......गतांक से आगे
वर्ष-२०१० में मेरी निगाह कई ऐसे ब्लॉग पर गयी, जहां स्तरीय शब्द रचनाएँ प्रस्तुत की गयी थी !शब्द का साहित्य के साथ वही रिश्ता है जो ब्लॉग के साथ है !ब्लॉग हमारी इच्छाओं की वह भावभूमि है जहां पहचान का कोई संकट नहीं होता, अपितु विचारों की श्रेष्ठता का बीजारोपण होता है, भावनाओं का विस्तार होता है और परस्पर स्नेह-संवंधों का आदान-प्रदान !
भावना या इच्छा ! जीवन के मूल में और कुछ नहीं ! प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छा पूरी करने के लिए जीता है , संघर्ष करता है, किन्तु वही व्यक्ति अपनी इच्छा को संकल्प और संकल्प को परिणाम में परिवर्तित कर पाता है जो खींच-तान कर कद को लंबा नहीं करता, अपितु शाश्वत जीवन जीता है ! किसी ने कहा है कि " खींच-तानकर कद को इतना लंबा नहीं किया करते, लंबी परछाई का ढलते सूरज से इक रिश्ता है !" यही कमोवेश ब्लोगिंग के साथ भी है !
वर्ष-२०१० में कुछ ऐसे ब्लॉग से मैं रूबरू हुआ जिसमें सृजन की जिजीविषा देखी गयी वहीं कुछ सार्थक करने की ख्वाहिश भी !जिसमें जागरूकता और सक्रियता भी देखी गयी तथा जीवन के उद्देश्यों को समझते हुए अनुकूल कार्य करते रहने की प्रवृति भी ! इन ब्लोगरों ने अपने चिंतन को इतना स्पष्ट बनाए रखा कि किसी भी प्रकार का पूर्वाग्रह इसे न ढक पाए ! ये जो कुछ भी निर्णय करे उसमें उद्देश्यों की स्पष्टता रहे और एकाग्रता की सघनता भी !इस प्रवृति को आदर्श प्रवृति कहते हैं तो ऐसे ब्लोगर को आप क्या कहेंगे ?
आदर्श ब्लोगर !
यही न ?
आदर्श ब्लोगर !
यही न ?
वर्ष -२०१० में हिन्दी ब्लॉगजगत के लिए सबसे बड़ी बात यह रही कि इस दौरान अनेक सार्थक और विषयपरक ब्लॉग की शाब्दिक ताकत का अंदाजा हुआ । अनेक ब्लोगर ऐसे थे जिन्होनें लेखन के दौरान अपने चंदीली मीनार से बाहर निकलकर जीवन के कर्कश उद्घोष को महत्व दिया , तो कुछ ने भावनाओं के प्रवाह को । कुछ ब्लोगर की स्थिति तो भावना के उस झूलते हुए बटबृक्ष के समान रही जिसकी जड़ें ठोस जमीन में होने के बजाय अतिशय भावुकता के धरातल पर टिकी हुयी नजर आयी ।
जीवन के कर्कश उद्घोष को महत्व देने वाले प्रखर ब्लोगरों में इस वर्ष ज्यादा सार्थक और ज्यादा सकारात्मक नज़र आये शब्दों के सर्जक अजीत वाडनेकर , जिनका ब्लॉग है - शब्दों का सफर । अजीत कहते हैं कि- "शब्द की व्युत्पति को लेकर भाषा विज्ञानियों का नजरिया अलग-अलग होता है । मैं भाषा विज्ञानी नही हूँ , लेकिन जब उत्पति की तलाश में निकालें तो शब्दों का एक दिलचस्प सफर नज़र आता है । "अजीत की विनम्रता ही उनकी विशेषता है । वर्ष-२०१० में इनके ब्लॉग पर प्रकाशित २२४ पोस्टों में से जिन-जिन पोस्ट ने पाठकों को सर्वाधिक आकर्षित किया उनमें से प्रमुख है पहले से फौलादी हैं हम… , फोकट के फुग्गे में फूंक भरना , जड़ से बैर, पत्तों से यारी ,भीष्म, विभीषण और रणभेरी ,[नामपुराण-6]नेहरू, झुमरीतलैया, कोतवाल, नैनीताल ..... आदि !
शब्दों का सफर की प्रस्तुति देखकर यह महसूस होता है की अजीत के पास शब्द है और इसी शब्द के माध्यम से वह दुनिया को देखने का विनम्र प्रयास करते हैं . यही प्रयास उनके ब्लॉग को गरिमा प्रदान करता है .सचमुच यह ब्लॉग नही शब्दों का अद्भुत संग्राहालय है, असाधारण प्रभामंडल है इसका और इसमें गजब का सम्मोहन भी है ....!
इस श्रेणी का दूसरा ब्लॉग है कर्मनाशा !
कर्मनाशा !
विंध्याचल के पहाड़ों से निकल कर काफ़ी दूर तक उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा उकेरने वाली यह छुटकी-सी नदी अंतत: गंगा में मिल जाती है किन्तु आख्यानों और लोक विश्वासों में इसे अपवित्र माना गया है ! आखिर कोई भी नदी कैसे हो सकती है अपवित्र? इस ब्लॉग से जुड़े शब्दों के सर्जक सिद्धेश्वर का कहना है कि "अध्ययन और अभिव्यक्ति की सहज साझेदारी की नदी है कर्मनाशा .....!" "खोजते - खोजते
बीच की राह
सब कुछ हुआ तबाह।
बनी रहे टेक
राह बस एक...!"
ये पंक्तियाँ सिद्धेश्वर ने अपने ब्लॉग पर लिखे १० फरवरी-२०१० को, जो हिंदी ब्लोगिंग के उद्देश्यों को रेखांकित कर रही है !इसे यदि हिंदी ब्लोगिंग हेतु पञ्च लाईन के रूप में इस्तेमाल किया जाए तो शायद किसी को भी आपत्ति नहीं होगी ,क्योंकि मानव जीवन से जुड़े विविध विषयों को मन के परिप्रेक्ष्य में देखना ही इस ब्लॉग की मूल अवधारणा है !
उपरोक्त दोनों शब्दकार कबाडखाना से जुड़े हैं और श्रेष्ठ कबाडियों की श्रेणी में आते हैं !
सब कुछ हुआ तबाह।
बनी रहे टेक
राह बस एक...!"
ये पंक्तियाँ सिद्धेश्वर ने अपने ब्लॉग पर लिखे १० फरवरी-२०१० को, जो हिंदी ब्लोगिंग के उद्देश्यों को रेखांकित कर रही है !इसे यदि हिंदी ब्लोगिंग हेतु पञ्च लाईन के रूप में इस्तेमाल किया जाए तो शायद किसी को भी आपत्ति नहीं होगी ,क्योंकि मानव जीवन से जुड़े विविध विषयों को मन के परिप्रेक्ष्य में देखना ही इस ब्लॉग की मूल अवधारणा है !
उपरोक्त दोनों शब्दकार कबाडखाना से जुड़े हैं और श्रेष्ठ कबाडियों की श्रेणी में आते हैं !
शब्द प्राणवान होते हैं,गतिमान होते हैं और इसे गति प्रदान करता है ब्लॉग !इस तथ्य को जिन ब्लोगरों ने दृढ़ता के साथ प्रतिष्ठापित किया उनमें प्रमुख हैं - क्रिएटिव मंच-Creative Manch ....एक ऐसा मंच जहां आप पहुँच कर सृजनशीलता का सच्चा सुख अनुभव करेंगे । इस ब्लॉग के मुख्य संयोजक हैं प्रकाश गोविन्द और उनके प्रमुख सहयोगी हैं मानवी श्रेष्ठा, अनंत , श्रद्धा जैन ,शोभना चौधरी , शुभम जैन और रोशनी साहू ।
इस ब्लॉग से जुड़े चिट्ठाकारों का शरू से यह प्रयास रहा है कि कुछ सार्थक करने का प्रयास किया जाए ! आप कोई भी पोस्ट देख सकते हैं भले ही परिलक्षित न हो किन्तु अत्यंत मेहनत छुपी है हर एक पोस्ट में !साज-सज्जा के लिहाज से आम तौर पर किसी के लिए ऐसी पोस्ट तैयार करना संभव नहीं है ब्लॉग जगत में जैसा कि कहा जाता है यहाँ प्रतिक्रियाएं लेन-देन के अंतर्गत होती हैं ! ऐसे माहौल में 'क्रिएटिव मंच' की लोकप्रियता हतप्रभ करती है क्योंकि 'क्रिएटिव मंच' कभी कहीं जाकर प्रतिक्रिया नहीं देता ! इसके बावजूद भी किसी भी पोस्ट पर २५ - ३० प्रतिक्रियाएं आना आम बात है !
इस समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो हमारे लिए प्रेरणा के प्रकाशपुंज हैं । हमें ग़लत करने से वे बचाते हैं और सही करने की दिशा में उचित मार्गदर्शन देते हैं । ऐसे लोग हमारे प्रेरणा स्त्रोत होते हैं । हमारे लिए अनुकरनीय और श्रधेय होते हैं। हिन्दी ब्लॉग जगत की कमोवेश जमीनी सच्चाईयां भी यही है।
कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके विचार तो महान होते हैं, कार्य महान नही होते । कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके कार्य तो महान होते हैं विचार महान नही होते । मगर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके कार्य और विचार दोनों महान होते हैं । हमारे कुछ हिन्दी ब्लोगर भी इसी श्रेणी में आते हैं जिनकी उपस्थिति मात्र से बढ़ जाती है नए चिट्ठों की गरिमा ।
वर्ष-२०१० में सकारात्मक प्रस्तुति को आधार मानते हुए कुछ ऐसे ब्लॉग का चयन किया है,जिसपर अनुपातिक रूप से पोस्ट तो कम प्रकाशित हुए किन्तु पोस्ट की प्रासंगिकता बनी रही , इसमें साहित्यिक ब्लॉग भी हैं और सामाजिक-सांस्कृतिक भी ............... जिनमें प्रमुख है -
सदा का (सद़विचार) / रमण कॉल का ब्लॉग (इधर उधर की) / युनुस खान का (रेडियो वाणी) / रविश कुमार का (कस्बा qasba ) / डा आशुतोष शुक्ल का (सीधी खरी बात..) / मनोज कुमार का (मनोज) /अमरेन्द्र त्रिपाठी का (कुछ औरों की , कुछ अपनी ...)/ प्रेम प्रकाश का ब्लॉग (पूरबिया) / डा रूप चन्द्र शास्त्री 'मयंक' का (शब्दों का दंगल) / राजीव ठेपडा का ब्लॉग (दखलंदाज़ी) / यशवंत माथुर का (जो मेरा मन कहे) / विजय माथुर का (विद्रोही स्व-स्वर में....) / अशोक कुमार पाण्डेय का (जनपक्ष) /रश्मि प्रभा- रवीन्द्र प्रभात का (वटवृक्ष) /रवि रतलामी का (रचनाकार) /मनीष कुमार का (एक शाम मेरे नाम)/ अमितेश का (रंगविमर्श) / आना का ब्लॉग (कविता) / (Lucknow Bloggers' Association लख़नऊ ब्लॉगर्स असोसिएशन) / ललित कुमार का (राइटली एक्सप्रेस्ड) / पारुल पुखराज का (.......चाँद पुखराज का......) / अनूप शुक्ल का (फुरसतिया) / एस एम मासूम का (अमन का पैग़ाम) / मनोज कुमार का (राजभाषा हिंदी) / अमीत-निवेदिता का (बस यूँ ही) /डा पवन कुमार मिश्र का ब्लॉग (पछुआ पवन (pachhua पवन) / विनीता यशस्वी का (यशस्वी) / जीतेन्द्र चौधरी का (मेरा पन्ना) / केवल राम का (चलते -चलते ....!) / सुमनिका का (सुमनिका) / मनोज कुमार का (विचार) / परमेन्द्र सिंह का (काव्य-प्रसंग) / अनुपमा पाठक का (अनुशील) / दिनेश शर्मा का ब्लॉग (प्रेरणा) / सदा का ब्लॉग (SADA ) / प्रत्यक्षा की (प्रत्यक्षा) / प्रकाश बादल का ब्लॉग (प्रकाश बादल) / (नया सवेरा) / संजय बेंगानी का (जोगलिखी : संजय बेंगाणी का हिन्दी ब्लॉग :: Hindi Blog of Sanjay bengani, Hindi site, tarakash blog, Hindi न्यूज़) / अरविन्द श्रीवास्तव का (जनशब्द) / माधवी शर्मा गुलेरी का ब्लॉग (उसने कहा था ..) / नीरज गोस्वामी का (नीरज) / शास्त्री जे सी फिलिप का (सारथी) /(संकल्प शर्मा . . .) / (विद्रोही स्व-स्वर में....) / दीप्ती शर्मा का (स्पर्श) आदि !
हर क्रिया की प्रतिक्रया होती है, जो चंचलता को बनाए रखती है ! हर वाद के साथ प्रतिवाद होता है, जो चंचलता को बनाए रखता है !हर राग के साथ द्वेष जुडा होता है जो चंचलता को बनाए रखता है !विकास के लिए समभाव की,योग की आवश्यकता होती है !चंचलता को शान्ति में परिवर्तित करने की आवश्यकता होती है !अपने आत्मविश्वास को जगाने की आवश्यकता है, ताकि एक सुन्दर और खुशहाल सह-अस्तित्व की परिकल्पना को मूर्तरूप दिया जा सके ! इसके लिए जरूरी है विचारों की द्रढता, क्योंकि कहा भी गया है कि विचार विकास का बीज होता है !
आईये अब एक ऐसे ही दृढ विचारों वाले ब्लोगर की बात करते हैं,जो ब्लॉग के माध्यम से एक नयी सामाजिक क्रान्ति का उद्घोष कर रहा है नाम है जय कुमार झा और ब्लॉग है-
ब्लोगर का कहना है कि -"क्या जनता सिर्फ इसलिए है कि वोट डालकर 5साल के लिए अंधी-बहरी-गूंगी होकर भ्रष्ट नेताओं की अव्यावहारिक,अतर्कसंगत नीतियों को असहाय होकर सहती रहे और यह पूछने को मज़बूर हो कि किससे कहें,कहां जाएं,कौन सुनेगा हमारी? भारत एक गणतंत्र है और अब हम जनता असल मालिक बनकर रहेंगे । क्या आप हैं हमारे साथ? आइए,मिलकर सरकार को आदेश दें।"उपरोक्त विचारों को पढ़कर आपको अंदाजा लग ही गया होगा कि यह ब्लोगर देश और समाज के लिए कुछ करने की जीबटता रखता है,इनके ब्लॉग पोस्ट्स से गुजरते हुए भी यही महसूस होता है !
अपने बारे में जय कुमार झा कहते हैं कि-"मैं बीस वर्षों से टेक्सटाइल और मानव संसाधन से कई बड़ी कम्पनियों के सी.ई.ओ ,प्रोडक्शन मैनेजर और एच.आर.डी मैनेजर के पद पर कार्य करते हुए जुड़ा रहा हूँ / ईमानदारी और उसूलों की वजह से मैं अब मानवीय शोध,सामाजिक जाँच और देश में सही मायने में लोकतंत्र की स्थापना के लिए चल रहे, हर आन्दोलन से जुड़ा हुआ हूँ / मैं चाहता हूँ कि -इस भारत जैसे लोकतंत्र में सही मायने में लोकतंत्र की स्थापना हो यानि ''असल मालिक जनता और सब यहाँ तक कि प्रधानमंत्री तक,एक सच्चे सेवक कि तरह व्यवहार करे,ना कि एक तानाशाह की तरह ''जिससे इस अमीर देश में गरीबी का नामों निशान तक ना हो और हर कोई आम नागरिक हर किसी सरकारी खर्चों और घोटालों की जाँच किसी भी वक्त देश के इमानदार समाज सेवकों से या सामाजिक जाँच के आधार पर कर सके /तब जाकर जनता के खजानों ''सरकारी पैसों ''की लूट बंद होगी /इसके लिए हर नागरिक को निडरता से एकजुट होने कि जरूरत है ,आइए एकजुट हों......!"
हमें गर्व है कि ऐसे लोग आज हिंदी ब्लोगिंग के माध्यम से नयी क्रान्ति की प्रस्तावना कर रहे हैं , इनके विचारों को मेरा नमन !
हमें गर्व है कि ऐसे लोग आज हिंदी ब्लोगिंग के माध्यम से नयी क्रान्ति की प्रस्तावना कर रहे हैं , इनके विचारों को मेरा नमन !
.........चलते -चलते मैं एक चौंकाने वाला तथ्य आपके सामने रख रहा हूँ कि एक ब्लॉग जिसकी शुरुआत २७ नवम्बर २०१० को हुई ! वर्ष के आखिरी ३५ दिनों में इसपर वैसे तो मात्र १२ पोस्ट प्रकाशित हुए मगर इस ब्लॉग के प्रशंसकों की संख्या ५० के आसपास पहुँच गयी , ब्लॉग का नाम है नज़रिया और ब्लोगर हैं - सुशील बाकलीवाल जबकि -
एक पुराना ब्लॉग है अमरेन्द्र त्रिपाठी का कुछ औरों की , कुछ अपनी, जो वर्ष २००९ से ब्लॉगजगत का हिस्सा है, किन्तु इस ब्लॉग पर पूरे वर्ष में केवल १४ पोस्ट ही प्रकाशित हुए !हलांकि इस पर जो भी पोस्ट प्रकाशित हुए हैं वह गंभीर विमर्श को जन्म देने में सक्षम है !
एक पुराना ब्लॉग है अमरेन्द्र त्रिपाठी का कुछ औरों की , कुछ अपनी, जो वर्ष २००९ से ब्लॉगजगत का हिस्सा है, किन्तु इस ब्लॉग पर पूरे वर्ष में केवल १४ पोस्ट ही प्रकाशित हुए !हलांकि इस पर जो भी पोस्ट प्रकाशित हुए हैं वह गंभीर विमर्श को जन्म देने में सक्षम है !
.......जारी है विश्लेषण मिलते हैं एक विराम के बाद
एक उत्तम विश्लेषण।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंलगता है 22000 ब्लागों में से कोई नहीं छूटेगा। यह हिन्दी ब्लागीरी की ताकत ही कही जाएगी कि उन में से हर कोई विश्लेषण के योग्य है।
जवाब देंहटाएंएक निष्पक्ष विश्लेषण। पूरा खाका खींच दिया है आपने।
जवाब देंहटाएंयह विश्लेषण निश्चित रूप से आने वाले समय में मील का पत्थर साबित होगा , द्विवेदी जी ने विल्कुल सही कहा है की आपके विश्लेषण में पूरे २२००० ब्लॉग की चर्चा किसी न किसी रूप में होगी! हिंदी ब्लॉगजगत में शाययद ही कोई ऐसा होगा जिनके भीतर कुछ वेहतर करने की ऐसी ख्वाहिश होगे ........बहुत सुन्दर विश्लेषण !
जवाब देंहटाएंमनोज जी से सहमत विल्कुल निष्पक्ष है यह विश्लेषण !
जवाब देंहटाएंThis is a Mile Stone of Hindi Bloging, Congretulation !
जवाब देंहटाएंसारगर्भित और सटीक ....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका रविन्द्र जी मेरी भावना को अपने इस पोस्ट के जरिये दूर तक ले जाने के प्रयास के लिए....निश्चय ही आपका प्रयास ब्लोगिंग को विस्तार देने वाला है.....आपका प्रयास अनुकरणीय है....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपको. इस वृहद विश्लेषण में 'नजरिया' को उसकी इस उपलब्धि के साथ स्थान देने के लिये । आभार सहित...
जवाब देंहटाएं"वही व्यक्ति अपनी इच्छा को संकल्प और संकल्प को परिणाम में परिवर्तित कर पाता है जो खींच-तान कर कद को लंबा नहीं करता, अपितु शाश्वत जीवन जीता है ! किसी ने कहा है कि " खींच-तानकर कद को इतना लंबा नहीं किया करते, लंबी परछाई का ढलते सूरज से इक रिश्ता है !" यही कमोवेश ब्लोगिंग के साथ भी है !"
जवाब देंहटाएंमहान विचार !
सहेजने योग्य विश्लेषण.....आभार...
जवाब देंहटाएंआपके आकलन से कई नए तथ्यों की भी जानकारी मिलती है.
जवाब देंहटाएंसार्थक और विषयपरक विश्लेषण
जवाब देंहटाएंआभार आपका
धन्यवाद रवीन्द्र जी !
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लोगिंग के प्रति आपका समर्पण अत्यंत सराहनीय है ।
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र प्रभात जी!
जवाब देंहटाएंआपने विस्लेषण बहुत ही परिश्रम से निष्पक्षरूप से किया है! काफी कुछ जानकारिया दे दी आपने तो इस आकलन में!
रविन्द्र जी आप बहुत मेहनत करते हैं चिट्ठों की जानकारी के लिए।
जवाब देंहटाएंआपको सलाम करते हैं।
आभार
सार्थक और सटीक विश्लेषण.
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉगिंग की ताकत दिन प्रतिदिन बढ़ती जाये यह शुभकामना । सार्थक लेखन के चयन का अपना यह प्रयास जारी रखें ।
जवाब देंहटाएंvismayvimugdh hi is parikalpna mein hoti hun ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय रविन्द्र प्रभात जी
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
आपका विश्लेषण सारगर्भित और सटीक कम शब्दों में बड़ी बातें ....आपका प्रयास मेरे लिए नित नयी उर्जा लेकर आता है ....आपका आभार
बहुत ही गहन और सारगर्भित विश्लेषण........... जय कुमार जी के विचार काफी प्रभावित करते है. उन्हें यहाँ पाकर बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंबिलकुल निश्पक्ष विश्लेशण है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसीधी सच्ची बात , विश्लेषण करना एक मुश्किल काम है । सच कहा ..कि " खींच-तानकर कद को इतना लंबा नहीं किया करते, लंबी परछाई का ढलते सूरज से इक रिश्ता है !" .....ढलता सूरज द्दिप से बुझ जाता है , जैसे दीपक की लौ बुझने से पहले जोर से तीखी हो कर जलती है ..सारा तेल यानि ऊर्जा चुक जाती है ...इसीलिए कबीर ने कहा , अंधियारे दीपक रहिये , इक वस्तु अगोचर रहिये ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर विश्लेषण
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग संकलन और उनका विश्लेषण श्रमसाध्य, उपयोगी होने के साथ साथ इतिहास का रूप लेने लगा है... बधाई के पात्र हैं आप
जवाब देंहटाएंआपकी इस खोज के लिये शब्द ही नहीं है तारीफ के हर कड़ी बेहतरीन विश्लेषण के साथ संग्रहणीय होती जाती है ...शुभकामनाओं के साथ आभार ।
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र प्रभात जी आपका हिंदी ब्लोगिंग के प्रति ऐसा समर्पण और श्रम देखकर चकित हूँ..अभिभूत हूँ ! आपके द्वारा ब्लॉग संकलन और उसका विश्लेषण भविष्य की ब्लागिंग को नयी दिशा और ऊर्जा देगा !
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुभकामनाएं
* रवीन्द्र भाई, निश्चित रूप से आपके द्वारा किए जा रहे इस ब्लॉग विष्लेषण को हिन्दी ब्लॉगिंग के इतिहास में स्रोत सामग्री के रूप में इस्तेमाल और याद किया जाएगा। इस काम का तात्कालिक / समकालीन महत्व हो है ही मैं तो इसे भविष्य के इस महत्वपूर्ण दस्तावेज के रूप देख रहा हूँ। बभाई और आभार।
जवाब देंहटाएं** इस समय हिन्दी ब्लॉगिंग से जुड़े समूहों में एग्रीगेटर्स की उपस्थिति / अनुपस्थिति को लेकर कुछ कहा - सुना - देखा जा रहा लेकिन मुझे तो आपके विष्लेषण से ही ढेर सारे ठिकानों की राह मिल जाती है। जिस तरह किताबों/ पत्रिकाओ की समीक्षा होती है और पाठक को एक राह मिलती है विसा ही कुछ यहाँ है; न केवल है बलिकि अच्छी तरह से और अच्छा है।
*** हिन्दी ब्लोग की बनती हुई दुनिया में मेरा काम जैसा भी है उसे आपने रेखांकित किया यह देख - पढ़ कर अच्छा लगा और भान हुआ है क्या और कैसे क्या करना है ताकि 'पंक्ति' में सबके साथ रहते हुए (भी) पहचान न खोए और नई राहें खुली रहे। शुक्रिया दिल से।
बहुत सुन्दर विश्लेषण ! पढ़ कर काफी जानकारी मिली ।
जवाब देंहटाएं