चकला - चकला घूम रहे ढूंढ रहे हैं प्यार
ग़ज़ल
शीशमहल हैं शीशे के वो पत्थर के हैं द्वार ,
कैसे - कैसे लोग बसे हैं महानगर में यार
राधा द्वारे राह निहारे, फिर भी मोहन प्यारे-
चकला - चकला घूम रहे ढूंढ रहे हैं प्यार
हाट -हाट नीलाम चढ़ी प्रेमचंद की धनिया-
और उधर ' होरी ' करता है लमही में चित्कार
दूध युरिया, घी में चर्बी , सुर्खी वाली मिर्ची -
गली - मुहल्ले बेची जाती ढोल पीट ,सरकार
दूर - दूर तक कोई किनारा नही दिखाई देता-
बीच भंवर में खींचतान करते मांझी - पतवार
ताल-तलैया घायल पूजा-पोखर अस्त व व्यस्त ,
जब से बन्दा महानगर का आया गाँव - जबार
अस्त हुआ '' प्रभात'' उदय होने से पहले हीं ,
ख़ौफ़जदा हैं लोग हिचकते जाने से बाज़ार
() रवीन्द्र प्रभात
सटीक बात ..आज हर चीज़ में मिलावट है ..कहाँ तक कोई बचेगा
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र भाई, शानदार गजल कही है। बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएं................
…ब्लॉग चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 5-10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
आपका ब्लॉग देर से खुलता है ..
यह ग़ज़ल सच का आईना है, हम हर रोज हर क्षेत्र में हो रही मिलावट से त्रस्त हैं, बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएंयह ग़ज़ल सच का आईना है, हम हर रोज हर क्षेत्र में हो रही मिलावट से त्रस्त हैं, बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएंशानदार गजल ,बधाई !
जवाब देंहटाएंसचमुच शानदार है यह ग़ज़ल ....एक-एक शेर आकर्षित कराती हुयी !
जवाब देंहटाएंबढ़िया गज़ल है ।
जवाब देंहटाएंवाह ! शानदार गज़ल ... बढ़िया कटाक्ष के साथ ... बधाई
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बहुत ही सुन्दर शब्द लिये हुये बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबेहद गहन और सटीक गज़ल्।
जवाब देंहटाएंआशावादी होने का कितना भी यत्न करें ...कुछ सच मुंह चिढाते ही हैं ...!
जवाब देंहटाएंसच का आईना है यह...
जवाब देंहटाएंराधा द्वारे राह निहारे, फिर भी मोहन प्यारे-
जवाब देंहटाएंचकला - चकला घूम रहे ढूंढ रहे हैं प्यार......
बहुत ही सशक्त समसामयिक प्रतुस्ती.....
अस्त हुआ '' प्रभात'' उदय होने से पहले हीं ,
जवाब देंहटाएंख़ौफ़जदा हैं लोग हिचकते जाने से बाज़ार
वाह!! .... बहुत खूब
सुंदर रचना .. बधाई स्वीकारें
दूध युरिया, घी में चर्बी , सुर्खी वाली मिर्ची -
जवाब देंहटाएंगली - मुहल्ले बेची जाती ढोल पीट ,सरकार
यथार्थ ..
सुन्दर गज़ल
सुंदर रचना सशक्त समसामयिक प्रतुस्ती.....
जवाब देंहटाएंवाह!! .... बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसच का आईना दिखाती प्रभावी गज़ल...हर शेर कुछ खास कहता है ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं...
दूध युरिया, घी में चर्बी , सुर्खी वाली मिर्ची -
जवाब देंहटाएंगली - मुहल्ले बेची जाती ढोल पीट ,सरकार ..
ग़ज़ब का व्यंग है ... सच का आईना ... हर कोई नही देखना चाहता इसे ....