जब सारा आलम सो गया । (गीत ।)
जब सारा आलम सो गया, दर्द मेरा ये जाग रहा ।
इश्क - ए - गुनाह का हिसाब मुझ से ये माँग रहा ।
अंतरा-१.
रात अमा, घना अंधेरा, नज़र न आये कहीं सवेरा ।
उम्मीद का धागा, चाक़ जिगर कि जैसे तैसे ताग रहा ।
जब सारा आलम सो गया, दर्द मेरा ये जाग रहा ।
(अमा=अमावस; चाक़=शंका; तागना= मोटी-मोटी सिलाई करना ।)
अन्तरा-२.
नाकामी की करवट संगत, चीख रहे ये सन्नाटे ।
बरबादी के बिस्तर में वह, आग का दरिया दाग रहा ।
जब सारा आलम सो गया, दर्द मेरा ये जाग रहा ।
अंतरा-३.
कलमा भरूँ, सजदा करूं या रहूँ यूँ ही ग़मज़दा ।
चैन ओ अमन,सुकुन-ए-दिल, हिजाब से ये भाग रहा ।
जब सारा आलम सो गया, दर्द मेरा ये जाग रहा ।
(कलमा भरना-श्रद्धा रखना ।) (हिजाब=हया,शर्म ।)
अंतरा-४.
अय रात तुम ठहरना ज़रा, अय दिल तुम सँभलना ज़रा ।
मयक़दे में शायद अब तक, सुरूर-ए-इश्क है जाग रहा ।
जब सारा आलम सो गया, दर्द मेरा ये जाग रहा ।
(सुरूर -ए- इश्क =प्यार का नशा ।)
मार्कण्ड दवे । दिनांक-०५-०८-२०१२.
सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबधाई...
Thanks a lot shri SatishChandraji,
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ७/८/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है |
जवाब देंहटाएं@ sushri rajeshkumariji, Thanks a lot
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