(ग़ज़ल )
जीना है एक-एक पल टटोलकर जियो
जब तक जियो प्रभात जिगर खोलकर जियो ।

हिम्मत बुलंद है तो मिलेगी तुम्हें मंजिल-
कदमों को मगर नापकर व तोलकर जियो ।

रह जायेगी बस याद तेरी इस जहान में -
कोयल की तरह मीठे बोल बोलकर जियो ।

दिल में खुलूश है तो शिकवे-गिले है क्या -
आँखों की लाज आंसूओं में घोलकर जियो ।

सच कहूं तो कामयाबी का वसूल है-
कानों के साथ-साथ नयन खोलकर जियो ।

() रवीन्द्र प्रभात

13 comments:

  1. अच्छी,सार्थक और सराहनीय प्रस्तुती...

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  2. पूरी गज़ल सार्थक सन्देश देती हुयी। बधाई।

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  3. प्रेरणा देती हुई अच्छी गज़ल,बधाई।

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  4. वाह, मतला व मक्ता एक ही शेर में---बहुत खूब....

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