जब "ॐ" का उच्चारण होता है
तो पूरी सृष्टि 'ॐ' की प्रतिध्वनि बन
प्रकृति के कण-कण को छूती है
कविता,कहानी,संस्मरण ....
जब दिल की गहराई से लिखे जाते हैं
तो निःशब्द दिल में उतर जाते हैं
हर कोई न 'ॐ' का मूल्य समझता है
ना ही हर आदमी के पल्ले भावना पड़ती है
- 'ॐ' ख़ामोशी में भी दिल-दिमाग से निःसृत होता है
एहसास चुप्पी से भी प्रवाहित होता है
भीड़ में भी पूजा हो जाती है
अनकहे में भी बहुत कुछ कह दिया जाता है
समझने,ना समझने का फेर है बस !!!
कही अतुल जलभृत वरुणालय
गर्जन करे महान
कही एक जल कण भी दुर्लभ
भूमि बालू की खान
उन्नत उपल समूह समावृत
शिला सकल से शून्य धान्यमय
विस्तृत भू अन्यत्र
एक भाग को दिनकर किरणे
रखती उज्जवल उग्र
अपर भाग को मधुर सुधाकर
रखता शांत समग्र
निराधार नभ में अनगिनती
लटके लोक विशाल
निश्चित गति फिर भी है उनकी
क्रम से सीमित काल
कारण सबके पंचभूत ही
भिन्न कार्य का रूप
एक जाति में ही भिन्नाकृति
मिलता नहीं स्वरुप
लेकर एक तुच्छ कीट से
मदोन्मत्त मातंग
नियमित एक नियम से सारे
दिखता कही न भंग
कैसी चतुर कलम से निकला
यह क्रीडामय चित्र
विश्वनियन्ता ! अहो बुद्धि से
परे विश्व वैचित्र्य.
आशीष राय
महाभारत की कहानी सुनते हुए पांच साल के बेटे ने पूछा, सिर्फ पांडव, कौरव और कृष्ण थे वहां? तो फिर लड़कियां कहां थीं? वाकई, महाभारत की नायिकाएं कहां थीं? गंगा, कुंती, गांधारी, द्रौपदी और सुभद्रा की तो कहानियां सुनीं, लेकिन बाकी नायिकाएं कहां थीं? महाभारत का बीज कहां से आया? दुर्योधन की पत्नी कैसी रही होगी? जीवनभर सारथिपुत्र कहलाने और दुर्योधन की आजीवन कृतज्ञता का बोझ ढोने को शापित कर्ण की पत्नी वृशाला को कैसा लगता होगा जब उसका पति पथ-पथ पर घोर उपहास का पात्र बनता होगा? वो कैसी पत्नियां रही होंगी कि एक ने साथ छोड़कर चले जानेवाले पति की मौत का उपहार मांगा होगा मातृऋण के बदले, तो दूसरी ने नागमणि का दान दिया होगा? वो कैसी पत्नी रही होगी जिसने अपने इकलौते पुत्र को युद्धक्षेत्र में भेजने में संकोच नहीं किया होगा - वो भी उस पिता के बुलावे पर जिसे बेटे ने देखा तक नहीं। महाभारत धर्म और अधर्म, जय और पराजय, विलास और संन्यास, महत्वाकांक्षा और अभिमान, सुरक्षा और भय, भोग और त्याग, युद्ध और शांति, कर्म और दुष्कर्म, जीवन और मृत्यु की महागाथा है। महाभारत उन भूली हुई नायिकाओं का शोक-गीत भी है जो अपने कर्मों को भोगने के लिए इस महागाथा के पन्नों का हिस्सा बनीं।
सत्यवती
ऊंची महत्वाकांक्षा
अप्रतिम सौंदर्य
केवट का घर
वृद्ध राजा का महल
देवव्रत के भीष्म
होने का फल
निष्फल पुत्र
अभिमान क्षुण्ण
मत्स्यगंधा, तुम
गंगा की लहरों पर ही सुरक्षित रहती!
हिडिंबा
प्रेम में समर्पण
विरह को अर्पित
जीवन-दर्शन
सुहाग में वैधव्य
पति को सर्वस्व
छिनी भाई की शान
किया कुरुक्षेत्र में
पुत्र का बलिदान
हे देवी हिडिंबा
तुम राक्षसी ही भली थी!
माद्री
ना कोई लिप्सा
ना ही प्रतिकार
ना मांग ही कोई
ना मिला वरदान
कुंती की छाया
अश्विनी की माया
पति का बाहुपाश
चिता की आग
ओ माद्री,
तुम्हें सती तो ना होना था!
भानुमति
सुयोधन की नायिका
दुर्योधन की संगिनी
दुःस्वप्नों का श्राप
पति के पाप
अधर्म का साथ
खलनायक का हाथ
द्रौपदी से डाह
इंद्रप्रस्थ की चाह
हे काशीकन्ये,
तुम्हें मोक्ष कैसे मिलना था!
चित्रांगदा
मणिपुर की रानी
वीरांगना, अभिमानी
अर्जुन हुए पस्त
रूप से मदमस्त
बब्रुवाहन बना नायक
अर्जुन-सा धनुर्धर
बेटे से वचन
पितृवध की कसम
हे अर्जुन पत्नी,
पति से ये कैसा बदला था?
उलुपी
नागों की कन्या
मोहक और रम्या
अर्जुन से नेह
दिया जीवन सस्नेह
नागमणि का मान
पति को प्राण-दान
अपेक्षाओं से किनारा
बेटे को संवारा
ओ उलुपी,
एक रात के बदले ऐसे बलिदान?
उत्तरा
विराट की बेटी
मत्स्यवंशी कन्या
नृत्य में प्रवीण
अभिमन्यु की प्रिया
कुरुक्षेत्र की धरोहर
कोख में विरासत
ब्रह्मास्त्र की सताई
नारायण की बचाई
ओ उत्तरी,
उस जीवन से कीमती विजय का कोई टुकड़ा ना था।
अनु सिंह चौधरी
मैं कौन? इसी एक सवाल की तलाश में तो उम्र गुज़ार रहे हैं। जवाब मिला तो लौटकर बताती हूं।
बहुत सुंदर रचनाऐं !
जवाब देंहटाएंबहुत आभार दी , मुझ अकिंचन को इस मंच पर स्थान देने के लिए .
जवाब देंहटाएं- कैसी सुंदर भाषा में ईश्वर-प्रदत्त ....आनंद आ गया
जवाब देंहटाएं- महाभारत ही क्यूँ रामायण भी कब स्त्रियों की सुध ले पायी . वास्तविकता ये है कि पुरुषों से हम स्त्री को समानता देने की आशा नहीं कर सकते . सदियों से पोषित मानसिकता कही जा सकती है पर यही सत्य है .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंbhaut hi khubsurat rachnaaye....
जवाब देंहटाएंवाह बहुत उत्कृष्ट , कितनी सहजता से इतने गहन भाव को आपने इन चरित्रों के माध्यम से उपस्थित कर दिया .. बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति ..
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