(प्रतिलिपि अधिकार अधिनियम)
(HELPFUL HAND BOOK)
भड़कीला सवाल- " डॉमेस्टिक वायॉलन्स एक्ट २००५ भी, एक तरह से कॉपी राइट भंग का कानून है क्या?"
चटकीला जवाब-"शायद, मगर अच्छा है कि,किसी के सास-ससुर, अपने मौलिक सृजन,(बेटी) का विवाह करने के पश्चात उसे, अपनी कॉपी राइट प्रोटेक्टेड मिल्कियत मान कर, बेटी में देखे गए, शारीरिक,मानसिक,आर्थिक और सामाजिक स्तर के बदलाव का हिसाब माँगकर, कॉपी राइट एक्ट उल्लंघन का नोटिस नहीं भेजते हैं वर्ना, कोई भी दामाद का बच्चा, सास-ससुर के इस अनमोल मौलिक सृजन को, शादी के दिन जैसा, तरोताज़ा कहाँ रख पाता है?"
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एक स्पष्टता-
१. यह पूरा आलेख मैंने, केवल शिष्य भाव धारण कर लिखा है, लेख में कोई तथ्यात्मक गलती या त्रुटि हो तो,कृपया मेरे ध्यान पर ज़रूर लाएं ।
२. सभी मौलिक सृजन कर्ता, ब्लॉगर,अगर चाहें तो, यह पूरा आलेख,यहाँ से लिंक के साथ, अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर सकते हैं,इसमें मेरी पूर्व सहमति की आवश्यकता नहीं है ।
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प्यारे दोस्तों,
दुनिया के किसी भी प्रदेश में,किसी भी भाषा में,पढ़े-लिखे या अन-पढ़ इन्सान द्वारा, निर्माण किया गया, कोई भी मौलिक सृजन, उस इन्सान की अपनी संपत्ति मानी जाती है। उपरान्त ऐसा मौलिक सृजन, संबंधित देश की संस्कृति की धरोहर मानी जाती है । इसीलिए, प्रत्येक सर्जक, अपने मौलिक सृजन को,अपने प्राणों से प्यारे संतान की भाँति ही प्यार करता है ।
आप एक कल्पना कीजिए कि, आपके संतान को कोई बुरा इन्सान खिलाने-पिलाने के बहाने, उसका अपहरण करके, उसके सारे अंगों को (रचना को) विकृत करके, उसे अपना ही संतान बता कर, उससे भीख मँगवाए, तब आपके दिल पर क्या बीते..!!
ठीक उसी तरह, किसी के मौलिक सृजन को, मूल सर्जक की पूर्व सहमति प्राप्त किए बिना ही, बदनियत से, उसे अपने ब्लॉग, वेबसाइट, या फिर प्रिंट/सेटेलाइट जैसे किसी माध्यम में, प्रकाशित करके,`वाह-वाह`की, टिप्पणी की भीख मँगवाने के धंधे पर लगाए..!! तब, पता चलने पर मूल सर्जक के दिल को कैसी ठेस पहुँचती होगी? ऐसी पीड़ा जिसने भुगती हो वही उसका दर्द जानते होंगे..!!
वास्तव में,पूरे विश्व में, साहित्यिक चोरी-Plagiarism, कॉपी पेस्ट-Copy-Paste, भड़ौआ -Parody, जैसी मलिन प्रवृत्ति, कॉपी राइट एक्ट का उल्लंघन मानी जाती है ।
हालाँकि, कॉपी राइट एक्ट की, कई कानूनी धाराओं से,कुछ मौलिक सर्जक अनभिज्ञ होने के कारण, किसी नकली सर्जक-दुःशासन के हाथों,अपनी अनमोल रचना का चीरहरण होता देख, दुःखी मन से, निःसहाय होकर, बेबसी से, ऐसी मलिन प्रवृत्ति को, ताक़ते रहते हैं ।
कई बार यह अहसास होता है कि, ऐसे दुःशासन-नकली सर्जक, किसी और सर्जक की रचना का चीरहरण करने में, जितनी मात्रा में अपना कौशल खर्च करते हैं, उससे भी आधा कौशल अगर, अपना मौलिक सृजन अभ्यास करने में लगाए तो, ऐसे कड़े आरोपों से मुक्त होकर,एक दिन अपना नाम-सम्मान खुद कमा सकते हैं..!!
वास्तव में,ऐसे दुःशासन-नकली सर्जक को समझना चाहिए कि, जिंदगी उधार के माल से, हमेशा व्यतीत नही हो सकती..!! अगर स्वतंत्र सर्जक के तौर पर, कला जगत में नाम कमाना है तो उन्हें, मौलिक सर्जक बनने का परिश्रम करना ही पड़ेगा ।
आइए, आज हम, कॉपीराइट एक्ट को सरल भाषा में समझने का एक प्रयास करें ।
कॉपी राइट एक्ट की (प्रतिलिपि अधिकार अधिनियम की) परिभाषा ।
" किसी भी कला से संबंधित, साहित्य से संबंधित, या तो संगीत से संबंधित कार्य, जिसका, उस सर्जक के मौलिक विचार (ख़याल) के आधार पर सृजन हुआ हो, उन सभी परिणामी फल का मालिक, संबंधित सर्जक को माना जाता है । इसीलिए, ऐसे मौलिक सृजन को, संबंधित सर्जक की मिल्कियत मान कर, उस संपत्ति के हितों की रक्षा करने के लिए बनाये गए, कानूनी प्रावधान को,`प्रतिलिपि अधिकार अधिनियम`(कॉपी राइट एक्ट)कहते हैं ।"
कॉपी राइट एक्ट में, मौलिक सर्जक को, कॉपीराइट मटिरियल्स (सृजन) की कॉपी करने का, सार्वजनिक रूप से वितरित करने का,उसे आंशिक या पूर्ण रूप से नया स्वरूप प्रदान करने का, प्रकाशित करने का, अमल में लाने का, प्रतिनिधित्व करने का, ऐसे विविध कार्य-अधिकार शामिल किए गए हैं ।
साहित्य रचेता के कॉपी राइट के बारे में ध्यान देने योग्य बात यह है कि, मूल सर्जक के सृजन के साथ, उपर दर्शाए हुए किसी भी अधिकार का उल्लंघन का मामला ध्यान पर आते ही, ये मामला सार्वजनिक हित के साथ जुड़ा होने के कारण, ऐसी मलिन प्रवृत्ति का विरोध कोई भी साहित्य प्रेमी कर सकता है । यहाँ इतना स्पष्ट करना ज़रूरी है कि, ऐसी मलिन प्रवृत्ति करने वाले के खिलाफ़, कॉपी राइट एक्ट के तहत कानूनी कार्यवाही, रचना का मूल रचेता या तो कानूनी प्रक्रिया के तहत आंशिक या पूर्ण रूप से, रचेता ने, जिसे अपना मालिकाना हक़ तब्दील किया हो ऐसा व्यक्ति-संस्था ही, कर सकते है । ऐसी कानूनी कार्यवाही में अवमानना और/या तो आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए, दीवानी/फौजदारी अदालत में कानूनी दावा/शिकायत कर सकते है ।
कॉपी राइट एक्ट का महत्व ।
कॉपी राइट एक्ट किस प्रकार उपयोगी है?
कॉपी राइट एक्ट मूल सर्जक के अधिकारों की रक्षा करता है । इस कानून के कारण, मूल रचेता को अपना मौलिक सृजन किसी को भी वितरित करने या बेचने का अबाधित अधिकार प्राप्त होता है ।
मौलिक सृजन किसे कहते हैं?
मौलिक सृजन यानि कि, सर्जक के मस्तिष्क में से उत्पन्न हुए विचार या तो आंतरिक अलौकिक कल्पनाशक्ति के द्वारा, डिस्क,कागज़,पत्थर पर अंकित किया,तराशा हुआ, मौलिक सृजन जैसे कि,साहित्य (नवल,नाटक, वगैरह), टीवी प्रोग्राम, फ़िल्म्स, संगीत, फॉटोग्राफ्स, ऑडियो-वीडियो CD-ROMs, वीडियो गेम, सॉफ़्टवेयर कोड, चित्र कला, हस्तकला, शिल्पकला वगैरह जैसे, निश्चित परिणामी फल देने वाले, उपयोगी सृजनात्मक प्रयत्न द्वारा निर्माण किया गया सृजन ।
एक प्रकार से मौलिक सृजन में ऐसी पूर्व धारणा समाविष्ट है कि, एक ही विषय पर, एक जैसा, स्वैच्छिक, स्वतंत्र सृजन, कदापि सटीक एक समान नहीं हो सकता । अगर कोई ऐसा दावा करता भी है तो, ये बात नामुमकिन और अविश्वसनीय मानी जाती है ।
इस परिभाषा के अनुसार देखें तो `USENET`,(कम्प्यूटर) पर प्रदर्शित, अन्य किसी भी सर्जक की रचना से, प्रेरित हो कर, नये सिरे से टाइप किया हुआ, समग्र कल्पनाशील सृजन, ज्यादातर सृजनात्मक कार्य माना जाना चाहिए, पर कॉपीराइट अधिनियम के अनुसार उसे सुरक्षित नहीं किया जा सकता ।
अब ये बात स्पष्ट हो गई कि,साहित्यिक चोरी-Plagiarism, कॉपी पेस्ट-Copy-Paste, भड़ौआ -Parody जैसी मलिन प्रवृत्ति को, कॉपी राइट एक्ट का उल्लंघन मानकर, ऐसी प्रवृत्ति के विरूद्ध अदालत में दावा किया जा सकता है ।
अंतरराष्ट्रीय कॉपी राइट एक्ट की आवश्यकता और ख़याल ।
विश्व में सबसे पहले,सन-१७०९ में, यूनाइटेड किंग्डमकी रानी ऍन्ने के नाम से (Queen Anne-UK) द्वारा,`Copyright Act 1709 8 Anne c.19` के नाम से, वहाँ के सर्जक के, हितों की रक्षा के लिए बनाया गया और उसे सन-१९१० में लागू किया गया ।
सन-१९६८ में भारत में, प्रिंटीग टैकनॉलॉजी में ज्यादातर,`XEROX` जैसे आसान पूनःमुद्रण उपकरण का चलन बढ़ने के कारण, आदि सर्जक की पूर्वानुमति प्राप्त किए बिना ही उनकी रचनाओं का ग़ैरक़ानूनी पूनःमुद्रण, बड़े पैमाने पर होने लगा, ऐसी ग़ैरक़ानूनी प्रवृत्ति पर लगाम कस ने के लिए, अंतरराष्ट्रीय कॉपी राइट एक्ट की आवश्यकता का ख़याल उद्धव हुआ ।
अंतरराष्ट्रीय कॉपीराइट एक्ट,`Under the Berne copyright convention` में भारत सहित विश्वके करीब सभी देशोंने दस्तख़त किए हैं ।`
Under the Berne copyright convention`की परिभाषा के अनुसार,
"प्रत्येक सृजन कार्य,जिस क्षण से स्पष्ट रूप में अभिव्यक्त हो जाए,उसी क्षण से,यह सृजन अपने आप ही,कॉपी राइट एक्टसे बाध्य माना जाता है ।"
कॉपी राइट एक्ट का उल्लंघन होने पर, सृजन की अभिव्यक्ति के स्थान पर (किताब, ब्लॉग इत्यादि), "कॉपी राइट संरक्षित सामग्री" की चेतावनी प्रकट न की गई हो, फिर भी, उस सृजन का कॉपी राइट भंग करनेवाले, किसी भी देश के, किसी भी व्यक्ति-संस्था पर, अंतरराष्ट्रीय कॉपी राइट एक्ट के तहत, कानूनी कार्यवाही कि जा सकती है । ऐसी कानूनी कार्यवाही के लिए, मूल सर्जक, अदालती दावा करने से पहले, कभी भी, अपने सृजन के कॉपी राइट पंजीकृत करवा सकता है ।
दावा करनेके लिए,मूल सृजनकी कॉपीका,पंजीकृत करवाना आवश्यक है ।
अंतरराष्ट्रीय कॉपी राइट संगठन के करार के मुताबिक, मूल सर्जक के निधन के पश्चात भी,सत्तर (७०) साल तक उस सृजन पर,कॉपी राइट लागू रहता है ।
हालाँकि, कुछ सनातन सत्य और सनातन विचार का कॉपीराइट पंजीकृत नहीं किया जा सकता । सिर्फ सृजनात्मक कार्य अभिव्यक्ति पर ही कॉपीराइट लागू होता है ।
`BERNE CONVENTION`की विस्तृत जानकारी ।
कॉपी राइट संरक्षण हेतु, भारत सहित, अलग-अलग देशों के बीच हुए, एक समान कॉपीराइट करार को,`The Berne Convention- बर्न समझौता` कहते हैं । इस करार से बाध्य सभी देश, दूसरे सभ्य देश के, किसी भी सर्जक के कॉपी राइट भंग होने की शिकायत पर, संबंधित देश के कॉपी राइट कानून के तहत, कानूनी कार्यवाही करने के लिए बाध्य होते हैं ।
अंतरराष्ट्रीय कॉपीराइट पंजीकरण की विधि ।
विश्व के विविध देशों में, कॉपी राइट एक्ट की धारा-रचना में एकसमानता नहीं है, फिर भी कोई सर्जक अगर अंतरराष्ट्रीय कॉपीराइट पंजीकृत कराना चाहे तो, वह `Berne Convention` करार के तहत, इस संगठन के सदस्य
देश में, कॉपीराइट पंजीकृत करवा सकता है । इसके अलावा, कोई भी सर्जक, किसी दूसरे देश में, वहाँ के मौजूदा कानून के अनुसार कॉपीराइट पंजीकृत करवा सकता है । किसी दूसरे देश में, किसी सर्जक के सृजन का कॉपी राइट भंग होने की घटना ध्यान आने पर वह सर्जक, उस देश के सक्षम सत्ताधिकारी सम्मुख शिकायत दर्ज कराके,अपना नुक़सान-खर्च समेत, मांग सकता है ।
कॉपीराइट का मालिकाना हक़ ।
अन्य भौतिक-प्राकृतिक,स्थाई-चल संपत्ति की तरह, कॉपीराइट प्राप्त ख़याल, संशोधन अथवा सृजन को, आंशिक या तो पूर्ण स्वरूप में, ख़रीदा जा सकता है, बेचा जा सकता है, विरासत में दिया जा सकता है या फिर उसके हक़ अन्य के नाम तबदील किए जा सकते हैं ।
कॉपी राइट एक्ट में विविध प्रकार के कार्य का समावेश ।
कॉपी राइट में साहित्य सृजन, नाट्य सृजन, संगीत सृजन, सभी तरह के कला सृजन, साउंड ट्रैक, वीडियो रूपांतर सहित चलचित्र(फ़िल्म्स), सभी प्रकार के कम्प्यूटर प्रोग्राम और सॉफ्टवेयर, जैसे विविध प्रकार के, सृजन कार्य का समावेश किया गया है ।
कॉपी राइट धारक के हक़ ।
कॉपीराइट धारक को किसी भी माध्यम में अपना सृजन पेश करने का, उसमें सुधार करने का, उस सृजन की अनेक प्रतिलिपी (Copy) करने का, सार्वजनिक तौर पर वितरण करने का, भाषांतर करने का, किराये पर देने का और बेंचने का अधिकार प्राप्त है ।
कॉपी राइट संपादन विधि ।
कोई भी मौलिक सृजन, सृजन होने के बाद, जिस क्षण से सृजन अभिव्यक्त होता है,उसी समय उसके सर्जक को, संबंधित सृजन का कॉपी राइट अपने आप प्राप्त हो जाता है ।
कॉपीराइट अधिकार प्राप्ति की शर्तें ।
भारत में कॉपीराइट एक्ट की प्रमुख शर्त है, संबंधित सर्जक के सृजन अधिकार की अवधि के बारे में । ये अवधि, सर्जक का, जीवनकाल+निधन के पश्चात साठ साल (60 Years) तक की होती है । फिल्में, रेकार्ड्स (ग्रामोफ़ोन बाजे का तवा), फोटोग्राफ्स, सर्जक के मरणोपरांत प्रकाशन, सरकारी और अंतरराष्ट्रीय कार्य वगैरह के लिए, सृजन अभिव्यक्त होने के दिन से लेकर साठ साल तक कॉपीराइट से सुरक्षित रहता है ।
उपरांत, किसी भी स्वरूप में अभिव्यक्त या प्रसारित हो चुके सृजन, प्रसारित होने के दिन से लेकर, पच्चीस (२५) साल तक कॉपीराइट से सुरक्षित रहता है ।
हालांकि सर्जक को उसका सृजन अभिव्यक्त करने के साथ ही कॉपीराइट प्राप्त होते हैं, पर हमारे देश के कॉपीराइट एक्ट के प्रावधान अनुसार, अपने सृजन के साथ हुए कॉपीराइट उल्लंघन की स्थिति में, अदालत में दावा करने के लिए, मूल सृजन की कॉपी का, पंजीकृत करवाना आवश्यक है । (हालाँकि, दावा करने से एक दिन पहले भी, ऐसा पंजीकरण करवाया जा सकता है ।)
कॉपीराइट धारण करने की योग्यता ।(Competency)
भारत में, कॉपीराइट एक्ट के तहत, मूल सर्जक को, कॉपीराइट का प्रथम हक़दार (दावेदार) माना गया है । जहाँ कोई स्पष्ट लिखित करार किया गया न हो, ऐसी स्थिति में, नौकरी करनेवाले कर्मचारी (सर्जक) द्वारा किए गए नव सृजन पर कर्मचारी सर्जक का कॉपीराइट माना जाता है । जहाँ एक से अधिक सर्जक (कर्मचारी) द्वारा नव सर्जन किया गया हो, ऐसे में कॉपीराइट, सामूहिक माना जाता है ।
कॉपी राइट हस्तांतरण की सरल पद्धति ।
कॉपीराइट का मौखिक हस्तांतरण या तबदीली कानून के तहत अमान्य है । सृजन का ऐसा हस्तांतरण करते समय, सृजन की पूर्ण विगत, जैसे कि, सृजन का प्रकार, तबदीली आंशिक है या पूर्ण रूप, करार की समयावधि, पारिश्रमिक राशि वगैरह,स्पष्ट और लिखित रूप में होना चाहिए ।उपरांत ऐसे करार में कॉपीराइट धारक खुद या तो उनके द्वारा जिसे अधिकार तबदील किए गए हो, वह मुख़त्यार के दस्तख़त करना अनिवार्य है । हालाँकि, ऐसे तबदीली करार को पंजीकृत करवाना अनिवार्य नहीं है ।
कॉपीराइट रक्षा हेतु,संबंधित स्थान पर नोटिस का विवरण । (प्रदर्शन)
जब कोई भी सृजन, किसी स्थान पर अभिव्यक्त होता है,तब ` Berne Convention for protection of any copyright protected works` के अंतरराष्ट्रीय करार के तहत, संबंधित स्थान पर` सृजन कॉपीराइट से आरक्षित है ।` चेतावनी अवश्य प्रदर्शित करनी चाहिए ।
आप अपने सृजन के कॉपीराइट चिन्ह (लोगो-©) अपने ब्लॉग या पोस्ट पर दर्शाने के लिए इतना कीजिए..,
* अपने Windows,`PC keyboard` पर," Hold down Alt and type 0169 on the number pad (right hand side of your keyboard) Alt+0169 "
* आप अगर `Mac computer` पर कॉपीराइट © चिन्ह चिपकाना चाहें तो, " Hold down Option at the same time and press 'g' to get the copyright symbol.( Option+g ) "
वेबसाइट या ब्लॉग पर, अपने सृजन की रक्षा के,कुछ सरल विकल्प ।
१.किसी भी रचना का सृजन करने के बाद, उसे प्रदर्शित करने के साथ ही, उसी स्थान पर, उस सृजन-श्रेय के बारे में (Credit-Rights), स्पष्ट करके,उसे कानूनी प्रक्रिया अनुसार आरक्षित करें ।
२. अगर ऐसी रचना का सृजन, एकाधिक सर्जक द्वारा किया गया हो तो हरेक के हिस्से के श्रेय का,(Credit-Rights) उल्लेख अवश्य करें । (जैसे,गीतकार+गायक+संगीतकार=गीत ।)
३. जब साझा सृजन हो तब, प्रत्येक हयात (जीवित)या फिर मृत, सभी सर्जक के नामोल्लेख स्पष्ट रूप से करना चाहिए ।
४. प्रकाशक,साहित्य लेखन और संगीत अधिकार रक्षा के लिए,गठित की गई सरकार मान्य सोसायटी (संगठन) में, अपनी रचना का पंजीकरण करवाए ।
५. आपके सृजन कार्य के अधिकार, अन्य को तबदील करते समय करार में, कॉपीराइट (हक़) का उल्लेख स्पष्ट रूप से करें, ताकि, बाद में कोई व्यर्थ विवाद न हो ।
६. अंतरराष्ट्रीय कॉपीराइट संगठन के समझौते के अनुसार, आपके मौलिक सृजन के कॉपीराइट किसी भी स्वरूप में, सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्त हो उसी वक़्त, उस सृजन के अधिकार आपको अपने आप प्राप्त हो जाते हैं, चाहे आपने उसे पंजीकृत कराया हो या नहीं ।
७. आपकी मौलिक सृजन क्षमता दर्शाने के लिए, अत्यंत उत्साहित हो कर, अपने ताज़ा मौलिक सृजन को, आपकी साइट या ब्लॉग पर, तुरंत प्रदर्शित करने की ग़लती, हरगिज न करें, उसका ग़लत इस्तेमाल होने की संभावना है ।
अगर हो सके तो, आपके मौलिक सृजन का, पूर्ण रूप से व्यावसायिक उपयोग हो जाने के पश्चात, पुराना होने पर ही, साइट या ब्लॉग पर उसे, आंशिक रूप में प्रदर्शित (अपलॉड) करना चाहिए ।
इसके उपरांत नयी तकनीक आज़माकर, जहाँ ज़रूरत लगे वहाँ, `साइट कॉपी लॉक`, या सरलता से मिटा न पाए ऐसे `वॉटर मार्क`, या तो `इ-सिग्नेचर` जैसी, आपकी पहचान को, आप पृष्ठभूमि में (Background) लगा सकते हैं ।
कॉपीराइट प्राप्त करने की कार्यवाही की समझ ।
हमने यहाँ देखा कि, सृजन सार्वजनिक किया गया हो या न किया गया हो, पर सभी मौलिक सृजन को अभिव्यक्त होते ही कॉपीराइट अपने आप लागू हो जाता है ।
अपने मौलिक सृजन-रक्षा के लिए, उसे कॉपीराइट ऑफ़िस या पंजीयक अधिकारी सम्मुख पंजीकृत कराना अनिवार्य नहीं है । हालांकि,अदालत में दावा करने के लिए,पंजीयक अधिकारी सम्मुख,एक सील बंद कवर में, मूल सृजन की तमाम जानकारी (विगत) के मूल सृजन के दस्तावेज़ को, अदालत प्रथमदर्शी सबूत मानती है, इसी वजह से दावा करने से पहले,सृजन का पंजीकरण कराना उचित है ।
कानून अनुसार,कॉपीराइट उल्लंघन के प्रकार ।
* मूल सर्जक की पूर्वानुमति के बिना या,
*कॉपीराइट पंजीयक अधिकारी की पूर्व अनुमति बिना,
*या पूर्वानुमति जिस शर्त पर मिली हो उसके भंग करने की स्थिति में,
* या कॉपीराइट एक्ट ऑफ़िस के सक्षम अधिकारी के दिए हुए किसी दिशा निर्देश का भंग करने पर, जिसके कारण कॉपीराइट धारक के विशिष्ट अधिकार पर विपरीत असर हो या फिर उसके मुनाफ़े पर असर पड़ता हो,
* उपरांत, मूल सर्जक की पूर्वानुमति बिना, उसके सृजन को बेचना या किराये पर देना या दोनों कार्य का प्रस्ताव रखना,
* सृजन को किराये पर देने के कार्य में विध्न पैदा करना,
* मूल सर्जक की पूर्वानुमति बिना,उसे सार्वजनिक प्रदर्शित करना,
* किसी के सृजन की असंख्य प्रतिलिपि, गैरकानूनी रूप से तैयार करना,
* मूल सृजन को हूबहू- अक्षरशः कॉपी करने के बजाए, उसका अधिकांश हिस्सा दिखाई दे, ऐसी नकल करना, वगैरह जैसे ग़ैरक़ानूनी कार्य-प्रकार को, कानून अनुसार, कॉपीराइट उल्लंघन माना जाता है ।
कॉपी- राइट उल्लंघन की सारी जानकारी होते हुए भी बदइरादे से, मूल सर्जक के सृजन का दुरुपयोग करने की स्थिति को, कानूनन अपराध माना जाता है ।
कॉपीराइट उल्लंघन के कृत्य को साबित करने की ज़िम्मेदारी ।
कॉपीराइट उल्लंघन के मामले में, इस ग़ैरक़ानूनी कृत्य को साबित करने के लिए, मूल सर्जक को,सर्जन पर खुद का हक़ सिद्ध करना पड़ता है । उपरांत, उस सृजन का आंशिक या पूर्ण रूप से,प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से,कॉपीराइट उल्लंघन के कृत्य को,पर्याप्त सबूत जुटा कर,अपराध सिद्ध करने की ज़िम्मेदारी भी सर्जक की होती है । पर्याप्त सबूत के आधार पर ही न्यायालय `कॉपीराइट उल्लंघन हुआ है कि नहीं`,ये बात तय करता है ।
कॉपीराइट प्रदर्शित करना और उल्लंघन होने पर कानूनी नोटिस कार्यवाही की समझ ।
कॉपीराइट नोटिस में © चिन्ह कॉपीराइट दर्शाता है । नोटिस में मूल सर्जक का नाम,
उदाहरण; © २०११.(नाम)XYZ. स्पष्ट दिखे,इस प्रकार से, नोटिस प्रदर्शित करनी चाहिए ।
अपने `ब्लॉग`-`वेबसाइट`-`इ-किताब` या अन्य किसी अभिव्यक्ति के माध्यम से, आपके सृजन के कॉपीराइट भंग होने की जानकारी प्राप्त होने के तुरंत बाद, आपको निम्नलिखित कार्यवाही करनी चाहिए ।
१. आपको, `To Whom It May Concern` को `Notice of Copyright Infringement` भेजना चाहिए ।
आपको इस नोटिस का तैयार स्वरूप (Format) पाने के लिए लिंक हैः-
२. इसी के साथ, ऐसी ही एक नोटिस,`Notice to Search Engine` को भेजनी चाहिए ।
इस नोटिस का तैयार स्वरूप (Format) के लिए लिंक हैः-
ऐसी नोटिस भेजने के लिए पता हैः-
१. गुगल-Google, Inc.
Attn: Google Legal Support, DMCA Complaints
1600, Amphitheatre Parkway
Mountain View, CA 94043
Fax: (650) 618-2680, Attn: DMCA Complaints
Google DMCA:
२.याहू-For Yahoo! Inc:
Daniel Dougherty
c/o Yahoo! Inc.
701 First Avenue
Sunnyvale, CA 94089
FX: (408) 349-7821
Sent via: Mail
Yahoo Copyright Page:
३. एम.एम.एन.Windows Live Search (Formerly MSN)
c/o J.K. Weston
One Microsoft Way, Redmond, WA 98052
PH: (425) 703-5529
FX: (425) 936-7329
Send via: Email
कॉपीराइट की नोटिस में,तीन बातों का संदर्भ अगर न हो तो,ठोस विवरण के अभाव में, यह नोटिस अमान्य मानी जाती है ।
१. नोटिस में, कॉपीराइट चिन्ह © या "copyright" शब्द का होना अनिवार्य है ।
२. नोटिस में,जिस तिथि-मास-वर्ष में सृजन प्रकाशित -सार्वजनिक किया हो,उसे स्पष्ट रूप से दर्शाना चाहिए । सृजन प्रकाशित -सार्वजनिक करने के पश्चात अगर,उस में कोई सुधार करके,दोबारा प्रकाशित हुआ हो तब ऐसे में इस बात की संसूचना भी देनी चाहिए ।
३. नोटिस में,मूल सर्जक के नाम(एकाधिक सर्जक सहित),उपनाम समेत दर्शाने चाहिए । (अर्थात-मूल सर्जक की पहचान साबित होना अनिवार्य है ।)
कॉपीराइट उल्लंघन अपराध विरूद्ध, कानून के अनुसार,कुछ त्वरित उपाय किए जाते है । जैसे कि, नोटिस भेजने के पश्चात,निश्चित समय मर्यादा में, संतोषप्रद प्रत्युत्तर न मिलने पर, कॉपीराइट उल्लंघन करनेवाले की वेबसाइट या ब्लॉग, उपरांत अन्य तमाम सोशियल साइट, मेल एड्रेस को,`Website Copyright Cease and Desist Order` भेजकर, शीघ्र प्रतिबंध (बंद) किया जाता है ।
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७.COPYRIGHT - Ahmedabad :Branch
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* Tel. : 079-6580567 / 7193 * Fax : 079-6586763
कॉपीराइट एक्ट के बारे में फैली हुई, कुछ ग़लतफहमी और भ्रांति का सरल समाधान ।
दोस्तों, अभी-अभी श्रीअमिताभजी ने अपने आवाज़ की ग़ैरक़ानूनी कॉपी Copy,चोरी-Plagiarism,भड़ौआ-Parody,मज़ाक(spoof),उपहास (satire) करनेवालों के ख़िलाफ, अपने आवाज़ का कॉपीराइट प्राप्त किया है ।
इसके बारे में, नेट जगत में कुछ ग़लतफहमी, भ्रांति फैली हुई है, जिसके कारण ग़ैरक़ानूनी कॉपी, चोरी, पैरॉडी, मज़ाक, उपहास शैली करनेवाले जानबूझकर या अनजाने में कानून का उल्लंघन कर रहे हैं ।
ऐसे में आइए, कॉपीराइट एक्ट के बारे में फैली हुई, कुछ ग़लतफहमी, भ्रांति का सरल समाधान ढूंढने का प्रयास करें ।
* कॉपीराइट का समस्त ख़याल ही निरर्थक और बंधन-युक्त है ? यह समस्त सृजन जन कल्याण हेतु के लिए होता है, ऐसे में, इसे आरक्षित करने के लिए बनाया गया `कॉपीराइट एक्ट` खुद एक आपराधिक क़दम है?
+ प्यारे दोस्तों,दुनिया के तमाम सर्जक का,सिर्फ सामाजिक जन-कल्याण हित के संदर्भ में मूल्यांकन करने के बदले, उसे सिर्फ और सिर्फ कानून की नज़र से देखना चाहिए ।
कोई भी सृजन, एक दिन या रात में अभिव्यक्त नहीं हो पाता, इसके लिए सर्जक, अपनी खुद की परम बुद्धिमत्ता द्वारा प्राप्त कुशलता का श्रेष्ठ उपयोग करके, कई सफल-विफल प्रयत्न की यातना भुगतने के बाद, अपना आखिरी मौलिक सृजन कर पाता है । इसीलिए, ऐसा मौलिक सृजन, सही अर्थ में सर्जक की संपत्ति मानी जाती है । सर्जक को ऐसी संपत्ति के कॉपीराइट प्राप्त हो,ये बात कानूनी उपरांत सामाजिक न्याय के तौर पर भी योग्य मानी जाती है । इसलिए कॉपीराइट का समस्त ख़याल,कदापि निरर्थक और बंधन-युक्त नहीं हो सकता ।
अब जब कि, ये संपत्ति सर्जक की है तो फिर, उसकी पूर्वानुमति के बिना उसका पुनःउपयोग करने के सिद्धांत को बंधन नहीं कहा जा सकता । किसी के सृजन की, ग़ैरक़ानूनी तरीके से कॉपी-पेस्ट, चोरी, पैरॉडी, मज़ाक, उपहास शैली करनेवाले अपराधी-अकेले को, जन-कल्याण का ठेका, किसी ने, कभी नहीं दिया है ।
किसी दूसरे सर्जक की जानकारी (ज्ञान) का दुरुपयोग करने का ख़याल मन में पैदा हो कर, मन में ही समा जाए,वहाँ तक बात ठीक है, क्योंकि उस विचार को मूल सर्जक की अनुमति के बिना अगर अमल में लाया जाए तो, दीवानी-आपराधिक मामला बन जाता है । कई सर्जक के मन, धन का महत्व नहीं होता, जितना कि, उनके मौलिक सृजन का महत्व होता है । ऐसे में ज्यादा धनराशि का प्रस्ताव मिलने पर भी, सर्जक को अपने सृजन के, पुनः उपयोग की मंजूरी देना-न देना, जैसी पसंद का अबाधित अधिकार संपन्न है ।
* राष्ट्र भाषा के उत्कर्ष के नाम पर, किसी सर्जक के सृजन को, सार्वजनिक पूनःप्रदर्शित करने का विवाद ।
+ ` राष्ट्र भाषा का उत्कर्ष` शब्द, खुद एक छलावा है..!! अपने सृजन को,किसी भी माध्यम से, पुनःप्रदर्शित करने का अधिकार,सिर्फ सर्जक का होता है । अब यह स्पष्ट है कि, `राष्ट्र भाषा के उत्कर्ष` के बहाने, कोई भी व्यक्ति या संस्था, सर्जक की पूर्वानुमति प्राप्त किए बिना, उनकी रचना सुधारने, विकृत करने, या किसी माध्यम में प्रदर्शित करने जैसा, ग़ैरकानूनी कार्य नहीं कर सकता । याद रहे,ऐसा अनैतिक कार्य,कॉपीराइट का सरे-आम उल्लंघन माना जाता है ।
+ ध्यान रहें -
सिर्फ अपवाद रूप से, पत्रकारत्व-संदर्भ, तथ्य समीक्षा और शिक्षा-ज्ञान बर्धन के गैर लाभदायक,उम्दा हेतु के लिए,किसी भी सर्जक के नामोल्लेख के साथ, संबंधित सृजन का संक्षिप्त मात्रा में, पुनः उपयोग क्षम्य है ।
मगर, कोई पत्रकार उसे विज्ञापन के रूप में पेश करें, या किसी शिक्षा संस्थान के कर्मचारी-अध्यापक, छात्र-अभिभावकों को, सृजन की अधिक मात्रा में प्रतिलिपि बेचकर आर्थिक लाभ पाए, तब ऐसे कृत्य को, कॉपीराइट का उल्लंघन माना जाता है ।
* पसंदीदा सर्जक की रचना को, सर्जक के कॉपीराइट होने के उल्लेख के साथ, सृजन की प्रतिलिपियाँ (CD-DVD-ROM) निकाल कर, सिर्फ अपने और अपने दोस्तों के बीच मुफ़्त वितरीत करने का विवाद ।
+ पसंदीदा सर्जक की रचना को, सर्जक के कॉपीराइट होने के उल्लेख के साथ, सृजन की प्रतिलिपि (CD-DVD-ROM) निकाल कर, सिर्फ अपने और अपने दोस्तों के बीच मुफ़्त वितरीत करने के लिए भी, मूल सर्जक की पूर्वानुमति प्राप्त करना अनिवार्य है । हालाँकि, ऐसा कृत्य किसी आर्थिक लाभ उठाने के इरादे से, आप न करते हो,पर कानून की नज़र में, सर्जक के सर्जन को पुनः प्रकाशित करने के अबाधित अधिकार,`कॉपीराइट` का, आप उल्लंघन कर रहे हैं ।
कानून यहाँ तक कहता है कि, किसी ने आपको मेल(Mail) द्वारा फारवर्ड किया गया सृजन अगर, आप के ब्लॉग-साझा ब्लॉग पर प्रदर्शित किया जाए तो,उस सर्जक की शिकायत पर, आपका ब्लॉग,साझा ब्लॉग, हमेशा के लिए प्रतिबंधित (Ban) हो सकता है ।
ऐसे समय पर, मूल सर्जक के नामोल्लेख किए बगैर प्राप्त हुए किसी भी वृत्तांत (आलेख-चित्र) इत्यादि को, पुनः प्रदर्शित करने का मोह त्यागना चाहिए, उपरांत ऐसा मेल फारवर्ड करनेवाले के पास बिना विलंब, मूल सर्जक का विवरण मांगना चाहिए । अन्यथा अनचाही न्यायिक प्रक्रिया का सामना करने की स्थिति उत्पन्न हो सकती है ।
* साझा सृजन के कॉपीराइट मामले में, कोई एक सर्जक अकेले ही, साझा सृजन को प्रदर्शित करने,किराये पर देने, या बेचने जैसे महत्व के निर्णय कर सकता है?
+ जन कल्याण के लिए, विज्ञान संशोधन, इंजीनियरिंग कार्य, भारी राशि का पूँजी निवेश करके निर्माण की गई फिल्में, जैसे मामलों में,कुछ अदालती आदेश हुए हैं कि, जिसमें कोई साझा सर्जक के विरोध (मनाही), करने पर भी, कुछ शर्तों के आधिन, बाकी सर्जक, साझा सृजन को किराये पर देने, या बेचने जैसे महत्व के निर्णय कर सकते है ।
हालाँकि, ऐसे निर्णय करते वक़्त, सभी सर्जक को साझा क्रेडिट और मुनाफ़े में पर्याप्त हिस्सा देना जरूरी होता है, अन्यथा कॉपीराइट एक्ट का भंग माना जाता है । हक़ीकत तो यह है कि, बाद में ऐसे विवाद को टालने के लिए,साझा सृजन कार्य शुरू करने से पहले ही, लिखित करार में सभी बातों का, स्पष्टीकरण करना ज्यादा उचित है ।
* साझा सृजन के मामले में, बाकी सभी सर्जक के कॉपीराइट, कोई एक सर्जक प्राप्त करें,ऐसे हालात में,नये सिरे से कॉपीराइट एक के नाम पंजीकृत करने की विधि ।
+ कॉपीराइट पंजीकरण ऑफ़िस के सक्षम अधिकारी को, मूल सर्जक के सृजन (content) और उसके निर्माण की तिथि-मास-वर्ष के साथ ही लेना देना होता है । ऐसे सृजन के मालिकी हस्तांतरण का मामला,`ट्रान्सफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट`,माना जाता है, अतः पर्याप्त क़ानूनन `स्टैम्प ड्यूटी` चुका कर,नये सिरे से किए गए लिखित करार द्वारा मालिकी हक़ में तबदीली कि जा सकती है ।
* किसी सर्जक के सृजन में, ढ़ेर सारे परिवर्तन करके, नये सिरे से सुगठित सृजन के कॉपीराइट संपादन का विवाद ।
+ किसी सर्जक के सृजन में, ढेर सारे परिवर्तन करके, नये सिरे से सुगठित सृजन के कॉपीराइट मूल सर्जक के ही माने जाते है क्योंकि, नये सिरे से सुगठित सृजन का मूल आधार (स्रोत), मूल सर्जक का सृजन है । इसीलिए, ये स्पष्ट होता है कि, नये सुगठित सृजन का बुनियादी वृत्तांत, मूल सृजन है, अतः मूल सर्जक की पूर्वानुमति प्राप्त किए बिना किया गया, नया सुगठित (विकृत?) सृजन कॉपीराइट भंग का मामला है ।
* नेट जगत में पोस्ट-अपलॉड किए गये मौलिक सृजन के दूषित परिणाम और उसे रोकने के उपाय ।
+ इंटरनेट का व्याप्त बढ़ते ही, किसी सर्जक के मौलिक सृजन को अभिब्यक्त करने के नये-नये तरीके प्रख्यात होने लगे है और पुरानी प्रिंटिंग पद्धति का चलन धीरे-धीरे कम हो रहा है । अपने सृजन को नेट पर पोस्ट करके नाम कमाने का रास्ता सबसे सरल है ये बात सर्व स्वीकृत है,पर ये भी सच है कि, कॉपीराइट उल्लंघन के सबसे ज्यादा मामले, नेट जगत पर देखने को मिल रहे हैं ।
कोई सर्जक अपना तमाम सृजन नेट पर पूर्णरूप में प्रदर्शित करें, ऐसी परिस्थिति में, अपने सृजन के कॉपीराइट उल्लंघन के मामले में, सर्जक विवश हो कर, ऐसी ग़ैरक़ानूनी गति विधि को, देखता रहता है,या फिर उसके पिछे, अपना वक़्त बर्बाद न करते हुए, नये सृजन कार्य में जुट जाता है ।
ऐसे हालात में, अपने सृजन के साथ ग़ैरक़ानूनी गति विधि को रोकने के लिए, सर्जक को, पूरा सृजन पोस्ट करने के बजाय, मूल सृजन के कुछ अंश ही पोस्ट करने चाहिए । बाद में, केवल लिखित करार करने के पश्चात ही किसी को, मूल सृजन के उपयोग की सहमति देनी चाहिए ।
* किसी वेबसाइट-ब्लॉग पर, मूल सर्जक को क्रेडिट दिए बगैर, उसकी पुर्वमंजूरी के बिना ही सृजन को प्रकाशित करने के बारे में विरोध दर्ज कराने का विवाद ।
+ किसी वेबसाइट-ब्लॉग पर, मूल सर्जक को क्रेडिट दिए बगैर,मूल सर्जक की पुर्वमंजूरी के बिना ही सृजन को प्रकाशित करने के बारे में, मूल सर्जक के अलावा और कोई विरोध दर्ज करा सकता है या नहीं? इसके बारे में अक्सर विवाद होता रहता है ।
अगर कानून की नज़र से देखा जाए तो, कोई भी ग़ैरक़ानूनी गति विधि होती देखकर उसका विरोध करना, प्रत्येक अच्छे नागरिक का धर्म है, ऐसे में अपने पसंदीदा सर्जक और उसके मूल साहित्य के साथ, ग़ैरक़ानूनी गति विधि, सार्वजनिक हित का मामला होने की वजह से, सर्जक के अलावा कोई भी साहित्य प्रेमी पाठक, ऐसी गति विधि को रोकने के लिए,अपना विरोध दर्ज करा सकता है । हालांकि, दीवानी-आपराधिक मामला दर्ज करने का हक़, सिर्फ मूल सर्जक या उनके अधिकृत कॉपीराइट धारक का (power of attorney) होता है ।
* मूल सर्जक की रचना का दुरुपयोग और कॉपीराइट उल्लंघन,जैसे हालात में कानूनी कार्यवाही की समझ ।
+ सब से पहले ऐसे तत्व को पहचान कर,उनसे संपर्क स्थापित करके,उन्होंने जाने-अनजाने में, आपकी रचना का कॉपीराइट भंग किया है, ये बात उन्हें ज्ञात कराके,उसे आपका मौलिक सृजन प्रदर्शित करने से रोकना चाहिए,फिर भी अगर वह ऐसी ग़ैरक़ानूनी गतिविधि करना बंद न करें तो, अपने लॉयर (एडवोकेट) के माध्यम से. उनको नोटिस भेज कर, उन पर दीवानी-आपराधिक मामला दर्ज कराने की चेतावनी देनी चाहिए । जरूरत पड़ने पर ऐसी गतिविधि करनेवालों पर अदालती मामला भी दर्ज करवाना चाहिए ।
* अगर मैं अपने असली नाम के बदले, उप-नाम (तख़ल्लुस) से मेरी रचना प्रकाशित करूँ तो, मुझे कॉपीराइट प्राप्त हो सकता है?
+ ज्यादातर, उप-नाम के साथ असली नाम का उल्लेख करना ज़रूरी है । सिर्फ उप-नाम लिखने से कॉपीराइट उल्लंघन की अदालती कार्यवाही में, आपकी पहचान साबित करने में मुश्किलें आ सकती है ।
* कॉपीराइट आरक्षण के अपरिभाषित विषय ।
+ वास्तविक - स्पष्ट समझ में न आएं ऐसे, कुछ ख़याल-विचार-संशोधन-सर्जन, जो अंतर मन में (दिमाग में) हो परंतु, लिखित रूप में रूपांतरित न किए गए हो..!! अर्थात अप्रकट शीर्षक, नाम, स्लॉगन्स, कार्यप्रणाली, संशोधन की पद्धति, कल्पना, बुनियादी सिद्धांत, उपरांत तिथि-वार-वर्ष-छुट्टी जैसा विवरण दर्शाता, जन कल्याण हेतु तैयार किए गए, आदर्श एवं सर्वत्र प्रचलित कैलेंडर और सरकारी-अर्धसरकारी सूचना स्रोत के कॉपीराइट पंजीकृत नहीं हो सकते ।
* कॉपीराइट एक्ट भंग, दीवानी मामला है कि आपराधिक मामला?
+ कॉपीराइट हमेशा दीवानी मामला होता है,परंतु इस एक्ट का कितनी गंभीर मात्रा में भंग हुआ है, जानबुझ कर, बदइरादे से, आर्थिक लाभ उठाने के उद्देश्य से उसका उल्लंघन किया जाए, तब ये आपराधिक मामला बन जाता है ।
याद रहे, कानून की भाषा में, कॉपीराइट एक्ट उल्लंघन को, साइबर क्राइम जैसा ही महाअपराध और गंभीर दुराचार माना जाता है ।
* कॉपीराइट के उल्लंघन को रोकने के उपाय ।
+ कॉपीराइट एक्ट के अनुच्छेद ६६ अनुसार अदालत ऐसे कोई भी अपराधी,जिसके पास से सृजन की अनाधिकृत कॉपी का संग्रह जप्त किया हो, उन्हें सक्षम अदालत के आदेशानुसार कॉपीराइट के ग़ैरक़ानूनी कॉपी के संग्रह का उपयोग करने पर अदालती रोक (स्टे), संग्रहित कॉपी जप्त करके, उसे नष्ट करने का आदेश, कॉपीराइट धारक को, मुनाफ़े में हुए नुक़शान के साथ, वकील फ़ीस, अन्य अदालती कार्यवाही खर्च, उपरांत निश्चित रूप से हुए आर्थिक नुकसान या फिर, अदालत के आदेशानुसार मुआवजा चुकाने का हुक्म अदालत दे सकती है । दीवानी उपरांत फ़ौजदारी धारा के तहत, ऐसा अपराधी ,दुराशय से, जानबूझकर, बार बार कॉपीराइट एक्ट का उल्लंघन करें तो, उसे जेल की सज़ा और भारी दंड, दोनों की सज़ा का कानून में प्रावधान किया गया है ।
* कॉपीराइट एक्ट कानून रक्षक अधिकारी को प्राप्त अधिकार (सत्ता) का विवरण ।
+ कॉपीराइट एक्ट-१९५७ के अमल के लिए, नियुक्त किए गए, पुलिस सब-इन्स्पेक्टर दर्जे के अधिकारी को, कॉपीराइट एक्ट के अनुच्छेद ६४ के तहत, शिकायत की शीघ्र छानबीन करने के लिए, अपराध होने के पर्याप्त सबूत मिलने पर, किसी भी प्रकार के वारंट बगैर, अपराध स्थान पर छापा मारकर, सारे साधन-सामग्री जप्त करके,बिना विलंब, उसे मेजेस्ट्रीट रूबरू पेश करने के विशिष्ट अधिकार प्राप्त है ।
* कॉपीराइट भंग - दीवानी - फ़ौजदारी न्यायिक कार्यवाही ।
+ पूरे विश्व में, बौद्धिक संपत्ति (The Intellectual Property Rights -IPR) के मौलिक सृजन हक़ रक्षा हेतु कड़े कानून अमल में है , जिस में भारत भी शामिल है । हमारे देश में भी, `Under the provisions of Indian Copyright Act 1957`के मुताबिक कॉपीराइट एक्ट में, कम्प्यूटर सोफ्ट वेयर का भी समावेश किया गया है । जिस में दिनांक- १० मई १९९६ से लागू किए गया संशोधन भी शामिल है । वैसे देखा जाए तो, विश्व में सब से कठोर धारा इस कानून में समाविष्ट कि गई हैं ।
`Indian Copyright Act 1957( ICRA-1957 )`के अनुच्छेद १६ के मुताबिक, कॉपीराइट आरक्षित किसी भी सृजन की नकल करना (COPY-PASTE), अन्य सर्जक के विचार या आलेख की चोरी करके उसे अपने नाम से प्रकाशित करना ( Plagiarism ), अन्य सर्जक की शैली का हूबहू अनुसरण करना (Parody), जैसे हालात में, The Intellectual Property Rights -IPR में, दीवानी कार्यवाही के साथ अदालत में,पर्याप्त मुआवजा चुकाने के साथ-साथ, फ़ौजदारी कार्यवाही के साथ, भारी दंड और सज़ा का प्रावधान किया गया है ।
हालाँकि, किसी सर्जक के मौलिक सृजन को,नुकसान या नष्ट होने की परिस्थिति में, सिर्फ स्थलांतर के हेतु से, अल्पकालिक कॉपी संग्रह, कम्प्यूटर द्वारा तैयार की गई,`Backup copy` पर, ICRA-1957 लागू नहीं होता है । बाद में अगर, ऐसी `बैक-अप कॉपी` को सर्जक की पूर्वानुमति मांगे बगैर, निजी आर्थिक लाभ के लिए उपयोग किया जाए तो, उसे कॉपीराइट उल्लंघन माना जाता है, जिसे साबित करने की ज़िम्मेदारी, शिकायत कर्ता, मूल सर्जक की होती है ।
* `ICRA-1957`के अनुच्छेद -६३ के तहत, कॉपीराइट उल्लंघन के अपराधी को सज़ा का प्रावधान ।
+ `ICRA-1957` के अनुच्छेद ६३ ए (section63 A) मुताबिक, दूसरी बार कॉपीराइट भंग करते पकड़े गए, अपराधी को, एक साल की कड़ी क़ैद (जेल) और/या तो रुपया एक लाख की रकम के दंड का प्रावधान है ।
`ICRA-1957` के अनुच्छेद ६३ बी मुताबिक, ऐसे प्रत्येक उल्लंघन के साथ.शिकायत कर्ता, अपराधी विरूद्ध, अलग-अलग दीवानी-फ़ौजदारी केस दर्ज करवा सकता है । जिस में, दीवानी केस में मुनाफ़े में हुए नुकशान का मुआवजा, कानूनी खर्च और फ़ौजदारी अदालती कार्यवाही में,`ICRA-1957` के अनुच्छेद ६३ बी मुताबिक, कम से कम सात दिन,ज्यादा से ज्यादा तीन साल और/या तो, कम से कम रुपया पचास हज़ार,ज्यादा से ज्यादा रूपया दो लाख तक के भारी दंड का प्रावधान है ।
`ICRA-1957` के अनुच्छेद ६४ के मुताबिक, पुलिस डिपार्टमेन्ट के सेकंड रॅन्क पुलिस इन्स्पेक्टर दर्जे के अधिकारी को, अनुच्छेद ६४ (१) के मुताबिक, अपराधी की तमाम साधन-सामग्री बिना वारंट जप्त करने की सत्ता प्राप्त है, जिसे वापस पाने के लिए, संबंधित सक्षम मेजेस्ट्रीट समक्ष पंद्रह दिन बाद अर्जी कि जा सकती है ।
हालांकि, पुलिस जाँच में कॉपीराइट एक्ट उल्लंघन साबित हो तो, ऐसी स्थिति में, अपराधी की बिना मंजूरी-सहमति माँगे, मेजेस्ट्रीट ऐसे साधन को नाश करने का आदेश कर सकते हैं ।
`ICRA-1957` के अनुच्छेद ६५ के मुताबिक, कॉपीराइट का उल्लंघन का अपराध जानबुझ कर किया जाए और अपराध अदालत में सिद्ध हो जाए तो,ऐसी स्थिति में, अपराधी को भारी दंड और/या तो, दो साल की कड़ी क़ैद की सज़ा का प्रावधान है ।
देश में, मिनिस्ट्री ऑफ ईन्फरमेशन एंड टेक्नोलॉजी, मिनिस्ट्री ऑफ ह्यूमन रिसॉर्स डवलपमेंट डिपार्टमेन्ट, जैसे सरकारी संगठन, कॉपीराइट एक्ट के उल्लंघन की शिकायत को, गंभीरता से लेकर, तुरंत ही दीवानी और फ़ौजदारी कार्यवाही करने में मूल सर्जक को सहायता करते हैं ।
The National Association of Software and Services Companies (NASSCOM) के अधिकारी भी, कॉपीराइट एक्ट,`ICRA-1957` का अमल सख़्ती से लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है । यहाँ दर्शाये गए,सभी सरकारी संगठनों को,पुलिस की सहायता से, छापा मारने से लेकर अपराधी को गिरफ्तार करने तक की सत्ता प्राप्त है ।
Intellectual Property Rights ( IPR's ) के `ICRA-1957` अमल में आए कानून ने, भारत में, Cracking of websites, Copy-Paste, Plagiarism, Parody, Hacking, Piracy, उपरांत साइबर क्राईम से जुडे सभी अनाधिकृत आर्थिक कारोबार के साथ, मानो सचमुच युद्ध ही छेड़ दिया है ।
हमारे `U.N.` की मार्गदर्शिका के मुताबिक, ईलेक्ट्रोनिक्स कॉमर्स के दिनांक- २७ अक्टूबर २००९ में लागू किए गए,`The Information Technology Act 2000` के कानून के कारण, ऐसे अनैतिक पद्धति अपना कर अपना पेट भरने वाले, साइबर लुटेरों के विरूद्ध शिकायत दर्ज होते ही,अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी, साइबर आतंकवाद और डेटा प्रोटेक्शन के मामले में, सख़्त कार्यवाही करना संभव हुआ है ।
साइबर क्राइम की व्याख्या - (In Indian Legal Perspective Cyber Crimes means) “An unlawful act where in the computer is either a tool or a target or both”
साइबर क्राइम का अर्थ है, "कम्प्यूटर का हथियार के तौर पर इस्तेमाल करके और/या तो उसे लक्ष्य बना के, प्रवर्तमान क़ानूनों का उल्लंघन करने की घटना को साइबर क्राईम कहते हैं ।"
वर्तमान युग में, इंटरनेट की सहायता से, `Ecommerce` का व्याप अधिकतम हो रहा है, ऐसे में, कम्प्यूटर का दुरुपयोग करके, कॉपीराइट उल्लंघन, साइट हैकिंग,क्रेडिट कार्ड फ्रोड़, अश्लील मैसेज-फ़ोटोग्राफ़ी, सॉफ्टवेयर पायरसी, जैसी आपराधिक गति विधि करने का चलन बढ़ने लगा है । ऐसे अपराध पर लगाम कसने के लिए,` IT Act, 2000.`( The Information Technology Act, 2000) का कानून लागू किया गया है ।
` IT Act, 2000.` में, कम्प्यूटर के मूल जानकारी की चोरी, हैकिंग, अश्लीलता, सक्षम ऑथोरोटी के आदेशों की अवज्ञा, कानून से आरक्षित क्षेत्र में अनधिकृत प्रवेश, प्रायवसी का भंग या विश्वासघात, बदइरादे से नक़ली पहचान या रुतबा पाने का प्रयास, या फिर नक़ली पहचान से धोखाधड़ी जैसे अपराध कि स्थिति में, डेप्युटी कमिश्नर ऑफ पुलिस द्वारा पर्याप्त जांच करने के पश्चात, कथित अपराधी का अपराध सिद्ध होते ही, उसे जेल की कड़ी सज़ा और/या तो भारी दंड का प्रावधान किया गया है । `Section under IT Act` के अनुच्छेद - ६५ से ७४ तक की धारा के मुताबिक, अपराधी को, शिकायत कर्ता को रुपया एक करोड़ जितना भारी मुआवजा देना पड़ सकता है ।
दीवानी उपरांत इंडियन पिनल कोड की धारा, ४२५/४२६ (हानीकारक कृत्य), ४४१/४४७ ( क्रिमिनल ट्रेस पास), ४१५/४२०( धोखाधड़ी,मानहानि),३७८/३७९ (चोरी),५०३/५०५/५०६ (आपराधिक इरादे से मेल द्वारा धमकी देना) जैसी फ़ौजदारी धारा लागू होती हैं ।
प्यारे दोस्तों, आजकल `सूई की आत्मकथा से लेकर सागर की कविता` जैसे विषय के साहित्य का, कारोबार धड़ल्ले से हो रहा है, ऐसे में कॉपीराइट एक्ट का महत्व और बढ़ जाता है । इस महत्व को समझ कर, अपराध करनेवाले के साथ कड़ी से कड़ी दीवानी और फ़ौजदारी कार्यवाही, मूल सर्जक द्वारा अवश्य करनी चाहिए । किसी से तो शुरूआत करनी ही पड़ेगी,तो फिर आपसे ही क्यों नहीं?
यह आलेख पढ़ने के बाद, कम से कम इतना ज़रूर कीजिएगा, रचनाकार के नामोल्लेख बगैर मिले मेल को, `रचनाकार की जानकारी के साथ ही भेजे` की नोट के साथ उसे वापस भेज दें ।
राष्ट्र-भाषा के प्रेमी होने के नाते, इतना तो आप कर ही सकते हैं । याद रहें, हमें भी एक दिन,ईश्वर,अल्लाह,गॉड को चेहरा दिखाना है और हम चोर बनकर वहाँ खड़े रहना हरगिज न चाहेंगे..!! इन्सानियत का तकाज़ा भी यही है,कि हमारे आसपास राह भूले हुए ऐसे नकली साहित्य सर्जक को सच्ची राह दिखाए ।
मुझे लगता है इतनी नैतिकता तो हम सब में आज भी बाकी है, है ना?
"सब को सदबुद्धि दे भगवान ।"
मार्कण्ड दवे । दिनांक- २७ नवम्बर २०१०.