जिसमें साहस विवेक और आत्मबल व्याप्त होता है , उसीको बेटिकट सफर का सौभाग्य प्राप्त होता है !
आज की युवा पीढी जिसे एम जनरेसन की संज्ञा दी जाती है ,जो नि:संदेह हमारे देश को प्रगति की राह पर ले जाने में पूरी तरह सक्षम है .मगर कुछ पुराने रूढीवादियों , खोखले आदर्शों में आबद्ध नेताओं एवं तथाकथित समाजवादिओं की कुत्सित प्रवृतियो का परिवेश उन्हें दिग्भ्रमित करता है और वातावरण प्रदूषित करने में कोई कोर कसर बाकी नही रखता . इसका ज्वलंत उदाहरण पिछले दिनों मैंने बिहार यात्रा के दौरान देखा .मैं रेलवे के जिस कम्पार्टमेंट में यात्रा कर रहा था उसी में कुछ मनचले भी बिना टिकट यात्रा कर रहे थे , जब टी. टी. इ. ने पूछा कि " बेटिकट क्यों चलते हो ?"
तो इसपर उन्होने मजे लेते हुए कहा कि - " भाई, अपने लालू जी की रेल है / बेटिकट यात्रियों की इतनी रेलम-पेल है , ऐसे में हमने टिकट नही ली तो कौन सा गुनाह कर दिया ?" उसके साथ बैठे एक और नव जवान ने अपनी बात कुछ इसप्रकार रखी कि - " भाई साहब , जब खुदा ने बख्शी है यह उमर बेटिकट / तब क्यों न करें हम रेल में सफर बेटिकट ?" बेचारा टी. टी. ई. उस नवजवान की बातों के आगे किं कर्तव्य विमूढ़ हो गया . उसदिन यात्रा के क्रम में उस नवजवान औरटी. टी. ई. के बीच जो विचारों का आदान-प्रदान हुआ उसे मेरा कवि मन लगातार अध्ययन करता रहा ,जिसे बाद में मैंने एक व्यंग्य कविता का रुप दे दिया , जो इसप्रकार है-
!! बेटिकट सफर !!
एक वार एक नवजवान बेटिकट सफर करता हुआ पकडा गया
टी टी ई के गिरफ्त में बाबजह जकडा गया
टी. टी. ई.ने पूछा-
क्यों बेटिकट चलते हो ?
इतना बड़ा संगीन अपराध क्यों करते हो?
नवजवान बोला /अपने लवों को खोला-
" मेरे लिए यह एक सिद्धांत, एक दर्शन है
जीवन सफल बनाने का प्रशिक्षण है
जब खुदा ने बख्शी है यह उमर बेटिकट
तो क्यों न करें हम रेल में सफर बेटिकट ?"
सुनकर वक्तव्य उसका टी. टी. ई. झल्लाया
सिद्धांत-दर्शन की बातें सुन भावावेश में आया
चिल्लाते हुए फरमाया-
" रे मूर्ख ! कैसी बहकी-बहकी बातें करता है
बे-टिकट सफर को सिद्धांत-दर्शन कहता है?
सरकार की संपत्ति को अपनी संपत्ति समझ कर
चल दिए हो बेटिकट पूरी तरह अकड़कर
जब जेल जाओगे/ जेल की मोटी रोटी खाओगे
पछताओगे ,सिद्धांत-दर्शन सब स्वयं भूल जाओगे ....!"
" नहीं महाशय !
अक्सर डरते हैं वही व्यक्ति जेल जाने से
जो डरते हैं कटु सत्य से आंख मिलाने से
क्योंकि जिसमें साहस विवेक और आत्मबल व्याप्त होता है,
उसीको बे-टिकट सफर का सौभाग्य प्राप्त होता है .....!"
इतना कहकर वह नवजवान मुस्कुराया / जेल की अह्मिअत से
उन्हें अवगत कराया और फरमाया-
" महाशय!
जेल जाना तो तीर्थाटन करने के समान है / जेल जाने वाला प्रत्येक व्यक्ति महान है
परम सौभाग्यवान है ....!
क्योंकि जेल ने हीं राष्ट्रपिता गांधी को महात्मा बनाया ,
कृष्ण को पैदा करके परमात्मा बनाया .
चिन्तक हुए जवाहर लाल जेल जाने के पश्चात / नहीं थे वे राजनेता अथवा -
चिन्तक जन्मजात ....!
जेल जाने बाद हीं सबने सुभाष-भगत को जाना
विश्मिल- वीर सावरकर का दुनिया ने लोहा माना ....!
एक और उदाहरण देखें / मस्तिस्क पर जोर डालें और सोचें-
एक वार जब सत्ता में थी कॉंग्रेस आई.
विक्षुब्ध विपक्षी नेताओं ने अपनी ताकत दिखलाई
और खुलकर विरोध जताया ....!
बात बिगराते देख इंदिरा ने-
देश में इमरजेंसी लगाई/ और अगले ही क्षण -
सारे विरोधियों को हवालात की सैर कराई...!
फिर तो लोकनायक बनाकर उभरे जय प्रकाश/ राम मनोहर लोहिया,
चन्द्रशेखर और अटल बिहारी बाजपेयी की लौटरी खुल गयी अनायाश.
इसप्रकार-
अनेक नेता जेल जाने के बाद महान हुए/ जनता की नजरों में-
परम सौभाग्यबान हुए !
देश महान हुआ या ना हुआ यह सोचना निरर्थक है ,
अपना भला हो गया तो जीवन अपना सार्थक है !
नवजवान की बातें सुन , टी. टी. ई. ने अपनी अक्ल दौडाई
तब जाकर उसके भेजे में यह बात आयी
कि, नवजवान की बातों में यकीनन है दम
अब तो न भय रही, न भ्रांति और न भ्रम
क्योंकि जब चलते हैं खुलेआम बेटिकट महात्मा, सिपाही और नेता
तब क्यों न चले हमारा यह बेरोजगार बेटा !
भाई, महात्मा को खौफ इसलिए नही होता
कि चल जाता है धर्म के नाम पर उनका सिक्का खोटा
अब अयोध्या में यानी राम के शरण में जाएँ या-
कृष्ण की जन्मस्थली जेल में धूनी रमायें
क्या फर्क पङता है.
इसीलिए वह नि:संकोच बेटिकट सफर करता है ...!
पुलिस या प्रशासन से कभी नहीं डरता है ... ।
भाई, सिपाहियों की बात अलग है, वे कानून के संरक्षक हैं,
उन्हें कौन पकडेगा वे तो देश के भाग्य विधाताओं के रक्षक हैं .
आप कहीं भी किसी भी क्षेत्र की रेल में जायेंगे
सिपाहियों को बेटिकट हीं पायेंगे !
क्योंकि, वे देश और कानून दोनों के रक्षक हैं
इसीलिए उन्हें बेटिकट सफर का मौरूसी हक है...!
नेताओं की बात मत पूछिए , बहुत बबाल है
क्योंकि हमारे देश के नेता खुद में हीं एक उलझे हुए सवाल हैं
एकबार एक नेता ने कहा- कि सफेदी का मतलब सच्चाई,
बरखुरदार ! कुछ बात समझ में आयी ?
मैंने कहा - कि भेजे में कुछ भी नही आया
तो उसने कहा - यही तो हमारे और तुम्हारे में फर्क है भाया !
मने कहा क्या मतलब?
उन्होने कहा- चलो समझा हीं देता हूँ अब....
कि अपना काम बनता , भाड़ में जाये जनता !
यह बात अपने हीं तक रखना किसी से कहना मत , नही तो -
बेटिकट पछतायेगा / औरों की तरह तू भी जान से जाएगा !
इसलिए देश में जो हो रहा है होने दे ,
किसी को पाने दे, किसी को खोने दे !
देश में पार्टी का आम प्रदर्शन हो अगर
बरबस खींच लेते हैं ये सबकी नज़र
फिर, दिल्ली चलो का नारा बुलंद हो जाता है
यही नेता जनता को बेटिकट सफर करने का बेटिकट सबक सिखाता है
भाई, यहाँ प्रजातंत्र है , कुछ भी असंभव नही है
करिये , करते रहिये जैसी परीपाटी रही है।
जब बेटिकट नेता जी जनता से बेटिकट सफर करवाए तो फ़िर -
बेरोजगारों के साथ सख्ती क्यों की जाये ?
इनका भी होगा कल, इन्हें क्यों सताया जाए ?
जब सरकार की संपत्ति अपनी संपत्ति होती है
तब क्योकर बेटिकट सफर की अशुभ परिणति होती है?
इतना सोचने के बाद जब टी.टी.इ. को अपनी नौकरी का ख़याल आया
तो सिद्धांत-दर्शन का भूत अचानक उतर आया
और उसने फरमाया -
बेटा ! चलना है तो चले बेटिकट महात्मा, सिपाही , नेता
उन लोगों का रे मूर्ख, तू क्यों आश्रय लेता?
बेटिकट सफर का होता परिणाम न अच्छा / कब समझेगा मेरा बच्चा ?
माना कि तेरा कथ्य कटु सत्य है
पर मेरे बालक ,बेटिकट सफर पथ्य नही कुपथ्य है .....!
सुनकर नवजवान मुस्कुराया ,
और बिना किसी उत्तर के कंपार्टमेंट से बाहर आया .
मगर मित्रों वह नवजवान छोड़ गया कई अनुत्तरित प्रश्न -अपने जाने के साथ
.......क्योंकि वह मनुष्य नही था , मनुष्य के रुप में था अपबाद ....मनुष्य के रुप में था अपबाद....!
() रवीन्द्र प्रभात
(कॉपीराईट सुरक्षित ) .
वास्तव में भारतीय युवा में यह गुण प्रचुर मात्रा में हैं और देश प्रगति पथ पर है।
जवाब देंहटाएंऐसा इसलिए हो रहा ही की लोग संस्कारों की तरफ ध्यान नहीं दे रहे
जवाब देंहटाएंदीपक भारतदीप
बाकई आपके कवि मन ने जो ताड़ा देश का ही अंतिम सत्य पहचाना… शीर्षक ही इतना बेहतरीन है…सबकुछ बड़ी सरलता से कह दिया सारे चिंतन व्यंग में किये जरुर हैं पर हैं बड़े ही कटुसत्य।
जवाब देंहटाएंकटु सत्य व्यंग्य कविता के रूप में लिखना एक कला है जो आपकी रचनाओं में किसी न किसी घटना के आधार पर पाठक के मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ जाती है। बहुत सुंदर।
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