“तुम्हारे रतलाम के डॉक्टर डॉक्टर हैं या घसियारे?” एमवाय हॉस्पिटल इन्दौर के हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ. अनिल भराणी ने मरीज को पहली ही नज़र में देखते हुए गुस्से से कहा. इकोकॉर्डियोग्राफ़ी तथा कलर डॉपलर स्टडी के ऊपरांत डॉ. भराणी का गुस्सा और उबाल पर था - “ये बेचारा हृदय की जन्मजात् बीमारी की वज़ह से नीला पड़ चुका है और वहाँ के डाक्टर इसे केजुअली लेते रहे. कंजनाइटल डिसीज़ में जितनी जल्दी इलाज हो, खासकर हृदय के मामले में, उतना ही अच्छा होता है.”. उसने मरीज की ओर उंगली उठाकर मरीज के परिजनों पर अपना गुस्सा जारी रखा – “अब तो इसकी उम्र पैंतीस वर्ष हो चुकी है, सर्जिकल करेक्शन का केस था, अब समस्या तो काफी गंभीर हो चुकी है. मगर फिर भी मैं इसे अपोलो हॉस्पिटल चेन्नई रेफर कर देता हूँ. लेट्स होप फॉर सम मिरेकल.”
ये अंश है हिंदी चिट्ठाकारी के एक प्रमुख स्तंभ श्री रतलामी की कहानी आशा ही जीवन है के . इस कहानी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सत्य घटनाओं पर आधारित है ....इस कहानी को पढ़ने के लिए यहाँ किलिक करें

जारी है उत्सव, मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद

1 comments:

  1. Ravindraji,
    Bahut achchha, log anand le rahe hain Utsav ka. bat-bebat men kai kahaniyan hain, kavitayen hain, dhardar tippadisn hain. Utsav men akadh yahan se bhi le jaiye n.


    www.bat-bebat.blogspot.com

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