कल अविनाश वाचस्पति जी ने सुझाया कि अब कार्यक्रम का समापन न किया जाए , क्योंकि यह कार्यक्रम निरंतर सोपान की ओर अग्रसर है . समापन शब्द अवरोध पैदा करता है इसलिए संपन्न शब्द का प्रयोग किया जाए ...!

भाई, श्री अविनाश जी इस ब्लोगोत्सव के साहित्य सलाहकार हैं अतएब उनका यह सुझाव सर-आँखों पर ...आज से कार्यक्रम का समापन नहीं वल्कि कार्यक्रम को संपन्न किया जाएगा अर्थात आज के कार्यक्रम संपन्नता की ओर ....

चलिए आज के इस कार्यक्रम को संपन्नता की ओर ले जाने के लिए हम सब मिलकर उत्सव गीत को स्वर देते हैं . आज के उत्सव गीत माला जी ने लिखा है .....यहाँ किलिक करें

कल अवकाश का दिन है , मिलते हैं पुन: दिनांक २१.०४.२०१० को प्रात: ११ बजे परिकल्पना पर

6 comments:

  1. har roj ek naya utsav geet, aapane sachmuch itihas rach diya hai ....dheron badhayiyan !

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर उत्सव गीत, बधाइयाँ !

    जवाब देंहटाएं
  3. सचमुच बड़ा ही संपन्न कार्यक्रम !

    जवाब देंहटाएं
  4. विगत दो दिनों से फुरसत निकाल कर एक-एक सारी प्रविष्टियां पढ़ डाली....इस ब्लौगोत्सव की जितनी भी सराहना की जाये, कम होगी।

    जवाब देंहटाएं
  5. संपन्‍न शब्‍द का प्रयोग अच्‍छा है .. शुभकामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

 
Top