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हमें स्वच्छ प्रदूषणरहित शहर-कस्वा-गाँव चाहिए ....!हमें स्वच्छ प्रदूषणरहित शहर-कस्वा-गाँव चाहिए ....!

एक संदेश कविता के माध्यम से देश के भाग्य विधाताओं के लिए --हमें-स्वच्छ , प्रदूषण रहित शहर-कस्वा-गाँव चाहिए । जहाँ शेर-बकरी साथ बैठे वह पड़ाव चाहिए ।। हमें नहीं चाहिए कोई भी सेतु इस उफनती सी नदी कोपार करने हेतु हाकिम और ठेकेदारपैसे हज़म कर जाएँ और उद्घाटन के पहले टूटकर बिखर जाएँ हमें पार करने के लिए ब…

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30Sep2007

जुगनुओं रोशनी में नहाना फ़िज़ूलजुगनुओं रोशनी में नहाना फ़िज़ूल

मेरी दो गज़लें आज की युवा पीढी के लिए -(एक )अपनी दीवानगी को गंवाना फ़िज़ूल ,जुगनुओं रोशनी में नहाना फिजूल । किस्त में खुदकुशी इश्क का है चलन ,इश्क दरिया है पर डूब जाना फ़िज़ूल । चांदनी रात में चांद के सामने यूँ -आपका इसकदर रूठ जाना फ़िज़ूल । शर्त है प्यार में प्यार की बात हो ,प्यार को बेवजह आजमाना फ…

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28Sep2007

लौटेगी संवेदनाएँ उनकी भी .... ।लौटेगी संवेदनाएँ उनकी भी .... ।

आज भी -रोटी और कविता की कृत्रिम रिक्तता में खडे कुछ अतृप्त - अनुभवहीन मानव करते हैं बात जन - आंदोलन की कभी प्रगतिवाद , कभी जनवाद , कभी समाजवाद तो कभी संस्कृतिवाद से जोड़कर ....!जिनके पास -न सभ्यता-असभ्यता का बोध है और न स्वाभिमान का कोमल एहसास जिनके इर्द-गिर्द व्याप्त है क्रूर अथवा अनैतिक मानवीय संब…

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26Sep2007

एक कविता उन प्रवासियों के लिए , जो --एक कविता उन प्रवासियों के लिए , जो --

एक कविता उन प्रवासियों के लिए , जो अपनी धरती , अपना गांव छोड़कर महज दो आने ज्यादा कमाने की जुगत में खाक छानते हैं सुदूर प्रदेश की , या फिर ग्लैमर की दुनिया में इस क़दर खो जाते हैं कि सुध हीं नहीं रहती अपने -पराये की । जीवन और जीविका के बीच तारतम्य बैठाते- बैठाते गुजर जाते हैं जीवन के ओ सुनहरे पल , जि…

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25Sep2007

बन रही तल्खियाँ , बेटियाँ  !बन रही तल्खियाँ , बेटियाँ !

आज दौतर्स डे है यानी विटिया दिवस । यह एक औपचारिकता मात्र है , जिसे निभा दीं जाती है हर वर्ष जैसे - तैसे । हमारा संविधान हमे धर्म , जति , लिंग में विभेद हीनता की आजादी देता है , मगर क्या हमारे समाज ने इसे पूर्णरूपेण अंगीकार किया है ? यदि आपसे पूछा जाये तो आप यही कहेंगे कदापि नही । यह अलग बात है कि आज…

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23Sep2007

कैसे - कैसे लोग बसे हैं महानगर में यार ?कैसे - कैसे लोग बसे हैं महानगर में यार ?

ग़ज़लशीशमहल हैं शीशे के औ ' पत्थर के हैं द्वार ,कैसे - कैसे लोग बसे हैं महानगर में यार ?राधा द्वारे राह निहारे, फिर भी मोहन प्यारे-चकला - चकला घूम रहे , खोज रहे हैं प्यार ।हाट -हाट नीलाम चढ़ी प्रेमचंद की धनिया-और उधर ' होरी ' करता है लमही में चित्कार ।दूध युरिया, घी में चर्वी, सुर्खी वाली मिर्ची -गल…

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20Sep2007

आज अपने आप में क्या हो गया है आदमी ......!आज अपने आप में क्या हो गया है आदमी ......!

आज अपने आप में क्या हो गया है आदमी ,जागने का वक़्त है तो सो गया है आदमी । भूख की दहलीज़ पर जगता रहा जो रात- दिन ,चंद रोटी खोजने में खो गया है आदमी । यह हमारा मुल्क है या स्वार्थ का बाज़ार है , सेठियों के हाथ गिरवी हो गया है आदमी । पेट की थी आग या कि बोझ बस्तों का उसे ,छोड़ करके पाठशाला जो गया है आदमी …

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18Sep2007

उसीप्रकार जैसे-ख़त्म हो गयी समाज से सादगीआदमी भी ख़त्म हो गयाऔर आदमीअत भी.....!उसीप्रकार जैसे-ख़त्म हो गयी समाज से सादगीआदमी भी ख़त्म हो गयाऔर आदमीअत भी.....!

बहुत पहले- लिखे जाते थे मौसमो के गीत जब रची जाती थी प्रणय कीकथाऔर - कविगण करते थे देश-काल की घटनाओं पर चर्चा तब कविताओं मेंढका होता था युवतियों का ज़िस्म....! सुंदर दिखती थी लड़कियाँ करते थे लोग सच्चे मन से प्रेम और जानते थे प्रेम की परिभाषा....! बहुत पहले- सामाजिक सरांध फैलाने वाले ख़ाटमलों की नह…

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17Sep2007

अस्पताल, चिकित्सक और दर्द .....अस्पताल, चिकित्सक और दर्द .....

जब -बीमार अस्पताल की बीमार खाट पर पडी - पडी मेरी बूढ़ी बीमार माँखांस रही थी बेतहाशा तब महसूस रहा था मैं कि, कैसे -मौत से जूझती है एक आम औरत । कल की हीं तो बात है जब लिपटते हुये माँ से मैंने कहा था , कि -माँ, घवराओ नही ठीक हो जाएगा सब ..... । सुनकर चौंक गयी माँ एकवारगी बहने लगे लोर बेतरतीब सन् हो गया…

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14Sep2007

एक ग़ज़ल हिंदी को समर्पितएक ग़ज़ल हिंदी को समर्पित

हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर विशेष - दो- तिहाई विश्व की ललकार है हिंदी मेरी -माँ की लोरी व पिता का प्यार है हिंदी मेरी । बाँधने को बाँध लेते लोग दरिया अन्य से -पर भंवर का वेग वो विस्तार है हिंदी मेरी । सुर -तुलसी और मीरा के सगुन में रची हुई - कविरा और बिहारी की फुंकार है हिंदी मेरी । फ्रेंच , इ…

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13Sep2007

चुप हुये तो हो गए बदनाम क्यों ?चुप हुये तो हो गए बदनाम क्यों ?

मच रहा है मुल्क में कोहराम क्यों ,राजपथ पर बुत बने हैं राम क्यों ?रोज आती है खबर अखवार में ,लूट, हत्या , खौफ , कत्लेयाम क्यों ?रामसेतु है जुडा जब आस्था से , माँगते फिर भी अरे प्रमाण क्यों ?सभ्यता की भीत को तुम धाहकर ,कर रहे पर्यावरण नीलाम क्यों ? जिनके मत्थे मुल्क के अम्नों - अम्मां,दे रहे विस्फोट क…

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13Sep2007

कहता है जोकर..... ।कहता है जोकर..... ।

'' कहता है जोकर सारा जमाना , आधी हकीकत आधा फ़साना ..... । '' एक अरसा बीत गया शोमैन राजकपूर साहब का इंतकाल हुये , किन्तु ''मेरा नाम जोकर '' में फिल्माया गया यह अमर वाक्य तब भी उतना ही प्रासंगिक था , जितना आज है । उन्होने कहा था कि -'' दुनिया एक रंगमंच है और हम उसके किरदार।'' आप रोये, गएँ, मुस्कुराएँ य…

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11Sep2007

हर शाख पे उल्लू बैठा है, अन्जामे - गुलिश्ता क्या होगा ?हर शाख पे उल्लू बैठा है, अन्जामे - गुलिश्ता क्या होगा ?

'' हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था , शौक़ से डूबें जिसे भी डूबना है '' दुष्यंत ने आपातकाल के दौरान ये पंक्तियाँ कही थी , तब शायद उन्हें भी यह एहसास नहीं रहा होगा कि आनेवाले समय में बिना किसी दबाब के लोग स्वर्ग या फिर नरक लोक की यात्रा करेंगे । वैसे जब काफी संख्या में लोग मरेंगे , तो नरक हौसफूल होना ला…

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08Sep2007

मौन है क्यों कुछ तो बता लखनऊ शहर ?मौन है क्यों कुछ तो बता लखनऊ शहर ?

चाहे लखनऊ हो , दिल्ली हो या फिर मुम्बई । सुनने में रोमांच पैदा करता है महानगर , लेकिन जो महानगर में निवास करते हैं उनसे पूछिए महानगर की त्रासदी का रहस्य । भागदौड़ एवं आपाधापी भरा जीवन, प्रदुषण का दुष्परिणाम झेलता जीवन , बडे ढोल में बड़ी पोल खोलता जीवन , भीड़ की चक्रव्यूह में उलझा हुआ जीवन । जीवन जैसे…

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07Sep2007

तुझमे है तासीर मोहब्बत की भीतर तक-शायर ग़ालिब- मीर तुम्हारी आँखों मे है.तुझमे है तासीर मोहब्बत की भीतर तक-शायर ग़ालिब- मीर तुम्हारी आँखों मे है.

पिछले दिनों ठहाका में एक व्यंग्य प्रकाशित हुआ सांवली । मैंने अपनी प्रतिक्रिया में लिखा था कि - भाई बसंत, किसी ने ठीक ही कहा है, कि - ज़िस्म की सुंदरता उस मृगमारिचिका की तरह है, जो छल, कपट और भ्रम का भान कराती हैज़वकि मन की सुंदरता वह पवित्र गंगाजल है जो अमृत का रसपान कराती है. मैं यदि बासु की जगह हो…

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03Sep2007
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