चकाचौंध से भरी चमक का जादू तड़ित-समान दे दिया।
मेरे नयन सहेंगे कैसे यह अमिताभा, ऐसी ज्वाला?
मरुमाया की यह मरीचिका? तुहिनपर्व की यह वरमाला?
हुई यामिनी शेष न मधु की, तूने नया विहान दे दिया।
मैंने एक किरण माँगी थी, तूने तो दिनमान दे दिया। ... आरसी प्रसाद सिंह
उत्सव की उत्सवी यात्रा के मध्य मेरे मन आँगन में ऐसे ही विचार खग कलरव से गूंजते हैं और भावनाओं के रथ की सारथि बनी मैं हर दिन को एहसासों के विविध रंगों से भरकर आपके लिए मंच से पर्दा हटाती हूँ …… सच्चे सहयात्री,जिनकी अभिरुचि पढ़ने में है,वे बेसब्री से मेरे रथ का इंतज़ार करते हैं .
कुछ एहसास छन्न से गिरते हैं शाखों से
छन्न से उतरते हैं सूर्य किरणों से
छन्न से दुबक जाते हैं मन की ओट में
कई एहसास ……
उनमें से कुछ उठा लाई हूँ हथेलियों पर
और अब रखती हूँ उन्हें परिकल्पना के मोहक मंच पर
कुछ इस तरह -
इसके पहले
कि खुश्क़ हो जाये ये दिन
और ख़ामोश , दुबक कर सो जाए
रात की मसहरी में …
गुज़रना चाहती हूँ तुम्हारी जर्जर आवाज़ के गलियारे से
एक बार फिर …
वहां ,
उसकी गूँज के अंतिम छोर पर
टंगा होगा अब भी
इक बड़ा, पुराना आला
जहां थक कर बैठ जाते थे हवा में पैर झुलाए
हम दो
चाहती हूँ सराबोर करना
दुपट्टे की कोर
तुम्हारी कासनी मुस्कुराहट के छींटो से,
टूटते जुमलों में पिरोना
ज़िद की लड़ियाँ…
स्मृतियों में ही सही
जिलाना चाहती हूँ अपने अंतस की
नन्ही बच्ची
जिसे चाव था धुँध का ,धनक का,
उजली सीपियों का …
जो लहरों की लय पर छेड़ती थी
ऊँघती सारंगी की देह में
मल्हार…
जिसकी फुहारों में भीगता था
तुम्हारे काठ का अभिमान …
इसके पहले
कि दिन झपकने लगे अपनी अलस पलकें …
एक बार फिर
गुज़रना चाहती हूँ
तुम्हारी अधूरी आवाज़ के गलियारे से
बस एक बार …
पारुल "पुखराज"
आओ सूरज,
तनिक चाय पीयो
देखो
सर्दियों की चहक
कोहरे की धमक
ओस की बूंद
उसकी चमक
सुबह का दृश्य
ऐसे में,
क्या होगा उग कर
अभी से यूं
सोने दो,
जो सोना चाहें
ओढ़ने दो
जो ओढ़ना चाहें
नींद की चादर
आओ सूरज,
तनिक चाय पीयो
अब
करने भी दो
ठंड का आदर।
- सतीश पंचम
हर उस बैंगनी रात की गवाही में
चिलमन के सुराखों से,
झांकता हुआ आसमान की तरफ
पल पल बस यही सोचता हूँ,
कुछ तारे तुम्हारे नाम कर दूं...
जब भी उन थके हुए पैरों को
कभी डुबोता हूँ जो
पास की उस झील में,
सन्न से मिलने वाले उस
सुकून को महसूस करके सोचता हूँ,
जब भी अकेले में कभी
करता हूँ तुम्हारा इंतज़ार,
हर उस पल
घडी के इन टिक-टिक करते
क़दमों को देख कर ये सोचता हूँ,
घडी की सूईओं के कुछ लम्हें तुम्हारे नाम कर दूं...
जब भी तुम्हारे साथ
बिताया वक़्त कम लगने लगता है,
जब कभी भी
तुम्हें भीड़ में खोया मैं
अच्छा नहीं लगता,
अपनी उम्र के साल गिनते हुए सोचता हूँ,
आने वाले सारे जन्म बस तुम्हारे नाम कर दूं...
शेखर सुमन
आज परिकल्पना ब्लॉगोत्सव में बस इतना ही, मिलती हूँ कल फिर इसी समय इसी जगह यानि परिकल्पना पर.... तबतक के लिए शुभ विदा।
आज परिकल्पना ब्लॉगोत्सव में बस इतना ही, मिलती हूँ कल फिर इसी समय इसी जगह यानि परिकल्पना पर.... तबतक के लिए शुभ विदा।
Interesting Loving Poems shared by you ever. Being in love is, perhaps, the most fascinating aspect anyone can experience. प्यार की स्टोरी हिंदी में Thank You.
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachnayein
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुंदर रचनाऐं !
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