जागते  रहो । (गीत)



अपनी  ही   परछाई   से,  बस  भागते  रहो ।

कभी  न  करना    इश्क,  सब  जागते  रहो ।



अंतरा-१.


अब  आप  से  ज्यादा,  किसकी   उठायें  कसम !


नसीब   में   न  तो   बोसा  है,  ना  गाली  सनम ।


सी   कर   होठ, लफ़्ज़   को  बस   निगलते रहो ।


कभी    न      करना    इश्क,   सब  जागते  रहो ।


(बोसा=चुंबन; लफ़्ज़ =शब्द) 



अंतरा-२.


अहले   -  वफ़ा    की    जुर्रत,  न    हो   ना  सही ।


नाकाम  अश्क   की   क़िमत, न    हो   ना  सही ।


दिल - ए - नादाँ   को  बस, यही  समझाते  रहो ।


कभी   न     करना    इश्क,    सब  जागते  रहो ।

(अहले वफ़ा =अडिग वफ़ा; जुर्रत=हिम्मत)


अंतरा-३.


न   रांझा,  न   रोमियो,  ना  मजनू   हैं   हम ।


न  हिर, न जूलियट, ना कोई  लैला  शबनम ।


चाहत - ए - ज़बान  को, बस  दफनाते  रहो ।


कभी  न  करना    इश्क,  सब  जागते  रहो ।


(चाहत-ए-ज़बान=प्यार के बोल)



अंतरा-४.


आदत     पुरानी    है,  कभी   छूटे  ना   छूटे ।


कब   से    हैं   तैयार,  कोई   लूटे   ना   लूटे ।


लचर  है  दर-ओ-दिवार , बस  ताकते  रहो ।


कभी  न  करना    इश्क,  सब  जागते  रहो ।


(लचर=कमज़ोर;  दर-ओ-दिवार=दरवाजा,दिवार)


मार्कण्ड दवे । दिनांक-०७-०८-२०१२.

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