कितनी बातें जो तेरे शहर की थीं 
हाँ मेरे गाँव से थोड़ा अलग  … 
उनको जोड़कर 
तोड़कर 
कहना तो था अभी और  
लेकिन फिर कभी !
अभी तो यही कहना है इस मंच से -
एक सपने सा ही लगता है निकल पाऊँगी 
इस जंगल में शब्दों के घने साये हैँ  

            रश्मि प्रभा 


"मै एक छोटी सी लड़की हूँ" - (save the girl child !)

मै एक छोटी सी लड़की हूँ 
सुबह की पहली किरण सी उजली हूँ 
छा जाउंगी नभ पर,यही ख्वाब बुनती मै पली हूँ 
मै एक छोटी सी लड़की हूँ 

यूं तो अकेले ही अपनी मंजिल की और बढ़ी हूँ 
पर कुछ सपने और जोड़ लिए हैं खुद से 
और सबको साथ लेके चल पड़ी हूँ 
मै एक छोटी सी लड़की हूँ 

निश्चय बहुत ही द्रिड़ है मेरा, तूफानों में ढली हूँ 
पसंद है मुझे लड़ना और जीत जाना, 
पर दिल की बहुत भली हूँ 
जानती हूँ मुझ जितने भले नहीं लोग, 
जरा सी इसी बात से डरी हूँ 
मैं एक छोटी सी लड़की हूँ 

नाजुक हूँ स्वर्ण सी, आग में तप कर ही निखरी हूँ 
जीत लूंगी सारा गगन इसी संकल्प के साथ मैदान में उतरी हूँ 
मैं एक छोटी सी लड़की हूँ 

आँखों में सपने जरुर है, पर हकीक़त के धरातल पे मै चली हूँ 
अटल है मेरे इरादे बलबूते जिनके मै इस राह निकली हूँ
मैं एक छोटी सी लड़की हूँ 

भर दूंगी जीवन हवाओं मे, प्रेम की स्वरलहरी हूँ 
सरल हूँ प्रकृति मे जितनी, मन की बहुत गहरी हूँ
मंजिल बहुत दूर है अभी, मैं कब कही ठहरी हूँ
मै एक छोटी सी लड़की हूँ

परिचित हूँ अपनी शक्ति से, हौसलों से भरी हूँ
न केवल अपने लिए बल्कि सबके हक के लिए खड़ी हूँ
मै एक छोटी सी लड़की हूँ

उम्मीदे लगी है, मुझसे मेरे अपनों की, 
उत्साह पाकर जिनसे मै डटी हूँ
अब हटूंगी नहीं पीछे, 
दिखा दूंगी, मैं बड़ी हठी हूँ 
मै एक छोटी सी लड़की हूँ

पर्वत सा विशाल पापा का विश्वास है, 
मै उनके सपनो की रौशनी हूँ 
कितनी काबिल हूँ दिखला दूंगी, 
माँ के चमन में जो खिली हूँ
मै एक छोटी सी लड़की हूँ

हाँ, मै एक छोटी सी लड़की हूँ, 
पर डैने फैलाये अपने, उडान को तैयार खड़ी हूँ 
समेट लूँगी आसमान मुट्ठी में, 
हाँ मैं आसमान से बड़ी हूँ
मै एक छोटी सी लड़की हूँ


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रश्मि स्वरुप 


सन्नाटे की आवाज़ !!

मै बहुत दिन से ये जानने का प्रयास कर रहा था की क्या सन्नाटे की भी कोई आवाज़ होती है, शायद नहीं, या शायद नहीं होती थी. पर अब वक़्त बदल चुका है! वो गलियां जो हमेशा सन्नाटे में होती थी, पिछले कुछ दिनों में इतने अत्याचार देखें हैं की उनका भी मन द्रवित हो चुका है और वो भी कुछ कहने पर मजबूर हो गयी है. प्रमुखतः ये अत्याचार महिलाओं के ऊपर हुए हैं:

कल गुजर रहा था उसी रस्ते पर मैं,
रात की काली छाया भी पूरे शबाब पे थी,
कुछ झींगुरों की आवाज़ कानों में पड़ रही थी मेरे,
ऐसा लगा इस सन्नाटे की एक आवाज़ भी थी.

कुछ कहना था उसको मुझसे,
शायद, कुछ बात करनी थी,
पर मै थोडा हत्भ्रमित था,
क्या सन्नाटे की भी आवाज़ होती है.

खैर जो भी है, एक कवि के नाते मैंने सुनना स्वीकार किया,
उन अन-सुनी अन-कही बातों पर चिंतन करने का विचार किया,
जो कहा उन्होंने उस पल में, झिंझोड़ दिया मेरे मन को,
अब उनकी ही बातों को मैंने, एक कविता का सारांश दिया: - - -

"जिनकी उजली शक्लें दिन में खूब चमकती हैं,
रातों के सन्नाटे में काली करतूतें करती हैं,
दिन में जितने भाषण दे लें, एक सुन्दर भविष्य बनाने का,
रात के अँधेरे में उस भविष्य का ही शोषण करती हैं.

जिन रस्तों पर दिन का सूरज खूब उजाला देता है,
उन रस्तों पर रातों में एक घना अँधेरा होता है,
जिनके हँसते चेहरों पर हम दिन में वारे न्यारे जाते हैं
रातों में उनकी दारुण चीखों से ये रस्ते भर जाते है.

इन चीखों से तो ये सन्नाटे भी अब घबराते हैं,
तुम लोगो को शायद कुछ ना हो पर सन्नाटे भी अब चिल्लाते हैं."

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राहुल पाण्डेय 





समय है एक विराम का, मिलती हूँ एक छोटे से विराम के बाद....... 

2 comments:

  1. समापन की जगह विराम होता तो ज्यादा अच्छा लगता उतस्व समाप्त कहाँ होते हैं :)
    अगले उत्सव तक बस ठहर जाते हैं । बहुत सुंदर अभिव्यक्तियाँ ।

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  2. पर्वत सा विशाल पापा का विश्वास है,
    मै उनके सपनो की रौशनी हूँ
    कितनी काबिल हूँ दिखला दूंगी,
    माँ के चमन में जो खिली हूँ
    मै एक छोटी सी लड़की हूँ
    बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं

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