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मुस्कुराओ   सनम । (गीत)




मुस्कुराओ   सनम  कि, दिल  को  मैं ने  बहुत  डाँटा  है ।

समझा   दिया   उसे   कि,  इश्क में   घाटा  ही  घाटा  है ।



अंतरा-१.



अब तक  जो  ग़म  तेरा  था, आज  से   वो  सब   मेरा   है । 

चुन-चुनकर  बड़ी  मुश्किल  से,  दोनों  ग़म  को  छाँटा  है ।

मुस्कुराओ   सनम   कि,  दिल  को   मैं ने  बहुत  डाँटा  है ।



अंतरा-२.


लोगों    की   उकसाई   को,  अनसुनी   सी  कर   दे   जानाँ ।

इस  ग़मज़दे  ने  ग़म  अपना,  कब   किसी   से   बाँटा   है..!

मुस्कुराओ   सनम   कि,  दिल  को  मैं ने   बहुत  डाँटा   है ।


(उकसाई=खिजाना;  अनसुनी = न  मानना; ग़मज़दा=शोकमग्न)



अंतरा-३.



सुना   हैं,  तेरे   वसीम  लब   पर,  खिलता  हैं   कोई  फूल ।

दीवाने   के    दामन   में    तो,   हिक़ारत   का   काँटा   है ।

मुस्कुराओ   सनम   कि, दिल  को  मैं ने  बहुत  डाँटा  है ।

(वसीम= ख़ूबसूरत;  लब=होठ; हिक़ारत= उपेक्षा )



अंतरा-४.


दफ़नाया  है   इश्क   यहाँ,   कई   बार   वहशी  दुनिया  ने ।

तभी   तो   कायनात   में   क़ब्रिस्तान   का    सन्नाटा   है ।

मुस्कुराओ   सनम   कि,  दिल को  मैं ने  बहुत  डाँटा   है ।

(कायनात=ब्रह्मांड; वहशी = ज़ालिम, हिंसक)

मार्कण्ड दवे । दिनांकः१५-०८-२०१२.

5 comments:

  1. दफ़नाया है इश्क यहाँ, कई बार वहशी दुनिया ने ।

    तभी तो कायनात में क़ब्रिस्तान का सन्नाटा है ।

    मुस्कुराओ सनम कि, दिल को मैं ने बहुत डाँटा है ।
    बहुत सुन्दर गीत लिखा है कुछ पंक्तियाँ जो दिल को छू गई

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही खूबसूरत
    गीत लिख डाला
    पर दिल बेचारे को
    काहे डाँठ डाला
    घाटे का सौदा अगर
    उसने कर डाला
    उसी दिल ने
    गीत एक दिल का
    भी तो लिख डाला !!

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  3. वाह...
    बहुत सुन्दर गीत...लयबद्ध और भावपूर्ण भी...

    अनु

    जवाब देंहटाएं

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