आज के इस प्रारूप में हम चर्चा करेंगे वर्ष २००९ में हिंदी ब्लोगिंग के पंचनद यानि वर्ष के पांच सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लॉग की .....
इसी प्रकार हिंदी रचनाधर्मिता को प्राण वायु देने के उद्देश्य से प्रकाशित सामूहिक चिट्ठों में सर्वोपरि है - श्री रवि रतलामी द्वारा प्रकाशित ब्लॉग -रचनाकार । यह हिन्दी के उन रचनाकारों को एक प्लेटफ़ॉर्म प्रदान करता है जो किसी वजह से अपनी रचना इंटरनेट पर स्वयं नहीं ला पाते हैं । यह भी चिट्ठा वर्ष के सर्वाधिक सक्रीय सामूहिक चिट्ठों में से एक है ।
सामूहिक के सभी अक्षरों को छिनगा कर अलग - अलग व्याख्या कि जाये तो स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है कि सर्वश्रेष्ठ मूल्यांकन के साथ सबकी भलाई के लिए कार्य करना । यदि यह सामूहिक कि सही व्याख्या है तो उपरोक्त दोनों ब्लॉग इस व्याख्या की कसौटी पर खरा उतरता है । जैसा कि आप सभी को विदित है कि ब्लोगिंग पूरी दुनिया में निजी अभिव्यक्ति को बड़ा स्पेस देने का महत्वपूर्ण काम किया है । हालाँकि हिंदी के लिए ये स्पेस काफी नया है , लेकिन इसकी ताक़त तेज़ी से महसूस की जा रही है। जहाँ तक हिंदी में सामूहिक चिट्ठों का प्रश्न है तो वर्ष-२००७ के उतरार्द्ध में अविनाश ने अपने ब्लॉग को सभी के लिए खोलते हुए कहा था , कि " मोहल्ला हमने ऐसे ही शुरू की थी। अपनी पसंद की कुछ चीज़ों को एक जगह इकट्ठा करके रखने के लिए। जैसे आप एक फाइल में कुछ कटिंग्स रखते हैं। वो फाइल पुरानी पड़ जाती है। घर बदलने के दरम्यान कई बार फट जाती है और कई बार एक ही घर में वो चूहों का शिकार हो जाती है। लेकिन अंतर्जाल पर इस फाइल की उम्र हमसे लंबी होती है। कुछ इन्हीं ख़यालों के बीच शुरू हुए मोहल्ला ने धीरे-धीरे कम्युनिटी ब्लॉग की शक्ल ले ली। अपने दोस्तों की वो चीज़ें, जो मुझे पसंद आयीं, या नहीं भी पसंद आयी, लेकिन लगा कि ये एक बात को बनने-पकने में मदद कर सकती है- हमने मोहल्ले में साझा की। मैं अकेला मॉडरेटर था और मेरे जरिये ही सारी चीज़ें छपती या नहीं छपती थी। अब जबकि मोहल्ले की छवि मेरी निजी गतिविधियों से ज्यादा एक सामाजिक परिघटना के रूप में बन गयी है, तो लाजिमी है कि इस पर से पूरी तरह अपना दावा छोड़ दिया जाए।"
इसी क्रम में हिंदी के एक महत्वपूर्ण ब्लॉग से भी मुखातिव हुआ जा सकता है , नाम है- कबाड़खाना । वर्ष-२००७ में ही यह ब्लॉग अस्तित्व में आया , मकसद था जिंदगी के कबाड़ की कीमत बतलाना । वर्ष-२००७ से ही अशोक पांडे का यह ब्लॉग पेप्पोर रद्दी पेप्पोर चिल्लाते-चिल्लाते ब्लॉग जगत को कबाड़ मय कर रहा है । दीपा पाठक ,विनीता यशस्वी , इरफ़ान , अजित वडनेरकर , अशोक कुमार पाण्डेय ,दिनेश पालीवाल , वीरेन डंगवाल आदि श्रेष्ठ कबाड़ी हैं ।
सामूहिक चिट्ठों को प्रश्रय देने वाले एक और महत्वपूर्ण ब्लोगर हैं - जाकिर अली "रजनीश", कहते हैं ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती है। लेकिन होता यह है कि हम थोडा बहुत जो कुछ जान लेते हैं, उसी पर इतराने लगते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि जितना हम जानते हैं, उससे कहीं-कहीं ज्यादा हमसे अनजाना होता है। हम अगर अपनी सारी उम्र भी इस ज्ञान की खोज में लगा दे , तो भी जितना कुछ अर्जित कर पाएंगे, वह कुल ज्ञान का एक छोटा सा भाग ही होगा। जैसे सागर की एक बूंद अथवा धरती की कुल मिटटी में एक मुठ्ठी बालू ,किन्तु विज्ञान और विज्ञान कथा एक मूल फर्क है। इसी फर्क को समझाने का विनम्र प्रयास किया है उन्होंने अपने एक सामुदायिक ब्लॉग तस्लीम के माध्यम से । तस्लीम" एक सामाजिक संस्था है, जिसका उददेश्य है सामाजिक एवं वैज्ञानिक चेतना जागृत करना। विज्ञान केन्द्रित विचारों और वैज्ञानिक पद्धतियों से परिचित कराने का यह एक महत्वपूर्ण प्रयास है ।
अपने ब्लॉग के सन्दर्भ में श्री जाकिर अली कहते हैं कि - "जब तस्लीम की शुरुआत हुई थी, हमारे पास एक सोच थी और था हौसला। उसी के दम पर हम निकल पडे। ये हमारा सौभाग्य था कि हमें अच्छे पाठक मिलते गये और हम देखते ही देखते यहां आ पहुंचे।"
उपरोक्त चिट्ठों के अलावा वर्ष -२००९ में जिन अन्य महत्वपूर्ण चिट्ठों की सहभागिता परिलक्षित हुयी है उनमें से महत्वपूर्ण है - महाशक्ति समूह । इस ब्लॉग के प्रमुख सदस्य हैं -प्रमेन्द्र प्रताप सिंह amit mann मिहिरभोज Rajeev गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' तेज़ धार राज कुमार रीतेश रंजन आशुतॊष Abhiraj Suresh Chiplunkar Shakti महासचिव Vishal Mishra पुनीत ओमर maya anoop neeshoo अभिषेक शर्मा Chandra Vaibhav Singh आदि ।
कहा गया है कि सामूहिकता का मतलब केवल मुंडी गिनाने से नहीं होता वल्कि सामूहिक रूप से सबके हितार्थ कार्य करने से होता है । इस दृष्टि से जो चिट्ठे प्रशंसनीय है उनका उल्लेख प्रासंगिक प्रतीत हो रहा है , ये नाम इस प्रकार है- KHAJANA NOW जबलपुर-ब्रिगेड ............नुक्कड़ ..........चोखेर बाली.........अनुनाद......नैनीताली और उत्तराखंड के मित्र.........उल्टा तीर.......कवियाना .........माँ !........पिताजी ......जनोक्ति : संवाद का मंच........बुन्देलखण्ड.......हिन्दी साहित्य मंच........पांचवा खम्बा......पहला एहसास......मेरे अंचल की कहावतें......प्रिंट मीडिया पर ब्लॉगचर्चा.......लखनऊ ब्लॉगर एसोसिएशन.......कुछ तो है.....जो कि !.......कबीरा खडा़ बाज़ार में......हिन्दोस्तान की आवाज़.......Science Bloggers' Association.......हमारी बहन शर्मीला (our sister sharmila).......फाइट फॉर राईट.......हमारी अन्जुमन.......हिन्दुस्तान का दर्द......भोजपुरी चौपाल......TheNetPress.Com......उल्टा तीर......सूचना का अधिकार ........हरि शर्मा - नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे.......हँसते रहो हँसाते रहो......Ek sawaal tum karo........स्मृति-दीर्घा ........बगीची.....तेताला.......भारतीय शिक्षा - Indian Education.........मीडिया मंत्र (मीडिया की खबर).......हास्य कवि दरबार......सबद-लोक । The World of Words.......वेबलाग पर...At Hindi Weblog.......यूँ ही निट्ठल्ला.......नारी का कविता ब्लॉग......नारी ब्लॉग के सदस्यों का परिचय......बुनो कहानी......नन्हा मन.....दाल रोटी चावल......आदि ।
उपरोक्त सभी चयनित सामुदायिक चिट्ठों और उसमें योगदान देने वाले चिट्ठाकारों को कोटिश: बधाईयाँ ....शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंवर्ष २००९ में हिंदी ब्लोगिंग के पंचनद यानि वर्ष के पांच सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लॉग को मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं ....
जवाब देंहटाएंआप विश्लेषण में काफी तह तक चले गये और हमारी कहीं बात को खोज लाये, जिससे आपके द्वारा की गई मेहनत साफ परलक्षित होती है, बहुत बहुत बधाई। भड़ास को लेकर उस समय राजनीति की जा रही थी और उसकी भाषा को वो लोग गलत बता रहे थे जो पूर्व मे खुद भारतीय संविधान, न्यायालय और पत्रकारिता की गरिमा को गाली दे चुके थे।
जवाब देंहटाएंहमारे महाशक्ति समूह को आपने महत्पूर्ण स्थान दिया इसके लिये बधाई, हमारा समूह सिर्फ पोस्टिंग करने के लिये नही बना बल्कि यह अपने कुछ खास लोगो को ब्लाग मंच देने का प्रयास है जो लोग नियमित ब्लागिंग नही कर सकते है। इसमे कुछ को छोड़ कर पूर्ण रूप से अनियमित सदस्य है जो आज तक महाशक्ति समूह के बाहर ब्लाग को देखने भी नही गये है।
आपकी पारखी नज़र की तो दाद देनी चाहिए सो दे रहे हैं ..ये श्रंखला अनमोल है बरसों तक याद रखी जाने वाली
जवाब देंहटाएंसूक्ष्म विश्लेषण और पारखी दृष्टि दोनों का कमाल है यह श्रृंखला । आभार ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया जी - अविनाश/भड़ास से सहमत भले न होऊं, पर उनका रोल तो नकार नहीं सकते!
जवाब देंहटाएंअफ़सोस है कि आप ब्लागिंग के बारे में इतना कुछ लिख रहे हैं लेकिन आपने कभी ये नहीं जानना चाहा कि क्या हुआ उस सात सौ मुंडियां गिनाने वाले ब्लाग का जो कि उसे नाम बदल कर "भड़ास" से भड़ास blog हो जाना पड़ा? यदि सचमुच ईमानदारी से इस विषय पर लिख रहे हैं तो भड़ास पर अवश्य नजर मारिये
जवाब देंहटाएंnishchay hi aapakaa yah vishleshan
जवाब देंहटाएंaane vale samay men mahatvapoorn sandarbh ka hissa banega ...is mahatvapoorn kary ke liye aapaka aabhar.../
Bhai Sab
जवाब देंहटाएंham bhee hai ji
बहुत बढ़िया...सभी को बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत बडिया जानकारी धन्यवाद और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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