स्वयं के साथ आँख मिचौली ।
(courtesy-Google images)
" खेलें तरंग आँख मिचौली, सागर किनारे..!!
उठे, गिरे फिर उठे, समीर का हस्त थामे ..!!"
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नोट- यह लेख में दर्शाये गये विचारों का तात्पर्य, कुछ ऐसी समस्याओं के प्रति समाज के सभी व्यक्ति का, ध्यानाकर्षित करना है, जो हमारी भारतीय सभ्यता एवं संस्कार का ह्रास करने पर तूली है । कृपया लेख का आकलन इसी संदर्भ में करें ।
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प्रिय दोस्तों,
कितने दुःख की बात है..!! अभी-अभी, अपनी नई फिल्म की पब्लिसिटी के लिए कुछ नामाँकित फिल्मी सितारों ने, आतंकवाद के बारे में पाकिस्तान को क्लिन चीट देने का सत्कर्म(!!!) किया । उनकी मनसा साफ थीं, पाकिस्तान और विदेश में, अपनी फिल्म कहीं बॉक्स ऑफ़िस पर पीट ना जाएँ?
शायद उन्होंने, यह विचार व्यक्त करने से पहले, अपना स्वयं निरीक्षण (Self Inspection) नहीं किया होगा ।
हालांकि, हमारे देश में वाणी स्वातंत्र्य है । सबको अपने विचार पेश करने की कानूनी आज़ादी है । सब के विचारों का आदर भी होना चाहिए, मगर मामला जब समाज की संवेदनाओं से जुड़ा हुआ हो, तब अपने विचार पर्याप्त स्वयं निरीक्षण के बाद ही सार्वजनिक रुप से प्रकट करने चाहिए ।
आजकल हरेक न्यूज़ चैनल, अपने आप को नंबर -१ सिद्ध करने के लिए, 'BREAKING NEWS`, के नाम पर सनसनी फैलाने के इरादे से,छोटी सी बात को बड़ा न्यूज़ बनाकर, हम सबको बेख़ौफ परोंस रही है ।
यह बात तो सब के मन में स्पष्ट है की..!!
* इन्सान बीमार होता है, तब डॉक्टर के पास जाता है ।
* इन्सान, इन्साफ़ चाहता है तब ऍडवोकेट और अदालत के पास जाता है ।
* जब इन्सान को मन की शांति चाहिए, वह धर्मगुरु के पास या फिर धर्म स्थान में जाता है ।
अब आप कल्पना कीजिए, बीमार इन्सान डॉक्टर के बजाय, लॉयर के पास जाएँ तब क्या होता? आप के लिए ऐसी कल्पना करना भी बहुत मुश्किल है, मगर ऐसी कल्पित घटनाएँ न्यूज़ चैनल के हिसाब से, `BREAKING NEWS` बन सकती है ।
न्यूज़ चैनल के नंबर-१ की इस लड़ाई में, सच्चे और तटस्थ न्यूज़ न जाने कहाँ खो गये हैं । हम सब सत्य समाचारों की आशा में रिमोट लेकर बैठे रहते हैं और हमको ज्यादातर दिखाए जाते हैं, बिना सर-पाँव के अर्थहीन ब्रेकिंग न्यूज़ ।
* क्या हम सब उपभोक्ता-ग्राहक पर यह, " ईमोशनल अत्याचार" नहीं है ?
* खुद को वाल्मीकि ॠषि मानने वाले, यह सभी न्यूज़ चैनलों के सर्वेसर्वा का भूतकाल किसी डाकू-लूटारें से कम नही, ऐसी कोई प्रमाण-भूत शोध आजतक क्या किसीने की है?
* `बाय हूक या कुक` पूर्व आयोजित स्टोरी को बढ़ा-चढ़ा कर,`BREAKING NEWS` के नाम पर बेचना, व्यावसायिक रूप में क्या सही कर्म है?
* क्या अपने आप को समाज के प्रहरी के रुप में पेश करनेवाला यह `तथाकथित`(SO CALLED) बुद्धिजीवी वर्ग दूध का धुला होता है?
* या फिर,`बदनाम हुए तो क्या नाम तो हुआ..!!` यह ख़याल मन में लिए, अपने न्यूज़ चैनल की व्यूअरशीप बढ़ाने के चक्कर में, वह सभी अपने नैतिक मानवीय धर्म पालन की सही दिशा से, रास्ता भटक गये हैं?
* भारतीय संविधान के अनुसार, ऐसी सनसनी मचाने वाले ज्यादातर स्टिंग ऑपरेशन खुद क्या एक गुनाह नहीं है?
* अपने व्यूअर्स को क्या देखना है? कितनी मात्रा में देखना है? कितनीबार देखना है? यह सब गंभीर बातों का किसी न्यूज़ चैनल ने कभी गंभीरता से क्या सर्वे करवाया है? अगर हाँ, तो क्या उन निष्कर्ष पर सार्थक अमल किया गया है?
और सबसे चिंतन करने योग्य बात यह है की, खुद को वाल्मीकि ॠषि मानने वाले और अपने आप को समाज के प्रहरी के रुप में पेश करनेवाले यह बुद्धिजीवी वर्ग ने, क्या कभी थोड़ा सा समय निकालकर, स्वस्थ मन से, स्वयं निरीक्षण (Self Inspection) किया होगा या कभी करते होंगें?
मेरा नम्रतापूर्वक मानना है, कीसीभी देश की पहचान, राष्ट्र प्रेमी देशवासी, उच्च संस्कारी समाज से होती है । ऐसे में, समाज को बदनाम करनेवाली, झूठी या बनावटी, मानवता मूल्य विध्वंसक, ऑफ़िस टेबल मेड कहानी निर्माण करने जैसी, किसी भी प्रवृत्ति को कभी उचित नहीं ठहराया जा सकता ।
सवाल यह है की, हम इसमें क्या कर सकते हैं?
ज़रा ठहरिए..!! हम बहुत कुछ कर सकते हैं ।
सन- १९७४ में रिलीज़ की गई, निर्माता-निर्देशक श्री मनमोहन देसाईसाहब की फिल्म, `रोटी` में, गीत-कार श्रीआनंदबक्षीजी का लिखा, श्रीलक्ष्मीकांत-प्यारेलालजी का संगीतबद्ध किया हुआ और सुप्रसिद्ध गायक श्रीकिशोरकुमारजी का गाया हुआ एक गीत है,
"यार हमारी बात सुनो,ऐसा एक इन्सान चुनो, जिसने पाप ना किया हो जो पापी ना हो । इस पापन को आज सजा देंगे, मिलकर हम सारे, लेकिन जो पापी ना हो वह पहला पत्थर मारे । पहले अपना मन साफ़ करो फिर औरोंका इन्साफ़ करो । यार हमारी....!!"
यह सुंदर गीत के बोल में, स्वयं निरीक्षण करने ही बात पर ज़ोर दिया गया है ।
ख्रिस्ती धर्म में इस महान सत्य को सुंदर ढंग से उजागर किया गया है,
"The heart is deceitful above all things, and desperately wicked: who can know it?" (Jeremiah 17:9)
अर्थात - "दुन्यवी बातों की ओर, हृदय कपटी, धोखेबाज़ और भ्रम पैदा करने वाला
ला-इलाज, पापी और अवगुण से भरा होता है । आजतक उसे कौन जान पाया है?"
समाज को अगर अपनी पहचान विकृत नहीं करनी है तो, अंधकार से भरे इस माहौल में, अपने स्वयं निरीक्षण के द्वारा, स्पष्ट विचारों की रौशनी चारों ओर फैला कर इस अंधकार को दूर करने का, सामूहिक, सफ़ल प्रयास सब को एकजुट होकर करना होगा ।
चाईनिज़ तत्व-चिंतक कॉन्फूसियस (Confucius - around 551 BC – 479 BC) के मतानुसार, मानवी अपने समग्र परिवार के संस्कार-Values, शिक्षा-Education और व्यवस्थापन क्षमता - Management के उत्थान द्वारा ही व्यक्ति-परिवार-समाज और राष्ट्र का विकास कर सकता है ।
स्वस्थ स्वयं निरीक्षण क्या बला है?
समुद्र में उठती-गिरती लहरों की तरह, हमारे जीवन में भी कई ऐसी आकस्मिक घटनाएँ घटती रहती हैं । जीवन काल के लंबे अंतराल के दौरान, भविष्य में सतानेवाली, ऐसी घटनाओं की पहचान के पाठ, सबसे पहले हमारी प्रथम गुरू माँ (Mother) पढ़ाती है । वह इन्सान बड़ा अभागी होता है जिनके सर से, उसके जन्म के साथ ही माता का साया उठ जाता है ।
संसार की प्रथम गुरु माता, अपनी गोद में लेटे हुए ,अपने बालक को स्तनपान कराते समय, अपनी साड़ी का पल्लु, बालक के चेहरे पर ओढ़ाकर उसे अंधकारमय परिस्थिति से अवगत कराने का प्रयास करती है ।
जब बालक अपनी माता को ढूंढने के प्रयास में गोद में, घबराहट से उछलने लगता है, तुरंत माता प्यार-दुलारभरी आवाज़ देकर बच्चे को अपना ओर संसार के होने का अहसास कराती है ।
बालक को वयस्क होने के बाद पता चलता है की, माता द्वारा खेला गया, यह आँखमिचौली का खेल, अपने बच्चे को यह सिखाने का प्रयास था की,
" बेटे, शायद तुम्हारे वयस्क होने तक अगर मैं रहुं ना रहुं, पर बड़े हो कर तुम्हें इस अंधकारमय दुनिया में, मेरे मार्गदर्शन के बगैर ही, सर्वे आधी-व्याधि-उपाधि का हल खुद, अपने आप ही ढूंढना होगा ।"
स्वयं निरीक्षण का, कितना सुंदर उपदेश है यह..!! तीन या चार माह का बच्चा, समझ सकें, ऐसा आँख़ मिचौली का कितना सरल खेल, शायद सिर्फ माँ-गुरु के दिल में ही आ सकता है ।
वयस्क होने के वाद, हम सब इस खेल के सही मर्म को जाने बीना ही, यही अद्भुत खेल, हमारे यार-दोस्तों के साथ खेलते रहते हैं ।
अपनी प्यारी माता की गोद में प्राप्त की गई आँख़ मिचौली के खेल से हमें क्या शिक्षा प्राप्त होती है?
* जीवन में आने वाली हर मुश्किल का सामना कैसे किया जाए ।
* निष्क्रियता को कैसे मात दी जाए ।
* अपना मार्ग खुद प्रशस्त करके, लीड़रशीप के गुण कैसे विकसित किए जाएं ।
* अंधकारमय अज्ञान की स्थिति में, अपने अंतर आत्मा की आवाज़ को कैसे पहचाना जाएं ।
* अपने जीवन विकास के लिए, उच्च लक्ष्यांक कैसे कायम किए जाएं।
* अपनी स्मृति-स्मरण शक्ति की धार को कैसे तेज़ किया जाएं।
* नयी-नयी राह ढूंढने के लिए कल्पना शक्ति को किस तरह बढ़ाया जाए ।
* जीवन की कठिन से कठिन समस्याओं का समाधान कैसे चूटकीयों में ढूंढा जाए ।
* असंभव से लगते स्वप्नों को मन में कैसे संजोये । (जीवन-विकास के लिए, यह भाव भी जरूरी होता है ।)
* कष्टदायक आकस्मिक हालात में शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक आघात सहने की क्षमता विकसित करना ।
* निराशाजनक स्थितिओं मे हतोत्साह पर कैसे काबू पाया जाए यह सिखना ।
* उपलब्ध संसाधन और स्थल का, निजी लाभ के लिए महत्तम उपयोग करना सिखना ।
* खुद की कार्य-क्षमता का समय समय पर आकलन करना ।
* तीव्र गति से, बदलते रहते समय और संयोग में समय रहते, योग्य निर्णयात्मक मानसिकता विकसित करना ।
* पराजय के समय पराजय के कारण रुप ग़लत तरीकों और विजय के समय विजय के कारण रुप सही कार्यप्रणालिको मन में-जीवन में सदा याद रखने की आदत डालना ।
* कल्पना शक्ति-निश्चय शक्ति-विचार शक्ति और कार्यप्रणाली के बीच में तालमेल बनाना सिखना ।
* अपने पराजय को खेलभाव से झेलने की शक्ति प्राप्त करना ।
* पराजय का भय, नकारात्मक विचारों को परे रखकर उनको मन से भगाने की आदत डालना ।
* गतिशील जगत में, हरवक़्त आने-जाने वाली किसी भी मुश्किल का ड़्टकर मुकाबला करने की क्षमता पाना ।
* प्रतिस्पर्धी-विपक्ष का सदैव आदर करना सिखना ।
* खुद को, जित-पराजित प्रति पक्ष के पलडे में रखकर अपने आई.क्यू. के लेवल-अंक को विजयी ऊँचाई पर ले जाना ।
* जय-पराजय को ध्यान में न लेते हुए, कर्म का संतोष पाने की क्षमता हासिल करना ।
*अपनी खुद की आंतरिक क्षमता को सही ढंग से पहचान कर, उसे ताक़तवर बनाना ।
* व्यक्तिगत और सामूहिक रुप से, नये नये प्लानिंग करना और उसे कारगर ढ़ंग से अमल में लाना ।
* जीवन में समृद्धि पाने के नये तरीके खोजना और उस समृद्धि को कायम करने के सही रास्ते खोजना ।
* अमाप धैर्य, विशिष्ट कौशल, ज्ञानसंचय द्वारा अपनी स्वतंत्र सामाजिक पहचान कायम करना ।
* नैतिक, सच्चे और कानूनी रास्ते पर चल कर विजय का मूल्य समझना ।
* कार्य पूर्ण होने तक आंतरिक उर्जा को स्वस्थ और शांत मन से बनाये
रखना ।
* अन्य संबंधित लोगों की ग़लतियों को माफ़ करने की अच्छी आदत ड़ालना ।
* बिगड़े हुए संबंधों को फिर से मधुर बनाना सिखना ।
प्रिय मित्रों, Aristotle (384 BC – 322 BC) महान ग्रीक फिलोसोफर एरिस्टोटल ने भी` पढ़ाई के साथ ही स्वयं की घड़ाई ।` करने की भारतीय परंपराओं का समर्थन किया है ।
सन-१९७१ में जन्मे अमेरिकन लेखक डोनाल्ड मिलर की बेस्ट सेलर किताब,`A Million Miles in a Thousand Years, (सब टायटल) , What I Learned While Editing My Life.`में भी स्वयं निरीक्षण द्वारा जीवन प्रणाली का सदैव ऍडीटींग करते रहने की बात का उन्होंने भी पुरजोश समर्थन किया है ।
पुरी किताब का केन्द्रवर्ती विचार यही है की," अच्छा जीवन जीने के लिए मानसिक शक्तियों पर, सत्कर्म द्वारा, सहेतु दबाव डालकर, सही ढंग से जीने की, बेहतर जीवन गाथा लिखी जा सकती है ।"
बचपन में करीब सभी विद्वान पाठक मित्रों ने, दला तरवाडी और वशराम भुवा की कहानी पढ़ी ही होगी ।
किसी ओर की मेहनत से उगाये हुए सब्जीओं की बाडी के बैंगन, दला तरवाडी नामक लालची व्यक्ति, अपनी सहुलियत के मुताबिक, बाड़ी के मालिक की अनुपस्थिति में, बाड़ी से ही पूछ कर बैंगन तोड़ लेता हैं ।
इतने मे ही बाड़ी का मालिक वशराम भूवा, यह नायाब चोरी का अजीब नज़ारा देखता है । फिर बाडी का मालिक उस लालची दला तरवाडी को सज़ा के तौर पर हाथ पैर बाँधकर, एक कुएँ में उल्टा लटकाकर, कुएँ को पूछ कर, उसी लालची इन्सान की ही स्टाईल में, दो-चार डुबकी लगवाता है।
दोस्तों, हमें स्वयं निरीक्षण की आदत डालकर, हमारे मन के भीतर टटोलना चाहिए, कहीं हम भी हमारे आसपास के लोगों के साथ ऐसा ही तरीका आज़मा कर मनवांच्छित फल तो प्राप्त नहीं करते हैं ना?
वैसे मुझे पूरा यकीन है, जितने भी विद्वान पाठक मित्र ने यह लेख अंत तक पढने की जहेमत, धीरज के साथ उठाई होगी वह कतई ऐसे ग़लत तरीके जीवन में कभी नही आज़माते होगें ।
मेरा मानना है, हमारे देश में, ग़ुलामी की जंजिरों को तोड़कर, हमें आज़ादी के मनवांच्छित मीठे फल खिलानेवाले, पूज्य महात्मा गांधी बापू से महान, स्वयं निरीक्षण करने वाला लीडर आज के ज़माने में मिलना, घास के ढेर से सुई ढूंढने जैसा मुश्किल सा काम लगता है ।
क्या आप भी ऐसा ही मत रखते हैं?
कृपया मुझे ज़रुर अवगत करना । आपके मत का मुझे इंतजार रहेगा ।
मार्कण्ड दवे । दिनांक-१७-०३-२०११.
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