मैं समय हूँ , आज कनाडा से ले आया हूँ सबकी आँख बचाकर समीर जी को और श्श्श्शश्श - किसी से ना कहना , उनकी पत्नी के साथ जो आज हैं अपनी मैचिंग चप्पल के साथ इस उत्सव की शान , मेरी ख़ास मेहमान !!!
और उन्हें डरने के सिवा कुछ सूझता नहीं
शौक बैठा है एडीवाले चप्पल की गोद में
अब क्या है कसूर इसमें श्रीमती जी का
जो श्रीमान के पास दो जोड़ी जूते से अधिक नहीं ...... रश्मि प्रभा
जूता विमर्श के बहाने : पुरुष चिन्तन
आज बरसों गुजर गये. हजारों बार पत्नी के साथ चप्पलों की दुकान पर सिर्फ इसलिए गया हूँ कि उसे एक कमफर्टेबल चप्पल चाहिये रोजमर्रा के काम पर जाने के लिए और हर बार चप्पल खरीदी भी गई किन्तु उसे याने कमफर्टेबल वाली को छोड़ बाकी कोई सी और क्यूँकि वह कमफर्टेबल वाली मिली ही नहीं.
अब दुकान तक गये थे और दूसरी फेशानेबल वाली दिख गई नीली साड़ी के साथ मैच वाली तो कैसे छोड़ दें? कितना ढ़ूँढा था इसे और आज जाकर दिखी तो छोड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता.
हर बार कोई ऐसी चप्पल उसे जरुर मिल जाती है जिसे उसने कितना ढूंढा था लेकिन अब जाकर मिली.
सब मिली लेकिन एक आरामदायक चप्पल की शाश्वत खोज जारी है. उसे न मिलना था और न मिली. सोचता हूँ अगर उसे कभी वो चप्पल मिल जाये तो एक दर्जन दिलवा दूँगा. जिन्दगी भर का झंझट हटे.
उसकी इसी आदत के चलते चप्पल की दुकान दिखते ही मेरी हृदय की गति बढ़ जाती है. कोशिश करता हूँ कि उसे किसी और बात में फांसे दुकान से आगे निकल जायें और उसे वो दिखाई न दे. लेकिन चप्पल की दुकान तो चप्पल की दुकान न हुई, हलवाई की दुकान हो गई कि तलते पकवान अपने आप आपको मंत्रमुग्ध सा खींच लेते हैं. कितना भी बात में लगाये रहो मगर चप्पल की दुकान मिस नहीं होती.
ऐसी ही किसी चप्पल दुकान यात्रा के दौरान, जब वो कम्फर्टेबल चप्पल की तलाश में थीं, तो एकाएक उनकी नजर कांच जड़ित ऊँची एड़ी, एड़ी तो क्या कहें- डंडी कहना ही उचित होगा, पर पड़ गई.
अरे, यही तो मैं खोज रही थी. वो सफेद सूट के लिए इतने दिनों से खोज रही थी, आज जाकर मिली.
मैने अपनी भरसक समझ से इनको समझाने की कोशिश की कि यह चप्पल पहन कर तो चार कदम भी न चल पाओगी.
बस, कहना काफी था और ऐसी झटकार मिली कि हम तब से चुप ही हैं आज तक.
’आप तो कुछ समझते ही नहीं. यह चप्पल चलने वाली नहीं हैं. यह पार्टी में पहनने के लिए हैं उस सफेद सूट के साथ. एकदम मैचिंग.’
पहली बार जाना कि चलने वाली चप्पल के अलावा भी पार्टी में पहनने वाली चप्पल अलग से आती है.
हमारे पास तो टोटल दो जोड़ी जूते हैं. एक पुराना वाला रोज पहनने का और एक थोड़ा नया, पार्टी में पहनने का. जब पुराना फट जायेगा तो ये थोड़ा नया वाला उसकी जगह ले लेगा और पार्टी के लिए फिर नया आयेगा. बस, इतनी सी जूताई दुनिया से परिचय है.
यही हालात उनके पर्सों के साथ है. सामान रखने वाला अलग और पार्टी वाले मैचिंग के अलग. उसमें सामान नहीं रखा जाता, बस हाथ में पकड़ा जाता है मैचिंग बैठा कर.
सामान वाले दो पर्स और पार्टी में जाने के लिए मैचिंग वाले बीस.
मैं आज तक नहीं समझ पाया कि इनको क्या पहले खरीदना चाहिये-पार्टी ड्रेस फिर मैचिंग चप्पल और फिर पर्स या चप्पल, फिर मैचिंग ड्रेस फिर पर्स या या...लेकिन आजतक एक चप्पल को दो ड्रेस के साथ मैच होते नहीं देखा और नही पर्स को.
गनीमत है कि फैशन अभी वो नहीं आया है जब पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड अलग से हो.
तब तो हम घर में बरतन मांजते ही नजर आते.
घर वाला एक आरामदायक हसबैण्ड और पार्टी वाले मैचिंग के बीस.
दिखती है उसी की बन्दगी,
जैसी कि उसकी जिन्दगी.
-समीर लाल ’समीर’
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आइये अब नज़र डालते हैं आज के कार्यक्रमों पर :
छत्तीसगढ़ी साहित्य व जातीय सहिष्णुता के पित्र पुरूष : पं. सुन्दर लाल शर्मा पर संजीव तिवारी का आलेख
कहे कबीर में आज : कबीर का युग तो गयो भाई,अब इस युग की बात करू न कोई
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ब्लॉगोत्सव में कल यानी रविवार का दिन अवकाश का दिन होगा, आप कार्यक्रमों का आनंद लें हम मिलते हैं परसों फिर इसी जगह सुबह ११ बजे ....तबतक के लिए शुभ विदा !
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंआज तो ये सब ही देखते समय बितेगा।
जवाब देंहटाएंवाह क्या कहने....दिल खुश हो गया...
जवाब देंहटाएंशादीशुदा आदमी ही औरत को बहुत अच्छे से जान सकता है .......बहुत खूब ...सच को व्यंग का जामा पहना दिया आपने
जवाब देंहटाएंसबसे अच्छी बाल मन में मलक की ड्राइंग्स लगीं.दिल खुश हो गया इनकी ड्राइंग्स को देख कर.
जवाब देंहटाएंसादर
वेमिशाल शब्द संयोजन, अद्भुत प्रस्तुति ....बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएंसशक्त,सुन्दर और अद्वितीय.....बस यही कहूंगा की वाह क्या बात है !
जवाब देंहटाएंअनुपम,अद्वितीय और अतुलनीय ....!
जवाब देंहटाएंwaah... maza aa gaya padhkar... :)
जवाब देंहटाएंआपने इस उत्सव को सचमुच एक नया आयाम दिया है, आपको ढेर सारी बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएंगनीमत है कि फैशन अभी वो नहीं आया है जब पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड अलग से हो.
जवाब देंहटाएंतब तो हम घर में बरतन मांजते ही नजर आते.
sameer lal ji ka "juta", khoob chala
maja aa gaya!
ब्लॉग महोत्सव की सफलता हेतु शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंsundar prastutui RAshmi Di!
जवाब देंहटाएंmaja aa gaya!
वह फैशन भी जल्दी ही आने वाला है जब पार्टी के लिए मैचिंग हज़बैंड क्लोन या रोबोट के रूप में मुहैया होने लगेंगे... :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसुन्दर ...बहुत अच्छा....
जवाब देंहटाएंघर वाला एक आरामदायक हसबैण्ड और पार्टी वाले मैचिंग के बीस.
जवाब देंहटाएंसोच सोच कर हंसी आ रही है ... समीर जी कैसी दुविधा में फंस जाते हैं कभी कभी .. आज का यह चिंतन बहुत ज़बरदस्त रहा ...
nice
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी पुरानी नयी यादें यहाँ भी हैं .......कल ज़रा गौर फरमाइए
नयी-पुरानी हलचल
http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
वाह ... किधर इशारा है समीर भाई का ... मज़ा आ गया आज तो ...
जवाब देंहटाएंसमीर जी का चुटीला लेखन.... वाह आनंद आ गया...
जवाब देंहटाएंसादर...
एक अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदुनाली पर देखें
बाप की अदालत में सचिन तेंदुलकर
सुन्दर ...बहुत अच्छा....
जवाब देंहटाएंIt hurts still Stilletto ,high heels shoes are a craze .Women report hurt and pain just after half an hour and carry additinal pairs for the same reason .Leg beauty ,it pleases the man but at what cost .
जवाब देंहटाएंGood piece of satire by samir mohan ,good over aal presentation .Thanks .
Hindi font is not available ,me at PA(Fountain- ville,Pennsilvania ).
घर वाला एक आरामदायक हसबैण्ड और पार्टी वाले मैचिंग के बीस.
जवाब देंहटाएंbhai waah...chhakaa ke hansa dete hain aap...
:D
बहुत आभार इस स्नेह के लिए.
जवाब देंहटाएंपरिकल्पना उत्सव २०११ के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं..
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