स्वतन्त्रता दिवस पर आयोजित विशेष परिचर्चा का आज नौवां दिन है, आईये आज के दिन की शुरुआत करते हैं हिंदी के बहुचर्चित कवि श्री दिविक रमेश जी से , कि क्या है उनके लिए आज़ादी के मायने ?
क्या यह विडम्बना नहीं हॆ कि हमें अपने आज़ाद देश में आज़ादी के मायने पर परिचर्चा करनी पड़ रही हॆ । आज़ादी के नाम पर जब अराजकता, मनमानी, धींगामस्ती, बल, धन ऒर रसूकों की लहरती पताकाएं, संसद तक में हो रही जूतमजूत, मॊकापरस्ती, लूटमलूट आदि का हर ओर सिरचढ़ कर बोलबाला दिख रहा हो तो आज़ादी के खोए या धुंधले पड़ गए मायने फिर से खोजने ही होंगे । मेरी एक व्यंग्य कविता हॆ, बहुत पहले की, ’आज़ाद हॆं हम’, उसी की कुछ पंक्तियां हॆ:
खुले साँड से
आज़ाद हॆं हम
ऒर वे भी
कितना खुश्गवार हॆ मॊसम ।
चोर-सिपाही
डाकू-राही
नेता-जनता
रक्षक-हन्ता
सभी हुए आज़ाद
सभी हॆं भाई-भाई
एक घाट पऎ पाणी पीवॆं
लोग-लुगाई

बोल सियावर रामचनदर की जय ।

तो मुश्किल यह हॆ कि जनको आज़ादी के सबसे ज्यादा मायने पता हॆ वही उसकी ऎसी-तॆसी सबसे ज़ादा कर रहा हॆ, चाहे वह भ्रष्ट ऒर स्वार्थी नेता हो, चाहे भ्रष्ट ऒर मुनाफ़ाखोर मीडिया हो या फिर चालाक ऒर स्वार्थी जन हो । आज़ादी का यह अर्थ कतई नहीं हॆ कि छूट गाली-लॊज या बन्दूक से भूनने का हो । यानी तेरा मॊका लगे तू भून दे, मेरा मॊका लगेगा तो में भून दूंगा । हो गए दोनों बराबर । मिल गई दोनों को आज़ादी । क्या यही हॆ आज़ादी मायने ? यह जंगलीपन हॆ । किसी भी तर्क से इसे सही नहीं कहा जा सकता । मॆं हिंसा-अहिंसा की बात नहीं कर रहा । मॆं प्रतिक्रिया ऒर उत्तर की बात क रहा हूं । अंग्रेजी का सहारा लूं तो आज़ादी के संदर्भ में हमें रिएक्सन (Reaction) ऒर रिशपोन्स (response) का अन्तर समझना होगा । ऒर क्या कहूं ? आज़ादी सब को पसन्द हॆ । लेकिन वोट न डालने की आज़ादी नहीं होनी चाहिए । गलत शिकायत करनेवाले\वाली के लिए पहले ही से कोई सजा़ निर्धारित न हो, यह आज़ादी भी नहीं होनी चाहिए । चुने हुए को भ्रष्ट रास्ता अपनाने या दल बदल लेने पर भी जनता वापिस न बुला सके ऎसी आज़ादी भी नहीं होनी चाहिए । बस ।
दिविक रमेश
(वर्ष के श्रेष्ठ कवि )

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जारी है परिचर्चा, मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद......

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