एक संदेश कविता के माध्यम से देश के भाग्य विधाताओं के लिए -- हमें- स्वच्छ , प्रदूषण रहित शहर-कस्वा-गाँव चाहिए । जहाँ शेर-बकरी साथ बैठे वह पड़ा...
जुगनुओं रोशनी में नहाना फ़िज़ूल
मेरी दो गज़लें आज की युवा पीढी के लिए - (एक ) अपनी दीवानगी को गंवाना फ़िज़ूल , जुगनुओं रोशनी में नहाना फिजूल । किस्त में खुदकुशी इश्क का है ...
लौटेगी संवेदनाएँ उनकी भी .... ।
आज भी - रोटी और कविता की कृत्रिम रिक्तता में खडे कुछ अतृप्त - अनुभवहीन मानव करते हैं बात जन - आंदोलन की कभी प्रगतिवाद , कभी जनवाद , कभी समाज...
एक कविता उन प्रवासियों के लिए , जो --
एक कविता उन प्रवासियों के लिए , जो अपनी धरती , अपना गांव छोड़कर महज दो आने ज्यादा कमाने की जुगत में खाक छानते हैं सुदूर प्रदेश की , या फिर ग...
बन रही तल्खियाँ , बेटियाँ !
आज दौतर्स डे है यानी विटिया दिवस । यह एक औपचारिकता मात्र है , जिसे निभा दीं जाती है हर वर्ष जैसे - तैसे । हमारा संविधान हमे धर्म , जति , ल...
कैसे - कैसे लोग बसे हैं महानगर में यार ?
ग़ज़ल शीशमहल हैं शीशे के औ ' पत्थर के हैं द्वार , कैसे - कैसे लोग बसे हैं महानगर में यार ? राधा द्वारे राह निहारे, फिर भी मोहन प्यारे- च...
आज अपने आप में क्या हो गया है आदमी ......!
आज अपने आप में क्या हो गया है आदमी , जागने का वक़्त है तो सो गया है आदमी । भूख की दहलीज़ पर जगता रहा जो रात- दिन , चंद रोटी खोजने में खो गया ...
उसीप्रकार जैसे-ख़त्म हो गयी समाज से सादगीआदमी भी ख़त्म हो गयाऔर आदमीअत भी.....!
बहुत पहले- लिखे जाते थे मौसमो के गीत जब रची जाती थी प्रणय कीकथाऔर - कविगण करते थे देश-काल की घटनाओं पर चर्चा तब कविताओं मेंढका होता था ...
अस्पताल, चिकित्सक और दर्द .....
जब - बीमार अस्पताल की बीमार खाट पर पडी - पडी मेरी बूढ़ी बीमार माँ खांस रही थी बेतहाशा तब महसूस रहा था मैं कि, कैसे - मौत से जूझती है एक आम औ...
एक ग़ज़ल हिंदी को समर्पित
हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर विशेष - दो- तिहाई विश्व की ललकार है हिंदी मेरी - माँ की लोरी व पिता का प्यार है हिंदी मेरी । बाँधने को बा...
चुप हुये तो हो गए बदनाम क्यों ?
मच रहा है मुल्क में कोहराम क्यों , राजपथ पर बुत बने हैं राम क्यों ? रोज आती है खबर अखवार में , लूट, हत्या , खौफ , कत्लेयाम क्यों ? रामसेतु ह...
कहता है जोकर..... ।
'' कहता है जोकर सारा जमाना , आधी हकीकत आधा फ़साना ..... । '' एक अरसा बीत गया शोमैन राजकपूर साहब का इंतकाल हुये , किन्तु '...
हर शाख पे उल्लू बैठा है, अन्जामे - गुलिश्ता क्या होगा ?
'' हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था , शौक़ से डूबें जिसे भी डूबना है '' दुष्यंत ने आपातकाल के दौरान ये पंक्तियाँ कही थी , तब श...
मौन है क्यों कुछ तो बता लखनऊ शहर ?
चाहे लखनऊ हो , दिल्ली हो या फिर मुम्बई । सुनने में रोमांच पैदा करता है महानगर , लेकिन जो महानगर में निवास करते हैं उनसे पूछिए महानगर की त्र...
तुझमे है तासीर मोहब्बत की भीतर तक-शायर ग़ालिब- मीर तुम्हारी आँखों मे है.
पिछले दिनों ठहाका में एक व्यंग्य प्रकाशित हुआ सांवली । मैंने अपनी प्रतिक्रिया में लिखा था कि - भाई बसंत, किसी ने ठीक ही कहा है, कि - ज़िस्म...