मेरे लिए आजादी के मायने है -----------सोच की स्वतंत्रता................जब तक हम अपनी सोच का दायरा नही बढायेंगे -----आजादी का अर्थ समझ नही पायेंगे----------------हम सब अपने आपको एक बन्धन मे बांधे रखते है----------------और स्वतंत्र होने का भ्रम पाले रखते हैं---------नियमों मे बंधकर चलना और नियमों को तोडना --एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, मनुष्यगत स्वभाव है -------डरते हैं हम अपने आप से ..............अपने को सुरक्षित रखने के लिए हम ये नहीं देखते कि किसी और पर इसका क्या असर होता है ..................हर इन्सान जिस तरह के वातावरण में पला बढा होता है सिर्फ़ उतना ही सोचता है ................हमें चाहिए सच्चाई के साथ हर एक गलती को स्वीकारें हममे से उस कमी को हटाएं-----------------अपने आपको किसी धर्म,जाति,लिंग, के अन्दर न रखकर सबको समभाव से देंखे-----------------------जैसा अपने लिए सोचते हैं --सबके लिए सोंचें........................
आपसी रिश्तों को समझें और सबको सम्मान दें..................इंसान को जन्म से ये पता नही होता है कि उसने किसके यहाँ जन्म लिया है? कौन उसका पिता है या कौन उसकी माँ?.......वो लडका है या लडकी ?......किस धर्म या जाति का है ?.......ये तो हम उसे बताते है ..और वो वही सच मान लेता है जो उसे बार-बार बताया जाता है ..........अब ये जिम्मेदारी हमारी होती है .........जिसके यहाँ उस बच्चे का जन्म हुआ है .........वह चाहे तो उसे लडकी माने या लडका............किसी एक धर्म या मज़हब की वर्षों पुरानी मान्यताओ कि सीमाओं मे अपने साथ उसे भी बांधकर रखे ...............या फ़िर --------अपनी सोच को विस्तार देकर ......वही बताए जिसे किया जाना जरूरी हो .........
जैसे --हम उसे सीखाते है--
" सदा सच बोलो "पर सिर्फ़ इतना भर कह देने से कुछ नहीं होगा.अपनी सोच को स्वत्तंत्र विस्तार देकर उसे बताना होगा-------
१-सच बोलने से किसी से भी डर नहीं लगता ।
आपसी रिश्तों को समझें और सबको सम्मान दें..................इंसान को जन्म से ये पता नही होता है कि उसने किसके यहाँ जन्म लिया है? कौन उसका पिता है या कौन उसकी माँ?.......वो लडका है या लडकी ?......किस धर्म या जाति का है ?.......ये तो हम उसे बताते है ..और वो वही सच मान लेता है जो उसे बार-बार बताया जाता है ..........अब ये जिम्मेदारी हमारी होती है .........जिसके यहाँ उस बच्चे का जन्म हुआ है .........वह चाहे तो उसे लडकी माने या लडका............किसी एक धर्म या मज़हब की वर्षों पुरानी मान्यताओ कि सीमाओं मे अपने साथ उसे भी बांधकर रखे ...............या फ़िर --------अपनी सोच को विस्तार देकर ......वही बताए जिसे किया जाना जरूरी हो .........
जैसे --हम उसे सीखाते है--
" सदा सच बोलो "पर सिर्फ़ इतना भर कह देने से कुछ नहीं होगा.अपनी सोच को स्वत्तंत्र विस्तार देकर उसे बताना होगा-------
१-सच बोलने से किसी से भी डर नहीं लगता ।
२-कोई भी बात एक ही बार बोलनी पडती है }
३-हम किसी के साथ धोखा या गलत कर रहे हैं ,इस हीन भावना से छुटकारा मिल जाता है।
४-हमारे प्रति अपनों का विश्वास बढता है।
५-सत्य की सदा विजय होती है ।
" विश्वास्पात्र बनों "पर सिर्फ़ इतना भर कह देने से कुछ नहीं होगा.अपनी सोच को स्वतंत्र विस्तार देकर उसे बताना होगा-------
1-विश्वास या भरोसा क्या है ?
२-जो एक बच्चे को अपनी माँ पर है ।
३-विश्वास ही अपनत्व की जननी है ।
३-विश्वास ही है जो हमें एक दूसरे से जोडता है।
४-जीवन में विश्वास या भरोसा ही है जिस पर दुनिया टिकी है ।
५-एक बार विश्वास टूट जाता है तो बहुत मुश्किल होती है दुबारा विश्वास पाने में।
समय के साथ चलो पर सिर्फ़ इतना भर कह देने से कुछ नहीं होगा.अपनी सोच को स्वतंत्र विस्तार देकर उसे बताना होगा-------
१-समय लगातार चलते रहता है ।
२-हमारी एक गलती भी हो जाए ,तो हम समय से पीछे हो जाते हैं ।
३-अत: जरूरी है कि हर कार्य के लिए समय सीमा तय करें।
४-नियत समय पर कार्य पूर्ण करने की आदत डालें।
५-समयानुसार चलने से शायद हम समय के साथ चल पायेंगे।
जिम्मेदारी----१-जितने लोगों को हम अपना समझते हैं ,उनके प्रति कर्तव्यों का निर्वाहन जिम्मेदारी है ....
२-सिर्फ़ परिवार तक ही सीमित न रहें ,रिश्तेदारों,दोस्तों,पडोसियों,व समाज को भी धीरे-धीरे "अपनों" में शामिल करें ।
ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगे सोच को स्वतंत्र विस्तार देने के लिए
---------अगर हम लडके-लडकी में फ़र्क न रखने की बात करते है------ तो हमें ये भी भूलना होगा कि लडकी अकेले बाहर जाकर अपनी सुरक्षा नही कर सकती,अपने पति से ज्यादा कमाई करने से पति का अपमान हो जायेगा,उसे घरेलू कामकाज सीखने ही होंगे.....
.........अगर धर्म की बात करते है तो.....तो ये भी कि सभी ग्रंथों मे लिखी हर बात से आपका सहमत होना जरूरी है ........
........अगर अमीरी-गरीबी की बात करते है तो ये भी की कोई आदमी आपका नौकर/मातहत है .....
बस यही है -------मेरी नजर में आजादी के मायने------आप जैसा खुद के लिए चाहते हैं वैसे सब रहें आजाद ............अपनी मर्जी से .........
श्रीमती अर्चना चाव
http://archanachaoji.blogspot.com/
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जारी है परिचर्चा मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद ......
bahut hi sahi nazariyaa....
जवाब देंहटाएंअच्छे लगे विचार.
जवाब देंहटाएंपोस्ट में लिखी सभी बातें बहुत ही उपयोगी हैं!
जवाब देंहटाएं--
जरूरत बस इन पर अमल करने की है!
इस सीख देती पोस्ट के लिए अर्चना जी का बहुत-बहुत आभार... और रूप चन्द्र शास्त्री जी की बात से पूर्णतया सहमत
जवाब देंहटाएंबढ़िया विचार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसार्थक
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