एक शाख़ पर टिका है ....
छप्पर की दरारों से ....
चुपचाप झांकता आया था
नंगे पाँव फर्श पे बैठा उकडूं
खाट पे उंघियाया था
रेंगा था कुछ दूर तलक भी
दीवारों के साये-साये
कस कर थामे रहा जिगर
फिसलन कोई आये-जाये
बिन कोयला दहकाए भाँडे
फूटी हांड़ी घिसी परात
गोया पकी रसोई में
बची रही कोयले की आंच
आधी खुली सुराही पे
लटका था कुछ देर तलक
बूंद-बूंद बतियाया जैसे
सागर पीता पलक-पलक
एक धूप का पुर्ज़ा कल
अपनी निशानी छोड़ गया
सीली हुई दीवारों पर
उजली कहानी छोड़ गया
(शिखा गुप्ता)
मद्धिम है रौशनी
पर जलते अंगारे
अभी बुझे नहीं हैं
तपती रेत से
उठते बगुल
गढ़ते हैं परिभाषा
कविता की .....
खूंटियों पर
टंगी है श्लीलता ....
कुछ हवा में गाँठ
बाँधने की कोशिश में
नग्न हो जाती है
बार-बार .....
अब नहीं है किसी को
शब्द सम्मान की फ़िक्र
अहंकार की ढूह पर
पड़ी है एक उदात्त
वैचारिक जड़ता .....
कुछ शब्द खलनायक से
लगाते है ठहाके
साहित्य और संस्कृति के
चिंताकुल प्रश्नों पर .....
शायद तभी
आज का कवि
अश्लीलता की हद तक
शब्दों से करता है वज्रपात
और कविता ........
मुंहतोड़ प्रतिवाद में
खड़ी हो जाती है ......!!
लोग
शब्दों जैसे डूबे होते हैं
उलझे होते हैं बालों जैसे
ऑफिस की फाइलों से लेकर
मुड़ी हुई चादर तक
यहाँ-वहां ताकते हुए
आईने ढूँढा करते हैं !
मोबाइल, चश्में, टी वी स्क्रीन और मेनू की माफिक
उल्टा -पुल्टा होते रहते हैं
किसी भी जुबां को कान नहीं देते
बस आँख देते हैं
छाती के उभारों से अंतर्मन तक
कबाड़ी जैसे टटोलते-फिरते हैं
बिस्तर का अनुपात ।
भीड़ में ठुस होकर
शाम को
प्लेट भर कोने में फ़ैल जाते हैं
किताब की सोच, सोच की किताब कुतरते हुए
हँसते हुए रोते हुए गाते-कसमसाते हुए
लोग
कॉफ़ी के हर घूँट का हिसाब 'पे' कर देते हैं
रश्मि चौधरी
ख्याल जरूर टिक लेते हैं शाखों पर
जवाब देंहटाएंबहुत कमजोर होती हैं शाखें लेकिन
कम नहीं बहुत बहुतों की :)
रश्मिजी ...सुन्दर लिंक्स...हमेशा कि भाँती
जवाब देंहटाएंखूंटियों पर
जवाब देंहटाएंटंगी है श्लीलता ....
कुछ हवा में गाँठ
बाँधने की कोशिश में
नग्न हो जाती है
बार-बार .
wwwwwwwwwww...........bheetar tak bhar diya kavita ne
badhaai !
जवाब देंहटाएं- अपनी रचना देख कर बहुत मुदित हूँ . .....रश्मि दी प्यारा सा आभार
- "वैचारिक जड़ता के चलते शब्द बन गये हैं खलनायक" ..वाह
...और जब शब्दों का सम्मान नहीं तो क्यूँ न करे कविता प्रतिवाद
..बहुत सुंदर और गहरी रचना ..अभी बहुत कुछ समझ पाना शेष है
- एक कप कॉफ़ी प्लीज :)
सुखद आश्चर्य ! प्रभा दी बहुत सारा आभार ! मिल बाँट कर चखने से रचनाओं का स्वाद कहीं अधिक बढ़ जाता है, ये आपसे अधिक और कौन सिखा सकता है भला !
जवाब देंहटाएंइस जुड़ाव की स्मृति सदैव बनी रहेगी
सस्नेह
आपकी हमनाम हमजोली :)