स्वतन्त्रता दिवस पर आयोजित विशेष परिचर्चा के १० वें दिन की शुरुआत में श्री सलीम खान के विचारों से रूबरू हुए , इसी कड़ी में आईये हिंदी के चर्चित गीतकार/चिट्ठाकार श्री ललित शर्मा जी से पूछते हैं -क्या है उनके लिए आज़ादी के मायने ?
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अंग्रेजों से सत्ता लिए हमको 63 वर्ष पूर्ण हो गए, हम आजादी की 64 वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। जिन उद्देश्यों को लेकर आजादी की लड़ाई हमारे पूर्वजों ने लड़ी थी। अपना खून बहाया था। माताओं ने अपने जवान बेटों का बलिदान दिया था। स्त्रियों ने अपने सुहाग एवं बच्चों ने अपने सरपरस्तों को खोया था। क्या वह उद्देश्य पूरे हो रहे हैं? गरीबों ने अपने राज में जिस सुख की रोटी के सपने देखे थे क्या वह उन्हे मिल रही है? समाज में समानता के सपने देखे गए थे, क्या वे पूरे हो रहे हैं?क्या हमारे राजनेता गरीबों की सच्ची रहनुमाई कर रहे हैं? क्या हमारे बच्चों को समान शिक्षा मिल पा रही है? क्या सभी को रोजगार के साधन उपलब्ध हो पा रहे हैं? क्या हम शांति से सुख के साथ जीवन बसर कर पा रहे हैं? क्या भूख से मौतें होना बंद हो गयी है?
आज जब इन सवालों के जवाब ढूंढते हैं तो हमें एक ही जवाब मिलता है "नहीं"। तो हम और हमारा लोकतंत्र, हमारे नेता इन 63 वर्षों में क्या कर रहे थे? यह एक यक्ष प्रश्न सा हमारे सामने खड़ा हो जाता है। जिसका जवाब देने को कोई भी तैयार नहीं है। देश में अमीरों के साथ गरीबों की संख्या भी बढती जा रही है। गरीब और गरीब होता जा रहा है धनी और भी धनी होता जा रहा है। देश में जो भी नीतियाँ या योजनाएं गरीबों को लाभ पहुंचाने की दृष्टि से बनाई जाती हैं, उन्हे अमीर लोग या उनके दलाल हाईजैक कर लेते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्व: राजीव गांधी ने इसे सार्वजनिक रुप से स्वीकार किया था कि योजनाओं के बजट का सिर्फ़ 15% ही आम लोगों तक पहुंचता है। बाकी का 85% सिस्टम की भेंट चढ जाता है। यह सिस्टम नहीं हुआ सुरसा का मुंह हो गया। जो कि दिनों दिन बढते ही जा रहा है।
63 वर्षों में एक भी दिन ऐसा नहीं आया,जिस दिन सरकार ने कहा हो किमंहगाई कम हो गई है। मध्यम वर्ग में भी अब दो वर्ग बन गए हैं, निम्न मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग। सबसे ज्यादा निम्न मध्यम वर्ग पिस रहा है। जो कि न घर का रहा न घाट का। सरकार की किसी योजना में उसका उल्लेख नहीं है। गरीबी रेखा में इसलिए नहीं है कि उसने कुछ कमा धमा कर टीवी, फ़्रिज, मोबाईल, एवं पक्का घर बना लिया है। अमीर इसलिए नहीं है कि उसके पास अकूत धन नहीं है। निम्न मध्यम वर्ग की कमाई बिजली का बिल, पानी का बिल, राशन का बिल, फ़ोन का बिल,मोटर साईकिल का पैट्रोल, बच्चों की बीमारी और शिक्षा में ही चली जाती है। उसके पास बाद में जहर खाने के भी पैसे नहीं बचते। अगर किश्तों में सामान मिलने की योजना नहीं होती तो वह कुछ भी सामान नहीं खरीद पाता।
एक तरफ़ लोग भूख से मर रहे हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ़ नेता-अधिकारी एवं मठाधीशों का गठजोड़ चांदी काट रहा है। मंहगी से मंहगी गाड़ियों में सवार होकर कानून को धता बता रहा है।गरीबों के वोट से बनने वाले सांसद और विधायक गुलछर्रे उड़ा रहे हैं, एक बार जीतने के बाद उनके क्षेत्र में क्या हो रहा है कभी दुबारा झांकने भी नहीं जाते। बस उन्हे तो अपने कमीशन से मतलब है। जब विधायकों और सांसदो को सुविधा देने का बिल सदन में लाया जाता है तो पक्ष विपक्ष सभी उसे एक मत से पारित कर देते हैं, और जब किसान, बेरोजगारों को सुविधा देने का बिल लाया जाता है तो उस पर ये एक मत नहीं होते। गरीबों की ही भूख के साथ खिलवाड़ क्यों होता है?
एक सर्वे के अनुसार भारत में 25 हजार लोग ऐसे हैं जो कि 2 करोड़ रुपयों की लक्जरी गाड़ियों में चलते हैं। 306 सांसद करोड़पति हैं। अब इस स्थिति में गरीबों का कल्याण कहां से होगा? एक मेडिकल कौंसिल का अध्यक्ष केतन देसाई पकड़ा जाता है,उसके पास ढाई हजार करोड़ नगद एवं डेढ क्विंटल सोना बरामद होता है। एक प्रशासनिक अधिकारी बाबुलाल के पास 400 करोड़ की सम्पत्ति बरामत होती है, एक उपयंत्री के यहां छापा मारा जाता है तो 2करोड़ रुपए की सम्पत्ति बरामद होती है। एक मधुकोड़ा पकड़ा जाता है तो 4000 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आता है। मुम्बई के एक बैंक में कोड़ा ने लगभग 600करोड़ से उपर नगदी जमा की थी। यहां आप किसी बैंक में 50 हजार रुपया जमा करने जाते हैं तो आपको बताना पड़ता है कि कहां से लेकर आए हैं?
दिनों दिन बेरोजगारों की संख्या बढते जा रही है। औद्योगिकरण ने परम्परागत उद्योगोँ का सत्यानाश कर दिया। बड़ी मशीनों के चलते परम्परागत रुप से काम करने वाले लोग बेरोजगार होकर गरीबी से जुझ रहे हैं। उन्हे एक जून की रोटी के लाले पड़े हुए हैं, यहां टीवी पर पिज्जा और बर्गर के विज्ञापान दिखाए जाते हैं, पालनपुर की गाय डेयरी मिल्क का चाकलेट खा रही है और गरीबके बच्चे एक रोटी के लिए तरस रहे हैं।भ्रष्टाचार देश को खोखला कर रहा है। अब इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में कितना काला धन होगा, नेता अधिकारियों एवं मठाधीशों की तिजोरी में। जिस दिन यह काला धन इनके तिजोरियों से निकल कर राष्ट्र के विकास में काम आएगा। समानता का राज होगा।सभी के बच्चे समान शिक्षा पाएंगें। सभी को समान अधिकारहोगा,जिस दिन वोट नहीं खरीदे जाएंगे।उसी दिन सही मायने में सच्ची आजादी इस देश को मिलेगी और देश की आजादी के लिए जीवनदान देने वालों की आत्मा को शांति मिलेगी।
() ललित शर्मा
(वर्ष के श्रेष्ठ गीतकार )
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जारी है परिचर्चा, मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद ......
nice
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