोच रहे होंगे , कि क्या वह
नौकरी नहीं करता ?
करता है पूरी इमानदारी के साथ , मगर
हाय री बित्त रहित शिक्षा निति ....
प्रभात अधेर हो गया
मगर पगार नहीं देखा कैसी होती है ?

....कबतक जारी रहेगा यह सांप-सीढ़ी का खेल
क्या वह कच्चा घर कभी पक्का नहीं होगा
क्या संध्या प्रभात को कोसती -
अपनी जिंदगी का पूर्ण विराम कर देगी ?

सुना है सपनों को पेटेंट करने योजना है सरकार की
ताकि कोई और संध्या न देख सके सपने
आँखें नींद में भी जागती रहे
तबतक जबतक इस सरकार का कार्यकाल समाप्त न हो जाए
आगे दूसरी सरकार सोचेगी , कि -
जनता को सपने देखने की छूट दी जाए या नहीं ?
() रवीन्द्र प्रभात

12 comments:

  1. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द ...।

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  2. काश सपनों को भी कोई पैटेंट करा सकता, हमारे सपनों को भी अधिकार मिल जाता।

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  3. ---क्या यह कविता वह बाजू के कच्चे घर वाला कभी समझ पायेगा........?

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  4. सुना है सपनों को पेटेंट करने योजना है सरकार की
    ताकि कोई और संध्या न देख सके सपने
    आँखें नींद में भी जागती रहे
    तबतक जबतक इस सरकार का कार्यकाल समाप्त न हो जाए
    आगे दूसरी सरकार सोचेगी , कि -
    जनता को सपने देखने की छूट दी जाए या नहीं ?
    बेहतरीन कटाक्ष है। बधाई।

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  5. सुना है सपनों को पेटेंट करने योजना है सरकार की
    ताकि कोई और संध्या न देख सके सपने
    आँखें नींद में भी जागती रहे
    तबतक जबतक इस सरकार का कार्यकाल समाप्त न हो जाए
    आगे दूसरी सरकार सोचेगी , कि -
    जनता को सपने देखने की छूट दी जाए या नहीं ?

    उफ़ बेहद भयावह मगर कडवी सच्चाई।

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