बन रही तल्खियाँ , बेटियाँ !
आज दौतर्स डे है यानी विटिया दिवस । यह एक औपचारिकता मात्र है , जिसे निभा दीं जाती है हर वर्ष जैसे - तैसे । हमारा संविधान हमे धर्म , जति , लिंग में विभेद हीनता की आजादी देता है , मगर क्या हमारे समाज ने इसे पूर्णरूपेण अंगीकार किया है ? यदि आपसे पूछा जाये तो आप यही कहेंगे कदापि नही । यह अलग बात है कि आज हर क्षेत्र में हमारी वेटियाँ अग्रणी है , किन्तु भारत की पूरी आबादी का केवल एक - दहाई हिस्सा । यह विडम्बना है , जिसे स्वीकार करते हुये हम शर्म से पानी-पानी हो जाते हैं , कि हमारे इस खुले समाज में आज भी हमारी वेटियाँ दोयम दर्जे में है । वो अधिकार उसे प्राप्त नही है , जिसकी वे हक़दार हैं। आज भी हमारा समाज वेटियों को बेटों की अपेक्षा कम महत्त्व देता है , उसे प्राथमिकताओं की श्रेणी में नहीं रखा जाता। या चिन्ता का नहीं चिन्तन का विषय है ।
कुछ वर्ष पूर्व मैंने वहुचर्चित '' तंदूर कांड'' से द्रवित होकर एक कविता लिखी थी , जो कतिपय पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता के साथ छापी गयी । आज भी जब मुझे उन पंक्तियों का स्मरण होता है , तो मैं सोचता हूँ कि आज मेरी यह कविता उतनी ही प्रासंगिक है , जितनी कल थी । पंक्तियां देखिए ---
'' बेटियाँ , बेटियाँ , बेटियाँ
बन रही तल्खियाँ , बेटियाँ ।
सुन के अभ्यस्त होती रही,
रात - दिन गलियाँ , बेटियाँ ।
सच तो ये है कि तंदूर में ,
जल रही रोटियाँ , बेटियाँ ।
घूमती है बला रात- भर,
बंद कर खिड़कियाँ , बेटियाँ ।
कौन कान्हा बचाएगा अब,
लग रही बोलियाँ , बेटियाँ ।
आज प्रसंगवश अपनी ग़ज़ल की कुछ पंक्तियाँ आप सभी के बीच लेकर आया हूँ , ताकि आप यह महसूस कर सकें कि क्या हम अपनी बेटियों के प्रति ईमानदारी केसाथ कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं , यदि नही तो आज से करना शुरू कर दीजिए,क्योंकि आने वाले कुछ वर्षों में चाह कर भी नही रोक पाएँगे अपनी बेटिओं को समाज के मुख्यधारा में आने से, ये मेरा विश्वास है!
भाई वाह !!!!
जवाब देंहटाएंआप जैसे उत्प्रेरित करते रहेंगे समाज को तो कभी न कभी बेटियों का दर्जा दोयम से प्रथम होगा ही.
जवाब देंहटाएंअच्छे विचार हैं.
बेहतरीन विचार.
जवाब देंहटाएंमुश्किल यह है कि भौतिक साधनों की उपलबिधयों के मामले में हम पश्चिम् की नकल करते हैं पर हम कुछ आधुनिक विचार जो हमें जो उनसे ग्रहण करना चाहिये नहीं करते
जवाब देंहटाएंदीपक भारतदीप
यह विडम्बना है , जिसे स्वीकार करते हुये हम शर्म से पानी-पानी हो जाते हैं , कि हमारे इस खुले समाज में आज भी हमारी वेटियाँ दोयम दर्जे में है । " बहुत ही उम्दा ल्य्ने है रविन्द्र जी ,सही कह रहे है आप ,आज चाहे हम खुले मुँह से कितना भी कह ले कि आज कि महिलाओं को समान अद्धिकार है ,पर सच तो ये है कि आज भी वो दोयम दर्जे में है । ..बहुत ही अच्छी रचना है रविंदर जी ..ऐसे ही लिखते रहिए ,जल्दी ही आपके ब्लोग पर फिर आना होगा .
जवाब देंहटाएंसच तो ये है कि तंदूर में ,
जवाब देंहटाएंजल रही रोटियाँ , बेटियाँ ।
वाह भाई प्रभात,
काफ़ी गंभीर अनुभूति . उत्कृष्ट और प्रशंसनीय भी.
बधाईयाँ ....../
कुछ कह कर मन की अवस्था को परिवर्तित करना नही चाहता. बहुत अच्छा लिखा आपने. मुझे सजय ग्रोवर का शेर याद आ रहा है
जवाब देंहटाएंलडके वाले नाच रहे थे लडकी वाले गुमसुम थे
याद करो इस वारदात मे शामिल दोनो हमतुम थे.