आज भी -
रोटी और कविता की
कृत्रिम रिक्तता में खडे
कुछ अतृप्त - अनुभवहीन मानव
करते हैं बात
जन - आंदोलन की
कभी प्रगतिवाद , कभी जनवाद , कभी समाजवाद तो
कभी संस्कृतिवाद से जोड़कर ....!
जिनके पास -
न सभ्यता-असभ्यता का बोध है
और न स्वाभिमान का
कोमल एहसास
जिनके इर्द-गिर्द व्याप्त है
क्रूर अथवा अनैतिक मानवीय
संबेदनाओं का संसार
और पारम्परिक मान्यताओं की त्रासदी ।
प्यारी लगती है उन्हें -
केवल अपनी ही गंदी बस्ती
और बरसात में बजबजाती झोपड़ी
फैले होते आसपास
कल्पनाओं के मकड़जाले
और अधैर्य की विशाल चादर ।
यकीनन -
अपनी टुच्ची दलीलें
और पूर्वाग्रह के घटाटोप से
जूझते हुये सभी
छुप जायेंगे एक दिन
धुंध के सुरमई आँचल में
फिर चुपके से निकल जायेंगे
किसी वियावान की ओर
जीवन के -
सुन्दर मुहावरे की खोज में ।
किसी न किसी दिन
लौटेंगी उनकी भी संवेदनाएँ
रचने के लिए कोई कविता
और करने के लिए विजय-नाद
वर्षों से चली आ रही
अभिव्यक्ति की लडाई का .....।।
() रवीन्द्र प्रभात
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किसी न किसी दिन
जवाब देंहटाएंलौटेंगी उनकी भी संवेदनाएँ
रचाने के लिए कोई कविता
और करने के लिए विजय-नाद
वर्षों से चली आ रही
अभिव्यक्ति की लडाई का .....।।
अच्छी पंक्तियाँ है, पढ़कर अच्छा लगा, कई बार बार - बार पढ़ा.
सच बड़ा हीं कड़वा होता है.
जवाब देंहटाएंह्रदय में उतर जाने वाली कविता
जवाब देंहटाएंदीपक भारतदीप
रवीन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता है मन के जीवांत प्रकाश में एक आशा का पुष्प भी खिला दिख रहा है जो कविता को अन्य मकाम पर ले जाकर स्वत: ही इसकी सुगंधी पा रहा है…।
रवींद्र,
जवाब देंहटाएंयह कविता एकदम दिल को छू गई. यह चिट्ठा धीरे धीरे मेरे लिये एक महत्वपूर्ण पडाव बनता जा रहा है जहां सामान्य जीवन के विरोधाभासों को बहुत सुंदर शब्दों मे उकेरा जाता है -- शास्त्री जे सी फिलिप
आज का विचार: जिस देश में नायको के लिये उपयुक्त आदर खलनायकों को दिया जाता है,
अंत में उस देश का राज एवं नियंत्रण भी खलनायक ही करेंगे !!
इस प्रकार की उत्कृष्ट कविता पढ़ने का सौभाग्य देने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता है एकदम दिल को छू गईह्रदय में उतर जाने वाली कविता है ये बात सच है . लोगो ने सही प्रतिक्रिया दी है
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