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कई रसीली ,मधुर रूपसी,
मेरे उर में  आती जाती
उनकी  सुरभि,मुझे लुभाती
निश्चित ही स्वादिष्ट बहुत वो होगी,
मेरा मन ललचाता
लेकिन मै कुछ कर ना पाता
क्योंकि मुझे गढ़ने वाले ने ,
मेरे मुख दांत  ना दिये
सिर्फ सूँघना ही नसीब में लिखा इसलिये
मै तो उनके रूप ,स्वाद को कर संरक्षित
उनकी जीवन अवधि बढाता रहता,परहित
यूं ही तरस तरस कर करना जीवन व्यापन
बिना किये रस का आस्वादन ,
कट जाता है ,मेरा जीवन
कई मिठाई,कितने ही फल
कितने ही पकवान,पेय जल
आकर्षित करते रहते है मुझको हर पल 
मेरा मन कितना ही चाहे
मै बेबस ,भरता ही रहता,ठंडी आहें
मन मसोस मै रहता हरदम
तुम चाहो तो इसको कह सकते  हो संयम
बचा खुचा ,घर का सब खाना
है मेरे ही हिस्से आना
मुझे चाहता दिल से गोरस
मै ना अगर मिलूँ,
तो उसका दिल जाता फट
मै संरक्षक ,
जो भी मेरे उर में बसता,
उसका यौवन,संरक्षित रहता है,
एक लम्बी अवधी तक
मै तो हूँ घर घर का वासी ,
सभी गृहणियों का मै प्यारा
मै  रेफ्रिजेटर  तुम्हारा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

2 comments:

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