मच रहा है मुल्क में कोहराम क्यों ,
राजपथ पर बुत बने हैं राम क्यों ?
रोज आती है खबर अखवार में ,
लूट, हत्या , खौफ , कत्लेयाम क्यों ?
रामसेतु है जुडा जब आस्था से ,
माँगते फिर भी अरे प्रमाण क्यों ?
सभ्यता की भीत को तुम धाहकर ,
कर रहे पर्यावरण नीलाम क्यों ?
जिनके मत्थे मुल्क के अम्नों - अम्मां,
दे रहे विस्फोट का पैगाम क्यों ?
बोलते हम हो गए होते दफ़न ,
चुप हुये तो हो गए बदनाम क्यों ?
कुछ करो चर्चा सियासी दौर की ,
अब ग़ज़ल में गुलवदन- गुल्फाम क्यों ?
जबतलक पहलू में तेरे है प्रभात ,
कर रहे हो ज़िंदगी की शाम क्यों ?
() रवीन्द्र प्रभात
रामसेतु है जुडा जब आस्था से ,
जवाब देंहटाएंमाँगते फिर भी अरे प्रमाण क्यों ?
आज सुबह का अखबार पढ़ कर कुछ ऐसा ही सोचा मैने, केंद्र सरकार कहती है कि ऐसा कोई ऐतिहासिक चरित्र है ही नही, पूरा पुरा कल्पने के आधार पर है...अब इसका क्या जवाब दें?
भाई प्रभात,
जवाब देंहटाएंकाफ़ी गंभीर अनुभूति . उत्कृष्ट और प्रशंसनीय भी.
बधाईयाँ ....../
सही बात है - आस्था से जुड़े मुद्दे बेहतर है आस्था के स्तर पर निपटाये जायें. न उन्हे कानून से और न राजनीति से निपटने का प्रयास किया जाये.
जवाब देंहटाएंआपकी गजल अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंवाह भाई, गजल और इतनी सजावट भी, आप कवि ही नही कलाकार के रूप मे आये है इस बार. आपका ब्लाग देख कर तो मुझे बडी खुशी हो रही है. इतने अच्छे ढन्ग से प्रस्तुत कर रहे है कि लोगो की आवाजाही अपने आप बढने लगीहै.टिप्पणी भी खूब आ रही है. लगे रहे भाई.
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