ज़िन्दगी जन्म लेती है
ज़िन्दगी जान देती है
हर हाल में एक नज़्म सुनती-सुनाती है ज़िन्दगी
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समापन भी एक उत्सव है
नहीं तो अस्त होते सूर्य को
पूरी एकाग्रता से हम अर्घ्य न देते
दिन हो या रात
मायने दोनों के हैं
एक सी ज़िन्दगी बेरंग,बेरस हो जाती है
उत्सव के भरपूर दिन दिए हमने आपको
अब विदा की बारी है
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विदा की बेला में रुकने की बात न करो
बहुत दिन रहे साथ - अब जाने दो
उतसव की यादों को रखना मन के सिरहाने
तब तक - जब तक कोई याद मोती न बन जाए
जाने से पहले उन्हें करते हैं याद
जो हैं हमारी बुनियाद
…… रश्मि प्रभा
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आदमी को आदमी बनाने के लिए
जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिए
और कहने के लिए कहानी प्यार की
स्याही नहीं, आँखों वाला पानी चाहिए।
गोपालदास "नीरज"
उड़ चल हारिल लिये हाथ में
यही अकेला ओछा तिनका
उषा जाग उठी प्राची में
कैसी बाट, भरोसा किन का!
अज्ञेय
प्रथम रश्मि का आना रंगिणि!
तूने कैसे पहचाना?
कहाँ, कहाँ हे बाल-विहंगिनि!
पाया तूने वह गाना?
सोयी थी तू स्वप्न नीड़ में,
पंखों के सुख में छिपकर,
ऊँघ रहे थे, घूम द्वार पर,
प्रहरी-से जुगनू नाना।
सुमित्रानंदन पंत
लहर सागर का नहीं श्रृंगार,
उसकी विकलता है;
अनिल अम्बर का नहीं खिलवार
उसकी विकलता है;
विविध रूपों में हुआ साकार,
रंगो में सुरंजित,
मृत्तिका का यह नहीं संसार,
उसकी विकलता है।
हरिवंशराय बच्चन
तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या!
तारक में छवि, प्राणों में स्मृति
पलकों में नीरव पद की गति
लघु उर में पुलकों की संस्कृति
भर लाई हूँ तेरी चंचल
और करूँ जग में संचय क्या?
महादेवी वर्मा
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।
रामधारी सिंह 'दिनकर'
मैंने एक किरण माँगी थी, तूने तो दिनमान दे दिया।
चकाचौंध से भरी चमक का जादू तड़ित-समान दे दिया।
मेरे नयन सहेंगे कैसे यह अमिताभा, ऐसी ज्वाला?
मरुमाया की यह मरीचिका? तुहिनपर्व की यह वरमाला?
हुई यामिनी शेष न मधु की, तूने नया विहान दे दिया।
मैंने एक किरण माँगी थी, तूने तो दिनमान दे दिया।
आरसी प्रसाद सिंह
मेरी सेज हाजिर है
पर जूते और कमीज की तरह
तू अपना बदन भी उतार दे
उधर मूढ़े पर रख दे
कोई खास बात नहीं
बस अपने अपने देश का रिवाज है……
अमृता प्रीतम
शायद मैंने हाथ बढाये थे-
दर्द का दान देकर तुमने मुझे विदा कर दिया !
यह दर्द, निर्धूम दीपशिखा के लौ की तरह
तुम्हारे मन्दिर में अहर्निश जलता है।
कौन जाने, कल की सुबह मिले ना मिले
अक्सर तुमसे कुछ कहने की तीव्रता होती है
पर.......... सोचते ही सोचते,
वृंत से टूटे सुमन की तरह
तुम्हारे चरणों में अर्पित हो जाती हूँ !
सरस्वती प्रसाद
रहीम,कबीर,दिनकर,महादेवी,बच्चन,प्रसाद ........... इन जैसे महारथियों ने गीता सार की तरह जीवन के कई आयाम हमें सौंपे ताकि हम इस ज्ञान से ज्ञान की उत्पत्ति कर सकें . ज्ञान ही ज्ञान की श्रृंखला है और विविध आयाम .
शिवाजी सामंत की मृत्युंजय,आशापूर्ण देवी की न हन्यते,शिवानी की कृष्णकली,........... कथाकारों ने कहानियों के माध्यम से, गीतकारों ने गीतों के माध्यम से वे सारी नदियाँ हमें दीं - जिनसे हम अलग अलग समय में,अलग अलग उठते विचारों को सिंचित कर कई उद्गम का निर्माण कर सकें .
हम जो लिखते हैं - वह विचारों का वह प्रवाह है,जो दूसरों को चिंतन देता है,हौसला देता है,जीने के बंद रास्तों को खोलता है . शब्द शब्द परिवर्तन के बीज होते हैं , बंजर जमीन भी उर्वरक हो सकती है ,इस विश्वास के साथ कवि ,लेखक लिखता है - और विश्वास का अर्थ है विश्वास, जिसके आगे -
क्षुधित व्याघ्र सा क्षुब्ध सागर गरजता है ..... जहाँ अविचल,अडिग रहना ही प्रस्फुटन है संभावित उम्मीदों का
यादों के बहते पानी का चनाब दिल को बहा लेता है,नाम सहस्त्रों ! कितना लिखूँ - कितना भूलूँ ! विराम के बगैर यात्रा कहाँ और कैसी ! तो आगे की यात्रा की चाह में लेते हैं विराम,पर विराम से पहले चारु के दिल से सुनते हैं '
कृष्णकली. - kuch dil ne kaha........................
शायद ये नाम ही काफी होगा उन लोगों के लिए जो ये किताब पढ़ चुके हैं। मैंने ये किताब कई बार पढ़ी है, और हर बार कलीके व्यक्तित्व का एक नया पहलू मेरे सामने उजागर हुआ। खैर , आइये शुरुवात से शुरू करते हैं। कृष्णकली एक उपन्यास है शिवानी द्वारा लिखा गया। शिवानी हमेशा से मेरी प्रिय लिखिका रही हैं, हिंदी साहित्य जितना भी पढ़ा उसमे शायद शिवानी की किताबें ही सबसे ज्याद पढ़ी हैं। मुझे आज भी याद हैं वो दिन जब में अपने इंजीनियरिंग की परीक्षाओं के बीच में भी शिवानी की किताबें पढने का वक़्त निकाल लेती थी।
ऐसा ही एक दिन था, शायद कॉलेज में मेरे पहले ही साल में, जब शाम के वक़्त मैंने पहली बार ये उपन्यास पढ़ कर ख़त्म किया था। उस वक़्त जो मेरी मनोदशा थी वो वैसी ही थी जैसी 'गुनाहों का देवता' पढने के बाद हुई थी।
क्या कहूँ कली के बारे मे ? सुना है की जब ये कहानी अखबार में छपा करती थी तो आखरी भाग आने के बाद हंगामा हो गया था की कली मर गयी। और क्यों न होता हंगामा? एक चुलबुली सी लड़की, जो ज़िन्दगी भर बड़ी ही हिम्मत के साथ हर मुश्किल का सामना करती है, आखिर में चुपचाप चली गयी। उसका हासिल कुछ भी नहीं।
सोचो तो अजीब लगता है। अगर हर इंसान हमेशा ये सोच कर मुश्किलों से लड़ता जाये की अंत में सब ठीक हो जायेगा और अचानक से उसकी ज़िन्दगी ख़त्म हो जाये तो?
कली के जीवन का आरम्भ ही विचित्र परिस्तिथियों में हुआ। अपने स्वयं के माता पिता को उसने कभी देखा नहीं , और उम्र के १७ वर्षो तक जिन्हें माता पिता समझती रही , वो उसे नहीं समझ पाए। ऊपर से चंचल और हठी दिखने वाली वो लड़की भीतर से कितनी सहमी हुई थी, ये हम पाठक भी तभी समझ पाए जब उसने प्रवीर को अपनी जीवन गाथा सुनाई। एक ऐसी लड़की जिसने अपने सौंदर्य और बुद्धिमत्ता से संसार को परास्त किया पर स्वयं अपने अतीत और अपनी जड़ों को नहीं हरा पाई।
प्रवीर और कली का रिश्ता कभी बन ही न पाया की बिगड़ता। कली का प्रवीर की तरफ खिचाव और प्रवीर का उस से कटे हुए रहना, ये सब जब तक सुलझ पता, बड़ी देर हो गयी थी। प्रवीर की सगाई हुई और उसके अगले ही दिन वो ये जान पाया की कली के कठोर बाहरी कवच के भीतर एक घबरायी हुई, सहमी हुई लड़की है। एक ऐसी लड़की जो सहारा भी चाहती है और उस से दूर भी भागती है, जो साथ भी चलना चाहती है और डरती भी है की कहीं साथ छूट न जाये। बाकि जो हुआ वो कहने और सुनने का कोई मतलब नहीं है।
बस कहानी का अंत यही है की कली चली गयी। और अब मुझसे लिखा नहीं जा रहा है। शायद हर कहानी का अंत ऐसा ही होता है। कोई कभी नहीं समझ पता किसी और को। और जब तक समझने की कोशिश करता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
मिलेंगे अगले वर्ष, जिसकी आहटें तेज होने लगी हैं, बढ़ गई हैं धड़कनें किसी के जाने से,किसी के आने से - करेंगे हम उत्सव इसी उत्साह से 2014 के मंच पर - जिसे कहते हैं परिकल्पना