मैं समय हूँ , मैंने देखा है वेद व्यास को महाभारत की रचना करते हुए , आदि कवि वाल्मीकि ने मेरे ही समक्ष मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादा को अक्षरों में उतारा...सुर-तुलसी-मीरा ने प्रेम-सौंदर्य और भक्ति के छंद गुनगुनाये, भारतेंदु ने किया शंखनाद हिंदी की समृद्धि का. निराला ने नयी क्रान्ति की प्रस्तावना की, दिनकर ने द्वन्द गीत सुनाये और प्रसाद ने कामायनी को शाश्वत प्रेम का आवरण दिया .....!
मैं समय हूँ, मैंने कबीर की सच्ची वाणी सुनी है और नजरूल की अग्निविना के स्वर. सुर-सरस्वती और संस्कृति की त्रिवेणी प्रवाहित करने वाली महादेवी को भी सुना है और ओज को अभिव्यक्त करने वाली सुभाद्रा कुमारी चौहान को भी, मेरे सामने आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री की राधा कृष्णमय हो गयी और मेरे ही आँगन में बेनीपुरी की अम्बपाली ने पायल झनका कर रुनझुन गीत सुनाये ....!
मैं समय हूँ, मेरे ही सामने पन्त ने कविता को छायावाद का नया बिंब दिया, अज्ञेय और नागार्जुन ने मेरी पाठशाला में बैठकर कविता का ककहारा सिखा, मुक्तिबोध और धूमिल ने गढ़ा नया मुहावरा हिंदी का, केदारनाथ सिंह ने किये नयी कविता के माध्यम से हिंदी का श्रृंगार और नामवर ने दिए नए मिथक, नए बिंब हिंदी को. मेरे ही सामने नीरज ने गाये प्रणय के गीत और अमृता ने रची प्रणय की कथा ....!
मैं समय हूँ आज देख रहा हूँ ब्लॉग पर उत्सव होते हुए, अहोभाग्य मेरा कि प्रणय की कथा रचनेवाली अमृता प्रीतम के प्रेमपथ के सहयात्री इमरोज भी पधारे हैं इस उत्सव में. उनको अपने साथ लेकर आयीं हैं पुणे महाराष्ट्र से कवयित्री रश्मि प्रभा...
मंच से एक कर्णप्रिय ध्वनि प्रसारित हो रही है, शायद उत्सव का शुभारंभ होने जा रहा है. चलिए चलते हैं मंच के समीप और देखते हैं क्या हो रहा है वहां ....अरे यहाँ तो पारुल जी पधारी हैं गणपति श्लोक के साथ उत्सव का शुभारंभ करने के लिए. अहा कितना पवित्रमय वातावरण है यहाँ तानपूरा से ध्वनि प्रस्फुटित हो रही है, स्वर लहरियां वातावरण को उत्सवमय बना रही है, मुझे गर्व है कि आज मैं इस उत्सव का हिस्सा बनने जा रहा हूँ .....
आईये पहले हम सुश्री पारुल जी के द्वारा प्रस्तुत- "वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि सम प्रभ। निर्विघ्नं कुरू मे देव! सर्वकार्येषु सर्वदा॥ विद्यादाता गणाधीश सूर्यकोटि सम प्रभ। निर्विघ्नं कुरू मे देव! सर्वकार्येषु सर्वदा॥ ॐ गजाननं भूंतागणाधि सेवितम्, कपित्थजम्बू फलचारु भक्षणम् उमासुतम् शोक विनाश कारकम् ,नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम् . इस गणपति वन्दना में शामिल होते हैं -
गणपति वन्दना के बाद अब वाणी वन्दना की बारी है. उद्घोषक ने अभी-अभी बताया कि इस उत्सव के लिए विशेष रूप से वाणी वन्दना को शब्दबद्ध किया है आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने, जिसे अपना स्वर देकर प्राणवायु प्रदान कर रही हैं स्वप्न मंजुषा शैल याने अदा जी . वन्दना के बोल इसप्रकार है-
"माँ! सरस्वती शत-शत वंदन,
अर्पित अक्षत हल्दी चंदन.
अर्पित अक्षत हल्दी चंदन.
माँ! यह धरती कर हरी-भरी ,
वर दो हम बना सकें नंदन.
वर दो हम बना सकें नंदन.
प्रकृति के पुत्र बनें हम सब,
ऐसी ही मति सबको दो अब-
ऐसी ही मति सबको दो अब-
पर्वत नभ पवन धरा जंगल,
खुश हों सुन खगकुल का गुंजन.
खुश हों सुन खगकुल का गुंजन.
*
माँ यह हिंदी जनवाणी है,
अब तो इसको जगवाणी कर.
अब तो इसको जगवाणी कर.
सम्पूर्ण धरा की भाषा हो,
अब ऐसा कुछ कल्याणी कर.
अब ऐसा कुछ कल्याणी कर.
हिंदीद्वेषी हो नतमस्तक,
खुद ही हिंदी का गान करें-
हर भाषा-बोली को हिंदीखुद ही हिंदी का गान करें-
की बहिना वीणापाणी कर.
*
माँ हमको सत्य-प्रकाश मिले,
नित सद्भावों के सुमन खिलें.
नित सद्भावों के सुमन खिलें.
वर ऐसा दो सत्मूल्यों के,
शुभ संस्कार किंचित न हिलें.
मम कलम-विचारों-वाणी संग,
चिट्ठा अपना आवास करो-
मेरे चिट्ठे से मिटा तिमिर,शुभ संस्कार किंचित न हिलें.
मम कलम-विचारों-वाणी संग,
चिट्ठा अपना आवास करो-
हे मैया! अमर उजास भरो..
*
हम सत-शिव-सुन्दर रच पायें ,
नित सत-चित-आनंद दें-पायें.
नित सत-चित-आनंद दें-पायें.
पीड़ा औरों की हर पायें,
मिलकर तेरी जय-जय-जय गायें.
साकार कल्पना कर पायें, मिलकर तेरी जय-जय-जय गायें.
भारत माँ से आशिष पायें-
हम उठा माथ औ' मिला हाथ,
हिंदी का झंडा फहरायें.
आप उपरोक्त दोनों सुर साधिकाओं को सुनें तब तक के लिए मैं एक छोटा सा विराम लेता हूँ ....मिलता हूँ एक घंटे बाद इसी परिकल्पना पर, किन्तु उससे पहले आज की महत्वपूर्ण चिट्ठी ब्लोगोत्सव-२०१० से संदर्भित---
आदरणीय रवीन्द्र प्रभात जी
नमस्कार
परिकल्पना ब्लॉग उत्सव के लिए एक कदम आगे की पूरी टीम की और से बहुत बहुत बधाई।
हिंदी ब्लॉगिंग की गंभीरता और व्यापकता के लिए यह एक महत्वपूर्ण प्रयास है। साथ ही यह अपने समय से साक्षात्कार करने का भी मौका है। इस संबंध में सूचनाएं भेजते रहें। एक कदम आगे में हमने संपादकीय पेज पर ब्लॉग कोना कॉलम रखा है। इसमें आगामी अंक में ब्लॉग उत्सव पर विशेष सामग्री दी जाएगी। कृपया इस संदर्भ में सहयोग करें।
भरत कुमार
एक कदम आगे
(इस विश्वास को बनाए रखना मेरा पहला लक्ष्य है ......ब्लोगोत्सव-२०१० टीम )
जारी है ब्लोगोत्सव-२०१० मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद
अभिनव सोच ,अभिनव अनुष्ठान ,ब्लोगोत्सव का भव्य शुभारम्भ ....शुभकामनाएँ ..अभिनंदन !
जवाब देंहटाएंहर नई,मौलिक पहल का स्वागत है।
जवाब देंहटाएंसमय तुम्हारी क्या बात ... तुमने तो पूरे काल को हमारे आगे रख दिया.
जवाब देंहटाएंतुम्हारे गर्भ से निःसृत हर साज हमें मुग्ध कर रहे हैं .......
मधुर आरम्भ है ये तो , समय तुम जिसके सहचर बने हो -
उसे बधाई .
गणेश वंदना, (सुश्री पारुल जी की आवाज़ ) - हिंदी का सम्पूर्ण अस्तित्व मुखरित हो उठा है ,
जवाब देंहटाएंआचार्य संजीव जी की वंदना के शब्द, स्वप्न मञ्जूषा जी की आवाज़ सरस्वती
की उपस्थिति दर्शा रही है ....... रवीन्द्र जी ने समय को अपनी कलम में जिस
तरह समेटा है, अद्भुत , अविस्मरनीय है........यह उत्सव समय का सशक्त इतिहास बनेगा
बहुत बहुत बधाई, और वो भी दो दो तरह की...
जवाब देंहटाएंएक तो परिकल्पना महोत्सव की और दुसरे लखनऊ ब्लॉगर्स एसोशियेशन के नए अध्यक्ष चुने जाने पर बहुत बहुत बधाई!!!! शुभकामनायें !!!
आपके इस प्रयास की जितनी तारीफ की जाए कम होगी .. शुरूआत इतनी मधुर ढंग से हो रही है .. तो इसकी सफलता में कोई संदेह नहीं दिखता .. शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंअभिनन्दनीय प्रारम्भ
जवाब देंहटाएंयह तो आज देखा बहुत अच्छी शुरू आत करी है समय ने नया ढंग है यह भी बहुत पसंद आया ...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रयास है. वाकई यह समय ब्लॉग-उत्सव में खोने का है...बधाइयाँ !!
जवाब देंहटाएंShandaar!
जवाब देंहटाएंआपके इस प्रयास की जितनी तारीफ की जाए कम होगी ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं !!
बहुत शुभकामनायें ..
जवाब देंहटाएंउत्सव का शुभारम्भ बहुत ही मनमोहक अंदाज़ में हुआ है....
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
अभिनव उत्सव का अभिनव श्रीगणेश !
जवाब देंहटाएंरचनात्मकता का नया आयाम ! ब्लॉग का संस्कार महोत्सव घट रहा है अब ! स्वागत है !
आपका ये प्रयास निश्चित रूप से हिन्दी ब्लागिंग के उज्जवल भविष्य के निर्माण में सहायक सिद्ध होगा...
जवाब देंहटाएंशुभकामनाऎँ!!!
बहुत बहुत शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंआपको और हम सबको बहुत बहुत बधाई... पारुल जी और अदा दी कि आवाज़ और आपकी रिपोर्ट ने इस आगाज़ में चार चाँद लगा दिए हैं. आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई .
जवाब देंहटाएंअद्भुत आरम्भ है रविन्द्र भाई..आपने अपना ही नहीं हम सब का सपना साकार किया है...अपने कार्य क्षेत्र से बाहर होने के कारण विलम्ब से पहुंचा हूँ लेकिन इसमें मेरी ही हानि हुई है...इस हानि की भरपाई मैं आज इस उत्सव की सारी पोस्ट पढ़ कर करूँगा...एक बार फिर..ढेरम ढेर बधाईयाँ...
जवाब देंहटाएंनीरज
’हम सत-शिव-सुन्दर रच पायें ,
जवाब देंहटाएंनित सत-चित-आनंद दें-पायें.
पीड़ा औरों की हर पायें, ....
---सुन्दर, समन्वित भाव से अभिनन्दनीय प्रारम्भ.. बधाई