'' हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था , शौक़ से डूबें जिसे भी डूबना है '' दुष्यंत ने आपातकाल के दौरान ये पंक्तियाँ कही थी , तब शायद उन्हें भी यह एहसास नहीं रहा होगा कि आनेवाले समय में बिना किसी दबाब के लोग स्वर्ग या फिर नरक लोक की यात्रा करेंगे । वैसे जब काफी संख्या में लोग मरेंगे , तो नरक हौसफूल होना लाजमी है , ऐसे में यमराज की ये मजबूरी होगी कि सभी के लिए नरक में जगह की व्यवस्था होने तक स्वर्ग में ही रखा जाये । तो चलिए स्वर्ग में चलने की तैयारी करते हैं । संभव है कि पक्ष और प्रतिपक्ष हमारी मूर्खता पर हँसेंगे , मुस्कुरायेंगे , ठहाका लगायेंगे और हम बिना यमराज की प्रतीक्षा किये खुद अपनी मृत्यु का टिकट कराएँगे । जी हाँ , हमने मरने की पूरी तैयारी कर ली है , शायद आप भी कर रहे होंगे , आपके रिश्तेदार भी ? यानी कि पूरा समाज ? अन्य किसी मुद्दे पर हम एक हों या ना हों मगर वसुधैव कुटुम्बकम की बात पर एक हो सकते हैं , मध्यम होगा न चाहते हुये भी मरने के लिए एक साथ तैयार होना । तो तैयार हो जाएँ मरने के लिए , मगर एक बार में नहीं , किश्तों में । आप तैयार हैं तो ठीक , नहीं तैयार हैं तो ठीक , मरना तो है हीं , क्योंकि पक्ष- प्रतिपक्ष तो अमूर्त है , वह आपको क्या मारेगी , आपको मारने की व्यवस्था में आपके अपने हीं जुटे हुये हैं। यह मौत दीर्घकालिक है , अल्पकालिक नहीं । चावल में कंकर की मिलावट , लाल मिर्च में ईंट - गारे का चूरन, दूध में यूरिया , खोया में सिंथेटिक सामग्रियाँ , सब्जियों में विषैले रसायन की मिलावट और तो और देशी घी में चर्वी, मानव खोपडी, हड्डियों की मिलावट क्या आपकी किश्तों में खुदकुशी के लिए काफी नहीं ?भाई साहब, क्या मुल्ला क्या पंडित इस मिलावट ने सबको मांसाहारी बना दिया , अब अपने देश में कोई शाकाहारी नहीं , यानी कि मिलावट खोरो ने समाजवाद ला दिया हमारे देश में , जो काम सरकार साठ वर्षों में नहीं कर पाई वह व्यापारियों ने चुटकी बजाकर कर दिया , जय बोलो बईमान की ।
भाई साहब, अगर आप जीवट वाले निकले और मिलावट ने आपका कुछ भी नही बिगारा तो नकली दवाएं आपको मार डालेगी । यानी कि मरना है , मगर तय आपको करना है कि आप कैसे मरना चाहते हैं एकवार में या किश्तों में? भूखो मरना चाहते हैं या या फिर विषाक्त और मिलावटी खाद्य खाकर? बीमारी से मरना चाहते हैं या नकली दवाओं से ? आतंकवादियों के हाथों मरना चाहते हैं या अपनी हीं देशभक्त जनसेवक पुलिस कि लाठियों , गोलियों से ? इस मुगालते में मत रहिए कि पुलिस आपकी दोस्त है। नकली इन्कौन्तर कर दिए जायेंगे , टी आर पी बढाने के लिए मीडियाकर्मी कुछ ऐसे शव्द जाल बूनेंगे कि मरने के बाद भी आपकी आत्मा को शांति न मिले ।
अब आप कहेंगे कि यार एक नेता ने रवरी में चारा मिलाया, खाया कुछ हुआ, नही ना ? एक नेतईन ने साडी में बांधकर ईलेक्त्रोनिक सामानों को गले के नीचे उतारा , कुछ हुआ नही ना ? एक ने पूरे प्रदेश की राशन को डकार गया कुछ हुआ नही ना ? एक ने कई लाख वर्ग किलो मीटर धरती मईया को चट कर गया कुछ हुआ नही ना ? और तो और अलकतरा यानी तारकोल पीने वाले एक नेता जीं आज भी वैसे ही मुस्करा रहे हैं जैसे सुहागरात में मुस्कुराये थे । भैया जब उन्हें कुछ नही हुआ तो छोटे - मोटे गोराख्धंदे से हमारा क्या होगा? कुछ नही होगा यार टेंसन - वेंसन नही लेने का । चलने दो जैसे चल रही है दुनिया । भाई कैसे चलने दें , अब तो यह भी नही कह सकते की अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता । क्योंकि मिलावट खोरो ने कुछ भी ऐसा संकेत नही छोड़ रखा है जिससे पहचान की जा सके की कौन असली है और कौन नकली ?
जिन लोगों से ये आशा की जाती थी की वे अच्छे होंगे , उनके भी कारनामे आजकल कभी ऑपरेशन तहलका में, ऑपरेशन दुर्योधन में, ऑपरेशन चक्रव्यूह में , आदि- आदि में उजागर होते रहते हैं । अब तो देशभक्त और गद्दार में कोई अंतर ही नही रहा। हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम - गुलिश्ता क्या होगा ?
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हर शाख पर उल्लू बैठा है
जवाब देंहटाएंअंजाम - गुलिश्ता क्या होगा ?
--बिल्कुल सही. अच्छा आलेख.
"अब तो देशभक्त और गद्दार में कोई अंतर ही नही रहा। हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम - गुलिश्ता क्या होगा ?"
जवाब देंहटाएंसही कहा. दिल बहुत दुखता है इन बातों से. एक बदलाव जरूरी है -- शास्त्री जे सी फिलिप
मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!
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जवाब देंहटाएंprabhat_dlh has sent you this email in Hindi.
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उमा शंकर लोहिया
भाई प्रभात जी,
इतनी सारी बातें दिमाग़ में आती कहाँ से है ? बहुत बढ़िया है, बधाइयाँ . भाई साहब आपने तो मुद्दे उठा दिए मगर समाधान नहीं बताया, चलिए समधान मैं बता दे रहा हूं .
वाणी माधुर हो, विचार हों शुद्ध,
सबके हो मन में ईशा, राम , बुद्ध,
न मिलावाट हो और न बनावट हो,
हर कोई मुस्कुराए बच्चे या वरिद्ध .
अनैतिकता पर नैतिकता को रख दे इंडिया
चलिए बोलते हैं ज़ोर से, चक दे इंडिया....
आपका-
मयन्क
सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है, बार -बार पढ़ने का मन कर रहा है, बेहद उम्दा आलेख के लिए दिल से शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंहर शाख पर उल्लू बैठा है
जवाब देंहटाएंअंजाम - गुलिश्ता क्या होगा ?
यही तो है आज का सच।
रवीन्द्र प्रभात जी
जवाब देंहटाएंआपके प्रयास सराहनीय है और में अपने ब्लॉग पर आपका ब्लॉग लिंक कर दिया है।
दीपक भारतदीप
रवीन्द्र
जवाब देंहटाएंदिल को हिला दिया। थोड़े से शब्दों में देश की बागडोर संभालने वालों का बहुत सही खाका खींचा है। अब तो रक्षक ही भक्षक बन गए हैं। कितना सत्य हैः
हर शाख पर उल्लू बैठा है
अंजाम - गुलिश्ता क्या होगा?
बहुत अच्छा लिखते हो, बधाई स्वीकारें।
रवीन्द्र भाई, बहुत खूब! रोज रोज आपके हुश्न मे निखार आता जा रहा है और नित नये नये रचनाऑं से आपकी निखरती धार का अन्दाजा हो रहा है. बस ये यात्रा ऐसे ही चलते रहनी चाहिए. आपने अक्छा लिखा और पढ कर मुझे किसी का ये शेर याद हो आया- जाने कैसे कैसे लोग ऐसे वैसे हो गये जाने ऐसे वैसे लोग कैसे कैसे हो गये. बधाई हो.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर :)
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