जब -
बीमार अस्पताल की 
बीमार खाट पर पडी - पडी 
मेरी बूढ़ी बीमार माँ
खांस रही थी बेतहाशा 
तब महसूस रहा था मैं 
कि, कैसे -
मौत से जूझती है एक आम औरत । 
कल की हीं तो बात है 
जब लिपटते हुये माँ से 
मैंने कहा था , कि -
माँ, घवराओ नही ठीक हो जाएगा सब ..... । 
सुनकर चौंक गयी माँ एकवारगी 
बहने लगे लोर बेतरतीब 
सन् हो गया माथा 
और, माँ के थरथराते होंठों से 
फूट पडे ये शब्द -
"क्या ठीक हो जाएगा बेटा ! 
यह अस्पताल ,
यह डॉक्टर ,
या फिर मेरा दर्द ........? 
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
 

 
 
काफ़ी गंभीर अनुभूति.
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस पर मेरी तरफ़ से बधाई
जवाब देंहटाएंदीपक भारतदीप्
वाकई! क्या क्या ठीक हो जायेगा!
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना.
"क्या ठीक हो जाएगा बेटा !
जवाब देंहटाएंयह अस्पताल ,
यह डॉक्टर ,
या फिर मेरा दर्द ........?
बहुत बढ़िया अनुभूति है, बधाइयाँ
आपकी सम्वेदित ह्रदय ने मुझे मुनव्वर राणा की दो पन्क्तियां याद दिला दी
जवाब देंहटाएंकिसी के हिस्से मे दुकां किसी के हिस्से मे मकां आयी
मै घर मे सबसे छोटा था मेरे हिस्से मे मां आयी
फ़िर निदा फ़ाजली के ये शव्द देर तक मन मे घुमरते रहे-
मै रोया परदेश मे भीगा मां का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार
धन्यवाद आपका
बहुत ख़ूब रविन्द्र जी...माँ " एक ऐसा जज्ज्बा है ,जो रूह को ख़ुशी देता है ....एक शेर अर्ज़ है ।
जवाब देंहटाएंएक माँ पत्थर उबालती रही तमाम रात ।
बच्चे फरेब खा के चटाई पे सो गए ....
इस दो पंक्ति के शेर ने माँ की पुरी व्यथा कह डाली .....
अच्छा लिखा है आपने ...