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चिथड़ेहाल आसरा - बुढ़ापा । (गीत)
कब से, ढूँढ रहा है आसरा, फ़टा-पुराना मन ।
चिथड़ेहाल हुआ जब से, ये नया-नवेला तन ।
(आसरा= छत्रछाया; नया-नवेला= अभूतपूर्व )
अंतरा-१.
गिन कर पाँव के छालों को, बता सकते हैं सभी..!
हुई होगी ईहा कितनी कि, न तन मेरा ना मन..!
कब से, ढूँढ रहा है आसरा, फ़टा-पुराना मन ।
(ईहा= जद्दोजहद, संघर्ष )
अंतरा-२.
जब कभी सोचता हूँ, क्या पाया, क्या खोया मैंने ?
यारों से झूठ कहूँ कैसे, न बदन रहा ना धन ।
कब से, ढूँढ रहा है आसरा, फ़टा-पुराना मन ।
अंतरा-३.
लगने लगा है अच्छा, अलम के अंचल में छिपना ।
जी भर के भिगो ले अंचल, न शूल है ना चुभन ।
कब से, ढूँढ रहा है आसरा, फ़टा-पुराना मन ।
(अलम= पछतावा; अंचल =दामन,पल्लू)
अंतरा-४.
फिर रहा है मारा - मारा और कह रहा ये मन ।
न चाल, न चलन, दे करीम एक नया-नवेला तन ।
कब से, ढूँढ रहा है आसरा, फ़टा-पुराना मन ।
(चाल-चलन= आचार-व्यवहार; करीम= परवरदिगार)
मार्कण्ड दवे । दिनांकः२९-०८-२०१२.
MARKAND DAVE
http://mktvfilms.blogspot.com (Hindi Articles)
यथार्थ को कहती अच्छी रचना
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