पहली बार
जब परिकल्पना के समय की लिबास में रवीन्द्र प्रभात जी ने समय की सूई घुमाई
तो कई काल इकट्ठे खड़े
आशीर्वचन बोलों से
शंखनाद कर उठे
मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारा,गिरिजाघर ....
सब साथ हो लिए ...
माँ सरस्वती ने सबको कलम का उपहार दिया
........
यही भावना यही दृश्य
विचारों का मंथन करता गया
कल भी आज भी -
करता रहेगा कल भी ...
अमृत की बूंद बूंद - सबके लिए है
...
नीलकंठ होना पड़ता है
बिना विषपान आगे बढ़ना संभव नहीं
....
तो हम आप हो चुके नीलकंठ
अब शुभ सुन्दर सत्य शिव की प्रतीक्षा है
.... बंधू देर क्यूँ ?
(बस अपना ब्लॉग लिंक भेजें - चयन हमारा होगा .... :)
इतना हक मेरा था - है - होगा)
अमृतपान करके देव और विषपान करके महादेव कहलायें!
जवाब देंहटाएंकरता रहेगा कल भी ...
जवाब देंहटाएंअमृत की बूंद बूंद - सबके लिए है
अनुपम भाव ..
सादर
anupam ....:)
जवाब देंहटाएंdi hamara link bhi dekh lena:)
रश्मि जी, इस उत्तम प्रयास में इश्वर भी आपका साथ दे..बहुत बहुत शुभकामनाओं सहित.
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जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 22 - 11 -2012 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
अधूरे सपने- अधूरी चाहतें!!.........कभी कभी यूँ भी .... आज की नयी पुरानी हलचल में ....संगीता स्वरूप
. .
मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
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