चाहे लखनऊ हो , दिल्ली हो या फिर मुम्बईसुनने में रोमांच पैदा करता है महानगर , लेकिन जो महानगर में निवास करते हैं उनसे पूछिए महानगर की त्रासदी का रहस्य । भागदौड़ एवं आपाधापी भरा जीवन, प्रदुषण का दुष्परिणाम झेलता जीवन , बडे ढोल में बड़ी पोल खोलता जीवन , भीड़ की चक्रव्यूह में उलझा हुआ जीवन । जीवन जैसे धुँआ पीने की मशीन , जैसे किश्तों में खुदकुशी करने का सबब । चलते कंधे छिलते , सांस लेने को धुँआ , पीने को विषैला जल और आकाश को एक तक देखने को तरसती आँखें । केवल दिल्ली , मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई ही नहीं भरत में लगभग पचीस के आसपास शहरें हैं जो तेजी से अंगराई लेते हुए महानगरीये फेहरीश्त में शामिल होने को वेचैन दीख रहें हैं, मगर विकास के नाम पर वही ढाक के तीन पात ।

वैसे अन्य महानगरों की बात करें तो चक्कलस वाले चक्रधर जीं दिल्ली के बारे में , ठहाका वाले भाई बसंत आर्य मुम्बई के बारे में , उड़न तसतरी वाले समीर भाई कनाडाई महानागरिये जीवन के बारे में मुझसे बेहतर बता सकते हैं । और भी कई ब्लोग वाले हैं जो कोलकाता , चेन्नई आदि महानगरों से जूड़े हैं जो अपने शहर की त्रासदी को बाखूबी बयां कर सकते हैं । अन्य महानगरों के बारे में मैं इमानदारी के साथ कुछ भी नही कह सकता , कयोंकि मैं लखनऊ में हूँ भाई ,यही कह सकता हूँ , कि - कोई सागर दिल को बहलाता नहीं। लीजिये प्रस्तुत है मेरे शहर की पीडा को वयां करती मेरी एक कविता-


तुझपर नहीं होता है क्या
प्रदूषणों का असर
मौन है क्यों
कुछ तो बता लखनऊ शहर ?
बढती हुई जनसँख्या
कटते हुये पेंड़
है सडकों पर पडे हुये
कूड़े- करकट के ढ़ेर
घुलता नहीं क्या
तेरी धमनियों में
गंदगी काजहर
कुछ तो बता लखनऊ शहर ?
आ रही नदी- नालियों से
कड़वी दुर्गन्ध
लौद्स्पीकर की आवाज़
होती नही मन्द
देखता हूँ रोगियों को
आते- जाते / इधर- उधर
कुछ तो बता लखनऊ शहर ?
धुल- धुआं / भीड़- भाड़
शोर- शरावा / चीख- पुकार
रातों की चेन कहाँ
मुआ मछरों की मार
भाग- दौड़/ आपा- धापी में
हो रहा जीवन - वसर
कुछ तो बता लखनऊ शहर ?
उनमादियों के नारे
गर्म हवा की चिमनियाँ
दे रही पैगाम ये
खोलना मत खिड़कियाँ
सायरन की चीख से क्यों
मन में उठ जाता है डर
कुछ तो बता लखनऊ शहर ?
रवीन्द्र प्रभात






4 comments:

  1. भारतीय महानगरों के लिये तो निश्चित ही आपकी कविता की बयानी सटीक है.

    कनाडा में अभी भी स्थितियाँ संतोषप्रद से भी उपर हैं शायद इसी लिये टोरंटो कनाडा का नम्बर २ और विश्व का नम्बर १५ वां शहर माना जाता है लिविंग स्टेन्डर्ड के आधार पर.

    यह एक
    ग्लोबल सर्वे के नतीजे
    के आधार पर कह रहा हूँ मगर यहाँ रहते हुये तो मुझे नम्बर १ ही लगता है.

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  2. वाह भई वाह, आपने क्या खूब लिखा है. लखनऊ के बारे लिखते हुए आपने दुनिया के तमाम महानगरो की अन्तरात्मा के बारे मे सच बयानी कर दी है. आपने मुझे उकसा भी दिया है कि मै मुम्बई महानगर के बारे मे लिखूं. जब आपने बाती जला दी है तो तेल डालना हमारा काम है. देखते रहिए क्या कुछ निकल कर आता है.

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  3. भाई प्रभात,
    आपने अपनी कविता में लखनऊ शहर का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है,
    आपकी कविता को बार -बार पढ़ने का मन कर रहा है, आछी कविता है.

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