9 जून... एक महीने से ज्यादा हो गए कुछ लिखे हुए. आज एक महीने के बाद वक़्त निकाल पाया हूँ. ऐसा नहीं है कि वक़्त बिलकुल नहीं था पर जब वक़्त था तो कोई विचार नहीं थे और जब विचार थे तब वक़्त की कमी थी. कई दिनों से एक छोटी सी बात दिमाग में घूम रही है. सोंचा आज निकाल ही दूँ इसे अपने दिमाग से और दूसरों के सोंच में इसे शामिल कर दूँ. 

अपने अंतिम पोस्ट में मैंने लड़कियों की घटती संख्या पे अपने विचार रखे थे. कुछ कारण ढूंढने की कोशिश की थी. आज उसी तर्क से थोडा आगे बढ़ता हूँ...

हमेशा कुछ चीजें सुनने को मिलती है... आप लोगों ने भी सुनी होगी... किसी खाप समूह ने किसी के खिलाफ कोई आदेश जारी कर दिया. किसी लड़के-लड़की ने प्यार करने का "खतरनाक गुनाह" कर लिया उसे समाज से बाहर कर दिया यहाँ तक कि पुरे समाज को ये आदेश दे दिया जाता है उनसे बात तक नहीं करनी. अगर एक ही गोत्र के हो गए तो मार तक दिए गए (खाप द्वारा नहीं पर समाज के तथाकथित ठेकेदारों द्वारा).... किसी मौलवी ने किसी के लिए फ़तवा जारी कर दिया, लड़कियों के कपडे से लेकर रिश्ते तक तय कर दिए. एक घटना याद है जब एक महिला को अपने पति की माँ तक करार दे दिया गया क्योंकि उस महिला के ससुर ने उसके साथ बलात्कार कर दिया था. देश की नामचीन टेनिस खिलाड़ी के छोटे कपडे पहन कर खेलने तक पर भी फतवे जारी हुए है...

ये तो थे कुछ उदाहरण. अब इन्ही के बीच से मेरे मन में कुछ सवाल पैदा होते है. चलो मान लिया कि सामाजिक स्थिरता बनाए रखने के लिए और लड़के-लड़कियों को गलत रास्ते पे जाने से रोकने के लिए ये खाप पंचायत थोड़े कड़े रुख अपनाते है... ये मामला थोडा अलग हो सकता है... ये भी मान लिया कि सामाजिक विकृतियाँ न बढे और संस्कृति को बचाए रखने के लिए कोई भी मौलवी लड़कियों को सलीके के कपडे पहनने की सलाह भी दे देते है (ऐसा तो माँ-बाप भी करते है).... ये मामला भी अलग हो सकता है... पर मेरा सवाल ये है कि आखिर.........
ये समाज और धर्म के ठेकेदार ये आदेश क्यों नहीं जारी करते कि समाज में हर बच्चे (लड़का हो या लड़की) को शिक्षा देना जरूरी है???
आखिर ये फ़तवा क्यों नहीं सुनाई देता कि समाज में भ्रष्टाचार फैलाने वाले को समाज से बाहर कर दिया जायेगा???
ये आदेश क्यों नहीं आता कि शादी में दहेज़ की मांग नहीं की जाएगी???
ये आदेश क्यों नहो आता कि महिलाओं पे घरेलु हिंसा नहीं की जायेगी???
ये फ़तवा क्यों नहीं सुनाई देता कि बाल-मजदूरी कराने वाले को समाज में स्वीकार नहीं किया जायेगा???
आखिर ये फैसला क्यों नहीं आता कि भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ सब मिल-कर एक-जुट होकर लड़ेंगे???
जातिवाद को ख़त्म करने का फैसला या फिर कोई फ़तवा क्यों नहीं आता???
कोई बजरंगदल या कोई शिवशेना जिस तरह जोर-शोर से प्रेम-दिवस और पश्चिमी सभ्यता का खोखला और ढोंगी विरोध करते है वो मिलकर देश में हो रहे भ्रष्टाचार, आतंकवाद, असमाजिकता, असमानता का विरोध क्यों नहीं करते???
कोई फिल्म आई, उसमें कोई एक सीन, या कोई डायलौग अनपची निकली विरोध शुरू हो गया तो फिर किसी अच्छी फिल्म के आने पर उसका समर्थन क्यों नहीं किया जाता???
किसी कार्टून से नेताओं के अस्मिता पर खतरा मंडराने लास्गता है पर जब संसद में बैठ कर पोर्न-क्लिप देखते है तो उनकी इज्जत बढ़ कैसे जाती है???

इन सब सवालों के वक़्त ये खाप पंचायत, फतवे जारी करने वाले मौलवी, शिव-शेना, बजरंगदल, इत्यादि-इत्यादि-इत्यादि कहाँ चले जाते है... उस वक़्त उन्हें समाज पर खतरा महसूस नहीं होता है क्या? समाज सिर्फ क्या प्यार करने वाले लड़के-लड़कियों से खराब हो रहा है? क्या लड़कियों के कपड़ों से ही समाज खराब हो रहा है? क्या उस वत समाज खराब नहीं होता जब किसी महिला कि अस्मत लूट ली जाती है? उस वक़्त उसे सजा सुनाने कोई खाप-कोई मौलवी क्यों नहीं आते? किसी महिला के साथ उसके ससुर ने बलात्कार कर लिया तो उसे अपने ही पति की माँ करार दे दिया गया... जबकि इस तरह तो उस बलात्कारी ससुर को एक तौहफा ही दिया गया (जिससे उसने जबरदस्ती रिश्ते बनाये थे उसके साथ वो रिश्ते बनाने का हकदार हो गया) और सजा तो उस महिला को मिले जिसकी अस्मत भी लूटी, पति भी गया और उसे सौंप दिया गया बलात्कारी के हाथ में... उस वक़्त कहाँ थे खाप और मौलवी???

है कोई जवाब किसी के भी पास???

4 comments:

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