इंतज़ार । (गीत)



आँखो  में   हरपल,  किसी   का    इंतज़ार   रहता   है ।

शायद,  कोई       चूपके    से,    हमें  प्यार  करता  है ।


अंतरा-१.


दिये   की  लौ  भी  देखो,  झपका   रही   है  पलकें ! 

शायद,  उसे   भी   रोशनी  का,   ख़ुमार  लगता  है !

आँखो  में  हरपल, किसी  का  इंतज़ार   रहता   है ।


अंतरा-२.


है   आसमाँ   तंग   मगर , मंसूबा   तेज़   है   शायद  ।

तभी  तो, मन  परिंदा, उड़ने को  तक़रार  करता   है ?

आँखो  में   हरपल   किसी   का   इंतज़ार   रहता   है ।

( तंग=छोटा ; मंसूबा= विचार ; तेज़=तीव्र) 


अंतरा-३.


जाना-पहचाना  सा  है,  शरारत  का  ये  अफसाना ।

फिर भी, फरेब  खाने  को  दिल  इकतार  मरता   है ।

आँखो   में  हरपल,  किसी  का   इंतज़ार   रहता   है ।


(इकतार= लगातार)


अंतरा-४.


बेवजह    हम     जीते   थे,  तौबा    करके   पीते   थे ।

शायद, अमल  का  आलम,  अब  बेशुमार  रहता  है ।

आँखो   में   हरपल,  किसी   का   इंतज़ार  रहता  है ।

शायद,  कोई     चूपके    से,    हमें  प्यार  करता  है ।


(अमल= बुरी आदत; आलम=स्थिति ; बेशुमार=बेहद )

मार्कण्ड दवे । दिनांक-१०-०८-२०१२.

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