विविधता में एकता को प्रतिष्ठापित करने के उद्देश्य से इस उत्सव की परिकल्पना की गयी थी. आशाओं के अनुरूप हिंदी चिट्ठाकारों ने इसका समर्थन ही नहीं किया, अपितु इसकी सफलता की कामना भी की. परिणाम आपके सामने है . प्रत्येक ने एकरूपता की नहीं , अपितु एकता की कामना की है . यही कारण है कि इस दिशा में हमारी प्रतिबद्धता एक नए मुकाम की ओर अग्रसर है . छठे दिन की संपन्नता की ओर बढ़ते हुए हम दो महत्वपूर्ण स्वर प्रस्फुटित करने जा रहे हैं . पहला स्वर है डा0 अरविन्द मिश्र का जिनका एक महत्वपूर्ण आलेख आज राष्ट्रीय सहारा के लखनऊ संस्करण में प्रकाशित हुआ है ...शीर्षक है बुद्धिजीवी दिखना भी एक चस्का ...अपने इस आलेख में श्री मिश्र कहते हैं कि " बुद्धिजीवी दिखना भी एक शौक है. यह कोई नया नहीं, बल्कि पुराना शौक है या यूं कहिये कि अब आउट डेटेड हो चला है, कारण कि अब कथित बुद्धिजीवियों की कोई शाख नहीं रही ." राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित इस आलेख को पढ़ने के लिए यहाँ किलिक करें
दूसरा स्वर है सुप्रसिद्ध कवियित्री रश्मि प्रभा का . ये आज उपस्थित हैं उत्सवी स्वर के साथ . वह स्वर जो हमारी अनेक उपासना पद्धतियों, पंथों, दर्शनों, भाषाओं, बोलियों,साहित्य और कला के वावजूद एक हृदय का शंखनाद है . रश्मि जी इस स्वर के माध्यम से हमें हमारी वास्तविकता से परिचय करा रही हैं .....आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल पर उत्सव के इस स्वर में स्वर मिलाने के लिए .....यहाँ किलिक करें
और अब -
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आज की महत्वपूर्ण चिट्ठी
आदरणीय रवीन्द्र जी,
नमस्कार,
परिकल्पना ब्लॉग-उत्सव की परिकल्पना स्वयं में एक अभिनव-प्रयास है ! ब्लॉग-जगत में अनगिन उत्तरदायित्वहीनताओं और निष्क्रियताओं के मध्य ऐसा मौलिक उत्तरदायी प्रयास सराहनीय है ! मैं इस पहल से एक नयी आशा का स्वर सुन पा रहा हूँ ! अनोखा कदम है यह जिसके माध्यम से हम क्रमशः अभिव्यक्त ही नहीं हो रहे, अपितु एकात्म की ओर अग्रसर हो रहे हैं...एक का हृदय दूसरे के समीपतर होते जाना संभव हुआ इस उत्सव की परिकल्पना से ! आपको बधाई व इसकी सफलता के लिए शुभकामनाएं !
आपका -
हिमांशु कुमार पाण्डेय
इसी के साथ आज छठे दिन का कार्यक्रम संपन्न . कल अवकाश का दिन है, मिलते
हैं पुन:दिनांक २८.०४.२०१० को प्रात: ११ बजे परिकल्पना पर, तबतक के लिए शुभ विदा
बधाई.............
जवाब देंहटाएंपढ़ कर आनन्द आया
- अलबेला खत्री
ब्लॉग-जगत में अनगिन उत्तरदायित्वहीनताओं और निष्क्रियताओं के मध्य ऐसा मौलिक उत्तरदायी प्रयास सराहनीय है ! मैं इस पहल से एक नयी आशा का स्वर सुन पा रहा हूँ
जवाब देंहटाएंहिमांशु के इस कथन से शत प्रतिशत सहमत
Aapka prayaas bahut hi saraahniy hi...
जवाब देंहटाएंतारीफें जितनी की जाए कम है ...इस आयोजन से निश्चय ही ब्लॉग जगत धन्य हो गया है ....इतनी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ने को मिल रही है की टिपण्णी करना हम भूल जा रहे हैं ....आनंद आ गया इस उत्सव में शामिल होकर !
जवाब देंहटाएंप्रयास सराहनीय है !
जवाब देंहटाएंbhut achha laga
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