ब्लोगोत्सव के बाद परिकल्पना पर एक खामोशी देखी जा रही थी । मेरे कई मित्रों ने मेल तथा फोन करके इस खामोशी का कारण जानना चाहा ......अब क्या बताऊँ पहला कारण तो ये है कि बच्चों की छुटियाँ चल रही थी अब जो बच्चे हमसे दूर रहकर कहीं किसी अन्य शहर में रहकर पढ़ रहे हों उनके साथ कुछ पल बिताने का यह सुयोग मैं कैसे जाने देता ? दूसरा कारण है परिकल्पना सम्मान -२०१० की तैयारी में व्यस्तताओं का बढ़ जाना । आज थोड़ा समय मिला तो मैंने सोचा कि अपनी खामोशी तोड़ने के लिए कौन सा माध्यम अपनाया जाए ....तब विचार आया कि अपनी तीन वर्षों की ब्लोगिंग में मैंने अपनी आवाज़ में आपके सामने कभी कुछ भी प्रस्तुत नहीं किया , तो क्यों ना अपनी काव्य प्रस्तुति से हीं शुरुआत करूँ ? इसीलिए आज मैं आपको एक मुक्तक और एक ग़ज़ल सुनाने जा रहा हूँ । "मन में उम्मीदों की चाहत भरो, डरो ना किसी से खुद से डरो, यही जिन्दगी का सही फलसफा है, प्यार जिससे करो डूब करके करो.....!" यह मुक्तक मैंने पहली बार आज से लगभग दो वर्ष पूर्व कानपुर स्थित हरकोटियन बटलर इंस्टीट्युट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलोजी के द्वारा आयोजित कवि सम्मलेन में सुनाया था, तब से लगातार प्राय: हर कवि सम्मलेन में मुझसे इस मुक्तक को सुनाने की फरमाईश होती रहती है । आईये शुरुआत करते हैं इसी मुक्तक से - |
---|
ग़ज़ल सुनने के लिए यहाँ किलिक करें
वाह क्या कहने !
जवाब देंहटाएंमंत्रमुग्ध हो गयी मैं आपकी आवाज़ में मुक्तक सुनकर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ..
जवाब देंहटाएंख़ामोशी टूटी और बहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबढ़िया रही प्रस्तुति पर छोटी है.. :)
जवाब देंहटाएंआदरणीय प्रभात जी, दिसंबर-२००८ के उस कवि सम्मलेन में मैं भी उपस्थित था श्रोताओं के बीच , बहुत मजा आया था विपुल लखनवी, सुमन दुबे, डा. सुरेश अवस्थी , अलवेला खत्री और आपको सुनकर . अचानक अलवेला जी के समय में कुछ देर के लिए बिजली चली गयी थी और उन्होंने बिना मायिक के ही एक प्यारा सा गीत सुनाया था ....आज आपने पुरानी स्मृतियाँ ताज़ी कर दी .
जवाब देंहटाएंआदरणीय प्रभात जी, दिसंबर-२००८ के उस कवि सम्मलेन में मैं भी उपस्थित था श्रोताओं के बीच , बहुत मजा आया था विपुल लखनवी, सुमन दुबे, डा. सुरेश अवस्थी , अलवेला खत्री और आपको सुनकर . अचानक अलवेला जी के समय में कुछ देर के लिए बिजली चली गयी थी और उन्होंने बिना मायिक के ही एक प्यारा सा गीत सुनाया था ....आज आपने पुरानी स्मृतियाँ ताज़ी कर दी .
जवाब देंहटाएं'तब विचार आया कि अपनी तीन वर्षों की ब्लोगिंग में मैंने अपनी आवाज़ में आपके सामने कभी कुछ भी प्रस्तुत नहीं किया'
जवाब देंहटाएंइस दरमियान आपने जो दिया; जो सौंपा उस खामोशी की आवाज तो सबने सुनी ही.
और फिर
जब मन में उम्मीदों की चाहत हो तो फिर ...
बहुत सुन्दर पर पूरी रचना नहीं सुन पाये.
खूबसूरत बोल हैं ग़ज़ल के ...
जवाब देंहटाएंवाह!! प्यार जिससे करो डूब करके करो.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति! बधाई..पूरी गज़ल सुनाईये..पॉडकास्ट कर दिजिये. :)
वाह. बहुत खूबसूरत मुक्तक.
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिभा का एक और नमूना सामने आया मुक्तक तो अच्छा है ही आपकी आवाज भी बहुत सुरीली है। बहुत बहुत बधाई\ अभी गज़ल भी पढती हूँ। बच्चों के साथ जरूर वक्त बितायें बाद मे हम इस क्षणों के लिये तरस जाते हैं तब बच्चों के पास समय नही होता। बहुत बहुइत शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंखूबसूरत बोल हैं
जवाब देंहटाएंमेरा आडियो गडबॅड होने के कारण आप को आप की आवाज में तो नहीं सुन सका मगर आलाह और तान के भाव साफ नजर आये. कपिला जी ने कहा सो मान लिया, जरूर होगी सुरीली आवाज. सुननी पडेगी.
जवाब देंहटाएंवाह....बहुत सुन्दर...आनन्द आया सुन कर..
जवाब देंहटाएं