बचपन के नाम से पुकारा ,
मैंने पीछे मुड कर देखा तो
एक बुजुर्ग सज्जन नज़र आये
मैंने पूछा,आप कौन हैं
पहचाना नहीं
वो खिन्न भाव से कहने लगे
विश्वास नहीं होता
तुम इतना बदल जाओगे
मैं तुम्हें स्कूल में पढाता था
मैं नहीं भूला तुम्हें
तुम कैसे भूल गए मुझे
क्या तुम भी ज़माने की
चाल चलने लगे
मैंने ऐसा तो कुछ नहीं
पढ़ाया था तुम्हें
मैं शर्म से गढ़ गया
तुरंत उन्हें प्रणाम किया
क्षमा मांगते हुए बोला
गुरूजी पथ से भटक
गया था
पर बरसों बाद आपने
मुझे कैसे पहचान लिया
गुरूजी बोले
हर शिष्य को कलेजे का
टुकडा समझता रहा
तुम्ही बताओ
कोई अपनों को कैसे
भूल सकता
09-05-2012
505-20-05-12
सुन्दर प्रस्तुति
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