कहता है जोकर..... ।
'' कहता है जोकर सारा जमाना , आधी हकीकत आधा फ़साना ..... । '' एक अरसा बीत गया शोमैन राजकपूर साहब का इंतकाल हुये , किन्तु ''मेरा नाम जोकर '' में फिल्माया गया यह अमर वाक्य तब भी उतना ही प्रासंगिक था , जितना आज है । उन्होने कहा था कि -'' दुनिया एक रंगमंच है और हम उसके किरदार।'' आप रोये, गएँ, मुस्कुराएँ या फिर बसंत आर्य की तरह ठहाका लगाएँ , कहलायेंगे तो जोकर हीं ना ? क्योंकि आज की इस बदलती सदी में हकीकत वयां करने वाला जोकर हीं कहलाता है । आज ब्लोग की दुनिया में अपना सार्थक हस्तक्षेप रखने वाले चाहे शास्त्री जे सी फीलिप हों, परमजीत बाली हों, दीपक भारतदीप हों , उन्मुक्त हों या फिर कोई और सभी इस रंगमंच के किरदार ही तो हैं । चक्कलस वाले अशोक चक्रधर साहब एक एक जमाने से इस रंगमंच पर जोकर की भूमिका का निर्वहन करते चले आ रहे हैं। समीर भाई '' उडन तशतरी '' पर बैठकर कब कहॉ उड़ जाते हैं और कब कहॉ दिख जाते हैं पता हीं नही चलता । भाई आलोक पुराणिक तो आलोक पुरान बांचने में इतने मशगूल हैं कि उन्हें कोई जोकर कहे या फिर चोकर कोई फर्क नहीं पड़ता । हाँ भाई महावीर कुछ अलग दिखते हैं इस रंगमंच पर । भाई सुनील जोगी का क्या , मस्तराम मस्ती में आग लगे वस्ती में। कहिर छोडिये इन बातों को आयिये असल मुद्दे पर आते हैं । पिछले पोस्ट '' हर शाख पे उल्लू बैठा है ..... । '' की व्यापक प्रतिक्रिया हुई , कुछ मित्रों ने एस एम् एस भेजकर मिलावट खोरो के खिलाफ अभियान चलाने की बात कही, कुछ ब्लोग पर अपनी सकारात्मक टिप्नियाँ प्रकाशित की , तो कईयों ने ई- मेल भेजे। उडन तश्तरी
ने कहा- हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम - गुलिश्ता क्या होगा ?--बिल्कुल सही. अच्छा आलेख । शास्त्री जे सी फिलिप ने कहा-"अब तो देशभक्त और गद्दार में कोई अंतर ही नही रहा। हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम - गुलिश्ता क्या होगा ?"सही कहा। दिल बहुत दुखता है इन बातों से. एक बदलाव जरूरी है। उमा शंकर लोहिया ने कहा- सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है, बार -बार पढ़ने का मन कर रहा है, बेहद उम्दा आलेख के लिए दिल से शुक्रिया. मयंक मिश्रा ने कहा- भाई प्रभात जी,इतनी सारी बातें दिमाग़ में आती कहाँ से है ? बहुत बढ़िया है, बधाइयाँ । भाई साहब आपने तो मुद्दे उठा दिए मगर समाधान नहीं बताया, चलिए समधान मैं बता दे रहा हूं । वाणी माधुर हो, विचार हों शुद्ध,सबके हो मन में ईशा, राम , बुद्ध,न मिलावाट हो और न बनावट हो,हर कोई मुस्कुराए बच्चे या वरिद्ध ।अनैतिकता पर नैतिकता को रख दे इंडियाचलिए बोलते हैं ज़ोर से, चक दे इंडिया । परमजीत वाली ने कहा- हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम - गुलिश्ता क्या होगा ?यही तो है आज का सच। दीपक भारतदीप ने कहा- रवीन्द्र प्रभात जी आपके प्रयास सराहनीय है और में अपने ब्लॉग पर आपका ब्लॉग लिंक कर दिया है। भाई महावीर ने कहा- रवीन्द्रदिल को हिला दिया। थोड़े से शब्दों में देश की बागडोर संभालने वालों का बहुत सही खाका खींचा है। अब तो रक्षक ही भक्षक बन गए हैं। कितना सत्य हैःहर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम - गुलिश्ता क्या होगा?बहुत अच्छा लिखते हो, बधाई स्वीकारें। और मेरे मित्र बसंत आर्य ने कहा कि -रवीन्द्र भाई, बहुत खूब! रोज रोज आपके हुश्न मे निखार आता जा रहा है और नित नये नये रचनाऑं से आपकी निखरती धार का अन्दाजा हो रहा है। बस ये यात्रा ऐसे ही चलते रहनी चाहिए। आपने अक्छा लिखा और पढ कर मुझे किसी का ये शेर याद हो आया- जाने कैसे कैसे लोग ऐसे वैसे हो गये जाने ऐसे वैसे लोग कैसे कैसे हो गये। बधाई हो । और तो और हमारे लखनऊ के एक डॉक्टर साहब प्रो कौसर उस्मान कहते हैं कि- यह सच है कि मिलावट ने हमारे रगों में धीरे - धीरे जहर भरने का कम कर रहा है । देखिए कुछ फैक्ट फीगर आपके सामने रख रह हूँ , शायद आप अवश्य सहमत होंगे । खोया में विजातीय वसा यानी सेचुरेटेद फैट मिला होता है , सेचुरेटेद फैट में कोलेस्ट्रोल ज्यादा होता है , जिसका मानव शरीर पर दुष्प्रभाव पड़ता है । सूअर और भैंस की चर्वी में सेचुरेटेद फैट ज्यादा होता है और इनकी चर्वी वनस्पति तेल और देसी घी में आसानी से मिल जाती है । विजतिये वसा से खाना पच नही पाता, मल आंतों में चिपक जाता है । धमनियों में चर्वी जमा हो जाती है । इससे एप्रोजेनिक्स , हृदयाघात , पेट, स्नायु तंत्र के रोगों का खतरा बढ़ जाता है । शरीर में कमजोरी, ऐन्थन, मधुमेह का खतरा बढ़ता चला जाता है । तेलों में अखाद्य तेल यानी नॉन एदिबल तथा आर्जिमों मैक्सिकाना की मिलावट होने से केवल ड्रोप्सी की हीं आशंका नही रहती , अपितु मनुष्य आर्तिओस्क्लोरोसिस से ग्रसित हो जाता है , धम्निया कडी हो जाती है । खाद्य पदार्थों में सोडीयम बाई कर्वोनेट की मिलावट से शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाती है। अम्ल और छार का संतुलन बिगड़ जाता है। शरीर में ऐन्थन, दिल के दौरे के लक्षण महसूस होने लगते हैं । अर्थात खतरनाक है इन चीजों की मिलावट । लखनऊ की
निहारिका कहती है कि- दवाओं में मिलावट तो मानवता की खिलाफ बड़ा जुर्म है । ऐसे लोग तो देश द्रोही हैं , उन्हें तो वही सजा मिलनी चाहिऐ जो आतंकवादी को दीं जाती है। भाई मैंने तो प्रशंगवश इस आलेख को प्रकाशित किया था , क्योंकि एक पखवारे पूर्व लखनऊ- वरावंकी सीमा पर एक परिवार के तीन लोग ड्रोप्सी की चपेट में आ गए । एक तो गरीबी की मार , ऊपर से मिलावट का तांडव । मैं काफी व्यथित हुआ यह सब देखकर और यह व्यंग्य उसी का प्रतिफलन है । आप सभी ने सराहा इसके लिए आप सभी का बहुत - बहुत शुक्रिया, आभार .../ ।
हैं तो हम सब जोकर ही :-)
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