मैंने काका हाथरसी को देखा है व्यंग्य का नया मुहावरा गढ़ते हुए ...वहीं श्री लाल शुक्ल की भी हास्य रचनाएँ पढ़ी है , जो अपनी फलश्रुति में पाठक या श्रोता को एक ऐसे आत्मसत्य के सन्मुख खड़ा कर देती हैं, जहां वह समस्या पर गंभीर चिंतन के लिए विवश हो जाता है।
मैंने देखा है परसाई को अपने युग के समाज का,उसकी बहुविध विसंगतियों, अन्तर्विरोधों और मिथ्याचारों का विवेचन करते हुए ।
मैंने शरद जोशी के चुटीले व्यंग्य भी पढ़े हैं और के पी सक्सेना के कटाक्ष भी । कटाक्ष की चाशनी में भिगोकर गोली खिलाने वाले मनोहर श्याम जोशी , कृष्ण चंदर और शैल चतुर्वेदी को भी सुना है मन भर ।
आज इस उत्सव में अशोक चक्रधर का व्यंग्य पढ़कर मैं धन्य हो गया । उनके व्यंग्य में एक ताजगी है और अपने आसपास के जीवन को बेहतर करने और समझने की लेखकीय आकांक्षा भी प्रत्येक लेख मर्मभेदी, संवेदनात्मक और सघन तथ्यों का उद्घाटन करता है और पाठकों को वास्तविकता से साक्षात्कार कराता है। अहोभाग्य हमारे कि हमारे समय के हस्ताक्षर से हमारा साक्षात्कार हुआ ।
अब मैं आज के दो चर्चित व्यंग्यकार और समर्पित चिट्ठाकार को मंच पर आते हुए देख रहा हूँ । पहला कदम आगे बढाया है अविनाश वाचस्पति ने और दूसरा कदम गिरीश पंकज ने ।
दोनों की रचनाओं में हमें शिष्ट, उन्मुक्त, गुदगुदा देने वाले, हँसी के फव्वारे प्रेरित करने वाले, समाज की प्रवृत्तियों पर छोटी-सी चुटकी लेने वाले हलके विनोद से लेकर तिलमिला देने वाले चुभते कटाक्ष तक – सभी प्रकार के हास्य-व्यंग्य के दर्शन होते हैं।
(1) आईए चलते हैं पहले अविनाश वाचस्पति के व्यंग्य : जब चूहे बोलेंगे खूब राज खोलेंगे
(2) आईए अब चलते हैं गिरीश पंकज के व्यंग्य : हम तो मूरख जनम के
का अवलोकन करने ....यहाँ किलिक करें
उत्सव जारी है मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद
दोनों व्यंग्यकार व्यंग्य के माध्यम से जो कहना चाह रहे हैं उसमें सफल रहे हैं ,,,,बधाइयाँ दोनों व्यंग्यकार को !
जवाब देंहटाएंदोनों व्यंग्यकारों को इस सुंदर व्यंग्य के लिए बधाइयाँ !
जवाब देंहटाएंबधाइयाँ उत्सव पूरे शबाब पर है...
जवाब देंहटाएंव्यंग्यकारों को इस सुंदर व्यंग्य के लिए बधाइयाँ ... उत्सव शबाब पर है ...
जवाब देंहटाएंदो दो उत्तम व्यंग्यकार एक मंच पर- परिकल्पना उत्सव की उपलब्धि है यह. आभार रविन्द्र जी का.
जवाब देंहटाएंवाह! आभार!
जवाब देंहटाएंव्यंग ने तो उत्सव का महत्व और बढा दिया है। बधाई और शुभकामनायें
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