गूँज रहा है "रेडियो" "ई-मिरची" के संग !
"बाल किशन" का ब्लोग भी , खूब दिखाया रंग !!
"बाल किशन" का ब्लोग भी , खूब दिखाया रंग !!
"शब्द लेख" यह सारथी, और "संजय" उवाच !
"अंकुर गुप्ता" ढूंढ रहे, "हिन्दी पन्ना" आज !!
लाये विनोद "हसगुल्ले" "संजय" देखें जोग !
" आशीष महर्षि" बोले, बनाबा दो अब योग !!
दूर खड़े ही सोचते, रह-रहकर "उन्मुक्त " !
"चक्रव्यूह " के व्यूह से, कब होंगे हम मुक्त !!
"चक्रव्यूह " के व्यूह से, कब होंगे हम मुक्त !!
आपण "सचिन लुधियानवी" " कंचन सिंह चौहान" !
एक धार में बह रहे , " सुखन साज़ " " इरफान " !!
एक धार में बह रहे , " सुखन साज़ " " इरफान " !!
कोलकत्ते में "मीत" क्यों , खोज रहे हैं मीत !
गजल हुयी है बेवफा , खंडित हो गए गीत !!
गजल हुयी है बेवफा , खंडित हो गए गीत !!
"अन्तरध्वनि " में नीरज जी, " महक " बिखेरें आज !
छंद की गरिमा ढूंढें, " वाचस्पति अविनाश " !!
छंद की गरिमा ढूंढें, " वाचस्पति अविनाश " !!
" अनुगुन्जन " और " इयता " सुन्दर सा है ब्लोग !
संकृत्यायन कह रहे , मेरा है यह शौक !!
" नोटपैड " पर लिखिये , जो जी में आ जाये !
या " कबाड़ " में फेंकिये , उल्टी- सीधी राय !!
या " कबाड़ " में फेंकिये , उल्टी- सीधी राय !!
" विनीत कुमार " की गाहे, और बगाहे बात !
" जोशिम " के संग गाईये , ग़ज़ल अगर हो याद !!
"पुनीत ओमर " " अर्बूदा " , "अनिल " कलम के साथ !
लिखें क्या अब ब्लोग में, पीट रहे हैं माथ !!
"नारद" घूमे ब्लोग पे, चाहे जागे सोय !
नर हो या नारायण हो, चर्चा सबकी होय!!
मतलब वाली बतकही, करती है दिन-रात !
अपनी भी "परिकल्पना" हो गयी है कुख्यात !!
बहुत खूब,
जवाब देंहटाएंअच्छा विश्लेषण कलात्मकता के साथ ।
साधुवाद,
बहुत बढिया काव्य विश्लेषण कर रहे हैंआप।
जवाब देंहटाएंप्रभात बेला है पेज परिकल्पना खोला है
जवाब देंहटाएंब्लॉगवाणी माध्यम है हर कोई बोला है
लिखा आपने अच्छा है सबने बोला है
लिंकभाई आपने गलत ही मेरा जोड़ा है
क्लिक लिंक मेरी जान लें
गलती कैसे हुई पहचान लें
कहना हमें तो कुछ नहीं है
सिर्फ उसे सही पहचान दें
मुक्ति तो चाहते हैं पर मिल नहीं रही
जवाब देंहटाएंकाबिलेतारीफ काव्यचर्चा.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया काव्य का ब्लॉगीकरण!
जवाब देंहटाएंपरिकल्पना कुख्यात नही हो गई है विख्यात
जवाब देंहटाएंदेश विदेश के लोग इसे पढते है दिन रात
क्या बात है, बहुत बढ़िया!!
जवाब देंहटाएंदूसरे भाग के इंतजार में थे जिससे कि एक समग्र टिप्पणी लिखी जा सके.
जवाब देंहटाएंआपका विश्लेषण एवं उसकी काव्यात्म प्रस्तुति बहुत अच्छी बन पडी है. विशेषण भी सटीक हैं एवं अंत तो गजब है:
"मतलब वाली बतकही, करती है दिन-रात !
अपनी भी "परिकल्पना" हो गयी है कुख्यात !!"
धन्य हैं,मुझे इज़्जत दी आपने शुक्रिया
जवाब देंहटाएं