आपकी नाराजगी जो रह गयी है ।
ग़ज़ल :
एक कतरा जिंदगी जो रह गयी है
घोल दे सब गन्दगी जो रह गयी है ।
भीख देगा कौन , मुझको ये बताओ-
तुझमें ये आवारगी जो रह गयी है ।
आंख से आंसू छलक जाते अभीतक-
इश्क में संजीदगी जो रह गयी है ।
चाँदनी में घूमता है रात भर वह-
चाँद में दोशीजगी जो रह गयी है ।
सर-कलम कर मेरा, खंजर फेंक दे-
आंख में शर्मिंदगी जो रह गयी है ।
फासला प्रभात से है इसलिए बस-
आपकी नाराजगी जो रह गयी है ।
() रवीन्द्र प्रभात
*दोशीजगी: कुवांरापन
अच्छी ग़ज़ल के लिए एकबार पुन: बधाईया
जवाब देंहटाएंभीख देगा कौन , मुझको ये बताओ-
जवाब देंहटाएंतुझमें ये आवारगी जो रह गयी है ।
अच्छी पंक्तियाँ, अच्छी अभिव्यक्ति !
waah......dil tak utarte ehsaas
जवाब देंहटाएंअच्छी अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंअच्छी ग़ज़ल,अच्छी पंक्तियाँ !
जवाब देंहटाएंफासला प्रभात से है इसलिए बस-
जवाब देंहटाएंआपकी नाराजगी जो रह गयी है ।
अच्छी पंक्तियाँ...!
चाँदनी में घूमता है रात भर वह-
जवाब देंहटाएंचाँद में दोशीजगी जो रह गयी है । nice
भाव पूर्ण रचना |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत खूबसूरत
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