मैं समय हूँ !
देख रहा हूँ ...निरंतर गिरते जा रहे मानव-मूल्यों
को भाषा- अप संस्कृति के इस दौर
में ...!अंग्रेजी माहौल में पनप रही पीढ़ी के बुदबुदाते होठों से
निकले सुविधानुकूल बोल हमारी भाषा बन जाने को नियातिबद्ध है ।
मुझे क्षोभ होता है , तब-
जब देखता हूँ नयी पीढ़ी को
अपनी हीं संस्कृति, सभ्यता और सहज बोलचाल से कटते हुए ।
मुझे पीड़ा होती है, तब-
जब देखता हूँ आज के
चाक्षुष माध्यमों की देखरेख में पालने वाले समाज को हिंदी से बचते हुए ।
एक जमाने में -
देवनागरी की चिंता करने वाले तथा उसके प्रचार-प्रसार के लिए जीवनपर्यंत प्रतिबद्ध साहित्यसेवियों ने "निज भाषा" की उन्नति को अपने लेखन-लक्ष्यों में शामिल रखा और-
नागरी की बेल को अपनी रचनात्मक ऊर्जा से संबर्धित
किया ......वह एक सड़ी के भीतर हीं मुरझाने लगी है तथा उसके उन्नत अग्रतर भाषिक रूप के बजाय मुझे चहूँ ओर "हिंग्रेजी" के बोल सुनाई पड़ने लगे है ....!
आज मैं बहुत खुश हूँ यह देखकर कि -
हिंदी को व्यापक प्रभामंडल देने का जिम्मा उठा लिया है
मेरे हिंदी चिट्ठाकारों ने और संप्रति मना रहे हैं ब्लोगोत्सव -२०१० अंतरजाल पर ....!
आज तीसरा दिन है -
मैं देख रहा हूँ मंच पर पधारते हुए प्रख्यात साहित्यकार श्री शकील अहमद सिद्दीकी साहब को
आईये उनकी पीड़ा को महसूस करने और उनके विचार को आत्मसात करने के लिए चलते हैं
कार्यक्रम स्थल पर ....यहाँ किलिक करें
जारी है उत्सव मिलते है एक अल्पविराम के बाद
क्लिक करें पर लिंक लगाना भूल गए या समय नहीं मिला।
जवाब देंहटाएंआपकी नजरों में साहित्यिक संवेदना का मुख्य आधार क्या होना चाहिए ?
जवाब देंहटाएंउ0 साहित्यिक संवेदना का मुख्य आधार जीवन अनुभव होना चाहिए।
साक्षात्कार का एक गूढ़ सन्दर्भ