मैं समय हूँ ! मैंने सुना है गुरुनानक के उस अमर उपदेश को -" अव्वल अल्लाह नूर उपाया कुदरत के सब बन्दे , एक नूर तो सब जग उपज्या कौन भले कौन भंदे " मेरे कानों में गूंजी है अलामा ईकवाल की वह पंक्तियाँ- " मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना , हिंदी हैं हम बतन हैं हिन्दुस्ता हमारा " मेरी स्मृतियों में दर्ज है गांधी का वह वक्तव्य कि " प्रभु भक्त कहलाने का अधिकारी वही है , जो दूसरों के दुःख को समझे ...!"
मैं समय हूँ ! मेरे ही सामने तुलसीदास ने धर्म की परिभाषा गढ़ी -" पर हित सरिस धर्म नहीं भाई !" और योगिराज कृष्ण ने दिया यह सन्देश-" कर्मण्ये वाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन "
आज भी जब मैं अपने साथियों को लड़ते-झगड़ते देखता हूँ तो स्मृतिशेष के रूप में मेरी आँखों के सामने प्रतिविंबित होने लगते हैं मैथली शरण गुप्त के वे शब्द- " यह पशु प्रवृति है कि आप ही आप चरे, मनुष्य वही जो मनुष्य के लिए मरे ....!" यही कुछ कहा था रहीम ने भी - " यो रहीम सुख होत है उपकारी के संग, बाटन वारे को लगे ज्यों मेंहदी के रंग ...!"
मैं समय हूँ ! मेरे ही समक्ष सलीब पर चढाते हुए / अपने हत्यारों के लिए दुआ माँगते हुए ईसा ने कहा था कि " प्रभु इन्हें सुबुद्धि दे , सुख-शान्ति दे , ये नहीं जानते कि क्या करने जा रहे हैं...!" मैंने कर्बला के मैदान में प्राणों की बलि देने वाले , अंतिम सांस तक मानव कल्याण हेतु दुआएं माँगने वाले , धर्म के मर्म का भेद बताने वाले मुहम्मद साहब को भी काफी करीब से महसूस किया है ।"
मैं समय हूँ ! मैंने देखा है अपने हत्यारों को अभयदान देते हुए महर्षि दयानंद को । अन्य धर्मों के विरूद्ध द्वेष का प्रदर्शन न करने वाले महात्मा बुद्ध को । स्वामी विवेकानंद , रामतीर्थ, रामकृष्ण परमहंस , सूफी संत अमीर खुसरो , हजरत निजामुद्दीन, संत कबीर, नामदेव आदि मेरे समकालीन रहे हैं जैसे आज आप हैं ....आप सभी हैं मेरे समकालीन ...!
आज ब्लोगोत्सव-२०१० का दूसरा दिन है ...पारस्परिक सद्भाव को प्रश्रय देने वाले इस उत्सव में शामिल आप सभी शनै-शनै मेरे पन्नों में दर्ज हो रहे हैं । आज का दिन कितना महत्वपूर्ण है कि इस उत्सव की सफलता की कामना कर रहे हैं हिंदी के प्रख्यात हास्य-व्यंग्य कवि श्री अशोक चक्रधर -
मैं समय हूँ ! साहित्य में सद्भावना को हास्य और व्यंग्य के माध्यम से प्रतिष्ठापित करने वाले अशोक चक्रधर को ब्लोगोत्सव में पाकर मैं हतप्रभ हूँ !
आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल पर और आनंद लेते हैं उनके व्यंग्य : कटाई छंटाई बुर्शायी कुताराई कि चतुराई ....यहाँ किलिक करें
आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल पर और आनंद लेते हैं उनके व्यंग्य : कटाई छंटाई बुर्शायी कुताराई कि चतुराई ....यहाँ किलिक करें
उत्सव जारी है मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद
मैं समय हूँ के साथ..... बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....
जवाब देंहटाएंश्री अशोक चक्रधर जी की उपस्थिति मात्र से गौरवान्वित हो गया यह उत्सव ....इस उत्सव की सफलता की ढेरो शुभकामनाएँ !
जवाब देंहटाएंसचमुच हम सब भाग्यशाली हैं जो ऐसे हस्ताक्षर से साक्षात्कारका अवसर प्राप्त हुआ है !
जवाब देंहटाएंयह उत्सव नही महा उत्सव है, चक्रधर जी को पढ़कर और सुनकर अच्च्छा लगा ....
जवाब देंहटाएंसमय ... तुम माननीय चक्रधर जी को साथ ले आए
जवाब देंहटाएंउत्सव में चार चाँद लग गए
श्री अशोक चक्रधर जी को पढ़कर और सुनकर अच्च्छा लगा ........
जवाब देंहटाएंकमाल का उत्सव चल रहा है .. ऐसी परिकल्पना तो रविंद्र प्रभात जी ही कर सकते थे .. अशोक चक्रधर जी की रचना सुनकर बहुत अच्छा लगा !!
जवाब देंहटाएंAnek shubhkamnayen!
जवाब देंहटाएंहा हा!! अशोक जी को सुनकर मजा आ गया.
जवाब देंहटाएंअशोक जी की उपसथिति ने चार-चाँद लगाए हैं इस उत्सव को !आभार ।
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