दिल  की  तबाही । (गीत)

अब  मान  भी जाओ, इस  दिल  की  तबाही  कम   है   क्या..!

चले   भी  आओ   इन, टिसुओं  की  गवाही   कम   है   क्या..!

(तबाही=बरबादी; टिसुआ =आंसु; गवाही=साख )

अंतरा-१.

घातक    निगाहेँ    करती    मुश्किल,  प्यार   भरी   ये    राहें ।

मुर्दों   की   इस   बस्ती   में,   तुम्र   सिपाही   कम   है   क्या..!

अब  मान  भी  जाओ, इस  दिल  की  तबाही  कम  है  क्या..!

(घातक= क़ातिल;  तुम्र=ज़ालिम; सिपाही=पहरेदार )

अंतरा-२.

सुराख़दार   सुराही     सांसे,   फूटे     आस    के    जाम ।

उपर से  साक़ी  से   ऐसी, कम - निगाही  कम  है  क्या..!

अब मान भी जाओ, इस दिल की तबाही  कम  है  क्या..!

(सुराख़दार=छिद्रवाली; आस= उम्मीद; साक़ी=प्रियतमा; कम-निगाही=उपेक्षा)

अंतरा-३.

न  मिलन  के  आसार, न  ख़त - ख़बर, अब  ये  तो  बता..!

इन  आंखोँ   में  तेरी, काजल   की   सियाही  कम  है  क्या..!

अब  मान  भी  जाओ, इस  दिल की  तबाही  कम  है  क्या..!

(आसार=संकेत; सियाही= स्याही)

अंतरा-४.

 फिर  वही   आवाज़े   सुन   या, राग   भरे   ये  साग़र  चुन..!

कर     इबादत   उसकी, रहमत -ए-  इलाही कम  है  क्या..!

अब  मान  भी  जाओ, इस  दिल की तबाही  कम  है  क्या..!

चले  भी आओ  इन, टिसुओं  की  गवाही   कम   है   क्या..!

(आवाज़ा= आक्षेप; राग=प्यार; साग़र=पैमाना; रहमत-ए-इलाही = ईश्वरकृपा)

मार्कण्ड दवे । दिनांक-१२-०८-२०१२.

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